हिन्दी कविता के पाठकों को कनाडा की कविताओं के इन्द्र धनुष से परिचित कराए जाने का विचार मन में सक्रिय हुआ । इस कार्य में केनेडियन पोएट्री एसोसिएशन से भी सहयोग मिला जिसने कनाडा के समकालीन कविता हस्ताक्षरों को हिन्दी कविता में सहयोग के लिए प्रेरित और प्रभावित किया। कनाडा में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी संख्या है। सुखद आश्चर्य तब हुआ जब हमें पंजाबी कवियों की कविताएँ भी कनाडा से मिलीं। भारतीय भाषाओं की विदेशी कविताएँ सचमुच सांस्कृतिक सेतु का काम करती हैं यह आप इन्हें पढ़कर जान जाएंगे।
इस संकलन की कविताओं के सन्दर्भ और पृष्ठभूमि आमतौर पर अनुवाद के माध्यम से हिन्दी में आने वाली कविताओं के सामान्य चयन से सर्वथा भिन्न हैं। कनाडा एक समृद्ध देश है जहाँ गरीबी, शोषण, रंगभेद और साम्यवादी चिन्तन लगभग नहीं है। फिर भी मानवीय व्यवहार की जटिलताएँ, मशीनीकरण से प्रभावित दिनचर्या, अप्रवास से जुड़ी सांस्कृतिक समस्याएँ और स्त्री – पुरुष संबंध कवियों और चिन्तकों को अपने समाज के विषय में लिखने को उत्प्रेरित करते हैं। इन कविताओं के कथ्य इन्हीं विषयों का संजीदगी से विश्लेषण कर अपनी शिल्प और तकनीक के माध्यम से हमें चमत्कृत करते हैं। इन कविताओं का अनुवाद करते समय मुझे मालूम हुआ कि कविताओं का अनुवाद सरल कार्य नहीं है। इस प्रक्रिया में अनुवादक का भाषा ज्ञान और मूल विचारों को कविता के यथेष्ट रूप, शिल्प आदि में पुनर्सृजन की क्षमता तक सब कुछ दाँव पर लग जाता है। अनुदित कविता को पढ़कर कभी मूल कविता लिखने से अधिक संतोष की अनुभूति होती है तो कभी लगता है – शुक्र है, अनुवाद ठीक – ठाक हो ही गया। कुछ कविताओं को बार – बार पढ़कर भी अनुवाद करने का मन नहीं हुआ तो ऐसी कविताएँ भी मिलीं जिन्हें पढ़ते ही कविता भाषान्तरित होती चली गई । सबसे बड़ी कठिनाई कुछ कविताओं में सांस्कृतिक परिदृश्य समझने में आई जिसे इन्टरनेट से सामग्री खोजकर या विभिन्न तकनीकी कोशों की सहायता से समझा गया। चूँकि अनुवाद कठिन परिश्रम का कार्य है और हम हर उपलब्धि सरलता से चाहते हैं, कार्य पूरा होने के बाद मिलने वाली प्रसन्नता और संतुष्टि इस कर्म में कहीं अधिक है।
- राजेश्वर वशिष्ठ
किनारे पर सीप
मैंने देखा अपने बेटे को मौत के साथ जाते हुए।
पीली त्वचा पर काँपता उजास,
नंगी उठी हुई छाती साँसों के हिचकोलों से आहत,
गर्दन के इर्द-गिर्द फूली उँगलियों वाली झूलती हथेलियाँ,
उसकी गहरी भूरी आँखें हो गई थीं नीली।
आहत गाल और बैंगनी हो चले थे होंठ,
सलेटी जीभ तड़प रही थी जीवित सीप की तरह
मेरी गोद में अभागे हृदय के पास।
जन्म के समय कितना छोटा सा था मेरा बेटा
उसे सुलाया जा सकता था एक टोकरी में भी,
छिपाया जा सकता था एक थैले में भी –
जो मेरी पसलियों से सट कर रहे;
इसलिए मैंने चाहा वह मेरे पास ही मरे
ताकि मैं चिल्लाकर कह सकूँ –मैं तुम्हें प्यार करती हूँ,
स्नेह के लिए जो भी हो सकेगा मैं करूँगी
मैं जानती हूँ।
मैं देखती हूँ उसके हाथों की ओर
जैसे किसी जानवर के नाखून हों,
कितनी सुन्दर थीं ये कलाइयाँ
जिन्हें वह हिलाता रहा एक वर्ष तक;
शांत नीली आँखों के ऊपर मस्तिष्क में एक तूफ़ान छिपाए।
ग्रीष्म की समाप्ति पर अनिद्रा
तकिए पर पड़ा सिर कितना भारी हो गया है
भीतर चल रहा है वही सब,
संगीत, तरह-तरह की फुसफुसाहट है
यह रुकेगा नहीं चाहे मैं इसे रोकने के लिए कितना ही
जकड़ लूँ दाँतों को।
बाहर एक चींटा रगड़े जा रहा है अपना शरीर
बिना लय-ताल के,
बिस्तर में सिमट गया है तूफ़ान
दिमाग में चुभ रही है कीलें
टिक-टिक के साथ
चला गया है ग्रीष्म
मैं वही बन गयी हूँ — न कुछ कम, न ज़्यादा
जो मैं बनना चाहती थी
वयस्क।
मुझपर विश्वास करो
अब अगर मैं अपने आपको सुनाऊँ
अपने जीवन की कथा
झूठी लगेगी मुझे भी।
कितना कम भूल पाती हूँ मैं इसलिए
लौटकर फिर से चली जाती हूँ
उसी तेज ठंडे गीत की ओर।
वह सब जो उसने नहीं किया
उस स्त्री ने कभी चर्चा नहीं की
अपने अन्दर मर रही स्त्री की,
जिसने मुझे पाला था जन्म से
पूरी की थी सभी ज़रूरतें
और कड़वाहट से भरकर भी निभानी चाही थी वफ़ादारी।
कभी नहीं बताया अपनी बीमारी के बारे में
नाना – नानी और मित्रों के बारे में
उन जानवरों के बारे में भी नहीं
जो घर में रहते थे हमारे साथ और हो गए अदृश्य।
उसने कभी नहीं उठाया फ़ोन बुरे समाचार सुनने के लिए
कभी नहीं बताया मुझे कहाँ चले गए वे सब
कभी नहीं बताया उसने उस मृत्यु के बारे में
जो वर्षों से पल रही थी उसकी छाती में
काले हुए फेफड़ों का वज़न हो गया था इतना अधिक
जिसे उठाना वश में नहीं था किसी के भी लिए।
उसने कभी नहीं बाँटा अपना अतीत
अपने पिता की दायित्व – हीनता और माँ की लम्बी प्रतीक्षा
अन्त हीन विस्थापन और एकाकी जीवन
कभी नहीं चर्चा की अपने प्रेम और दुख की
सदा ताकती रही क्षितिज की ओर
अपने हाथों में हमारे हाथ थामे हुए।
उसने कभी नहीं बताया हमें कैसे हैं हमारे शरीर,
प्रोत्साहित किया हमारी क्षमताओं को
और बताया हमारे रक्त का उद्गम
कभी चर्चा नहीं की अंतरंग संबंधों की
नहीं बताया पुरुष किस आधार पर करते हैं प्रेम
नहीं दी कामचलाऊ जानकारी भी,
कहा बाहर निकलकर देखो
इर्द – गिर्द होंगे तुम्हारे कितने ही मरने वाले।
उसे कभी नहीं रोका
रात में जब वह आता था उसके बिस्तर पर
कभी नहीं, कभी नहीं।
कभी नहीं कहा मुझे अपना निरीह शिशु,
बेचारी प्यारी बेटी, अपना दुर्भाग्य,
अवांछित गर्भ,
झूठ, चुप्पी, या ऐसा ही सब कुछ।
अनुवाद – राजेश्वर वशिष्ठ
- कैरोलिन स्मार्ट : जन्म : इंग्लैंड, बाद में कनाडा प्रवास।
- प्रकाशित कृतियाँ : The way to come home, At the End of the Day, The sound of the Birds
अधिकांश कविताओं का स्पेनिश, जर्मनी एवं जापानी में अनुवाद। कविताओं का हिन्दी अनुवाद पहली बार।
सम्प्रति : Director of Creative Writing, Queen’s University Canada