प्रो. गरिमा श्रीवास्तव II
[ दुलियु गोम्स ब्राज़ील के सर्वाधिक लोकप्रिय लघुकथा लेखक हैं। अपने ऐतिहासिक उपन्यास ‘फोगो चेर्दे’ के कारण उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली। उनके दो कहानी संग्रह ‘द बर्थ ऑफ लायन्स’ और ‘डाइजेस्टिव जनवरी टेल्स’ छपे और वे बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित हुए। प्रस्तुत है उनकी कहानी]
आदमी ने हाथ के इशारे से टैक्सी को रोका- ‘बस स्टैंड चलो’
बात करते-करते वह टैक्सी की पिछली सीट पर पीठ टिकाकर आराम से बैठ गया।
रंग मटमैला, थोड़ा मोटा, साथ में था एक सूटकेस जिसे उसने अपनी गोद में रख लिया। शाम को सात बजे की धुंधली रोशनी में दूसरी कई गाड़ियों की भीड़ में टैक्सी ने चलना शुरू किया। दिन गर्म था, ड्राइवर ने दाहिने हाथ से अपने माथे का पसीना पोंछकर रेडियो चला दिया-रुम्बा गाने के हजारों ड्रम की आवाज़ों से टैक्सी फट पड़ने को हुई।
रेडियो की आवाज़ कुछ कम करते ही ड्राइवर एक शब्द सुन पाया-‘ -‘केला’ आदमी टैक्सी की पिछली सीट पर बैठा शायद कुछ कह रहा है-“सच में यदि मुझे कुछ पसंद है तो वह है केला।”
ड्राइवर ने अपने सामने के शीशे में देखा-उस आदमी के मुख-गवर में आधा केला एकबार में ही गायब। वह देख पाया टैक्सी की खिड़की से पैसेंजर द्वारा केले का छिलका फेंक देना। रेडियो की आवाज़ ड्राइवर ने और कम कर दी क्योंकि उसे लगा कि पैसेंजर और भी कुछ कह रहा है- “मैं दिनभर में पचास केले खा जाता हूँ।” उसके बाद चुप हो गया।
इसी निस्तब्धता में एक और केले के छीले जाने की आवाज़ आती रही।
आवाज़ दबी हुई थी, जैसे जल्दबाज़ी थी; ठीक वैसे ही जैसे एक कोई मुट्टल्ला चूहा मखमल पर दौड़ लगा रहा हो। उन सज्जन ने कहा- “केले के उत्पादन से हमारे देश में बड़े पैमाने पर शिल्प विकास होना चाहिए था।”
ये सारी बातें, भरमुँह में केला खाते समय कही जा रही है, इसे ड्राइवर समझ गया। ड्राइवर का कुछ आता-जाता नहीं, उसकी गाड़ी में बैठकर पैसेंजर केला खाए या तरबूज़, जब तक वे गाड़ी को गंदा नहीं कर रहे। लेकिन उसे लगा कि एक आदमी के लिए एक दिन में 50 केले खाना असंभव है। ड्राइवर ने हिसाब करके देखा कि ऐसे तो उसका पैसेंजर सप्ताह में 350 केले खा लेगा, इसका मतलब एक महीने में जितने केले खाएगा उसकी संख्या इतनी बड़ी है कि वह अपनी साधारण हिसाब-क्षमता से गिन ही नहीं सकता।
सज्जन ने कहा- “कच्चा केला भी खाया जा सकता है।” पैसेंजर के इस भाषण के प्रति ड्राइवर को कैसा तो आकर्षण होने लगा।
सामने के रस्ते से आँख हटाए बिना ड्राइवर ने पूछा- “कच्चे केले में क्या मिलता है कि आपको इतना अच्छा लगता है।”
“कच्चे… के … ले…में
सज्जन ने एक टुकड़ा केला मुँह में ठूंसकर उत्तर दिया। बात करने में जो देरी हुई उससे ड्राइवर को समझ आया कि केले का टुकड़ा बड़ा है।
कच्चे केले में केले के नैसर्गिक गुण हैं। केले के पकना शुरू होते ही उसकी निर्गुण अवस्था शुरू हो जाती है। इसलिए केले के फूल पकड़ने और पकना शुरू होने के बीच का समय बहुत कम होता है लेकिन कच्चे केले के बारे में आप निश्चिंत रह सकते हैं कि छिल्के के भीतर आपको पका या सड़ा केला नहीं मिलेगा।
इसलिए आपको ऐसी कोई परेशानी नहीं होगी कि जिसे खाकर आपको नुकसान हो सकता है।
ड्राइवर ने चुपचाप सारी बातें मान लीं। ऐसा लगा ये सज्जन ठीक ही कह रहे हैं। फिर भी उनकी व्याख्या विभ्रमपूर्ण थी, जो कभी भी कच्चा केला खाने के लिए उसे प्रेरित नहीं करेगी। रेडियो पर धीमी लय में एक करुण गीत बज रहा था। ड्राइवर टैक्सी को लाल बत्ती पर रोकते रोकते बोला- “आज असह्य गर्मी है।” ड्राइवर की बात पर ध्यान दिए बगैर पैसेंजर बोलता ही रहा-“आनेवाले दिनों में केला ही प्रमुख खाद्य होने वाला है। मुझे लगता है कि सच में मैं केलाहारी हूँ। इस सदी के अंत में मनुष्य की विकराल क्षुधा का समाधान यह केला ही हो सकता है।
ड्राइवर को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले। टैक्सी फिर चलने लगी थी, केले को लेकर यह पागलपन ड्राइवर को अजीब लग रहा था। कुछ ऐसा ही था कि इस अजीब से प्रसंग पर आगे बातचीत जारी नहीं रख पा रहा था। ड्राइवर चाहता था कि वह सज्जन अब अपना कदली वृत्तांत बंद कर दें।
ड्राइवर में एक अजीब सी विरक्ति पैदा हो रही थी, फिर उसे लगा कि साथ ड्राइवर की पिछली सीट पर बैठा प्राणी गंभीर भाव से चुपचाप एक केले का छिलका उतार रहा है। यह दसवाँ हो सकता है।
गर्मी में टैक्सी की विंडस्क्रीन से प्रकाश की किरणें परावर्तित होकर आ रही थीं। ड्राइवर को समझ नहीं आ रहा था कि जल के छोटे-छोटे कण टैक्सी के काँच से दीख रहे थे या उसकी आँखों की पलकों में थे।
पीछे से वह सज्जन अचानक बोल उठे-“माफ करना, आधे घंटे से मैं केले खाता जा रहा हूँ आपको एक बार भी नहीं पूछा।
एक खाकर देखेंगे क्या ?
ड्राइवर केला लेता नहीं लेकिन उन सज्जन की आवाज़ इतनी भद्र और मित्रतापूर्ण थी, जिन्हें प्रसन्न करने के लिए और इसलिए भी कि यह अनुरोध दोहराया न जाये-
“दे दीजिए” ।
सज्जन ने एक केला उठाकर दे दिया। ड्राइवर की गर्दन के पिछले भाग में केले की छुअन गरम थी-जैसे उसमें प्राण हो। केला देते हुए ड्राइवर की नज़र उस व्यक्ति के हाथ पर पड़ी-वह था विशाल रोमिल पशुवत हाथ।
साभार: ‘साखी’ प्रेमचंद साहित्य संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका