अश्रुतपूर्वा II
नई दिल्ली। बिहार के लोकगीतों मगही झूमर, कजरी, झिझिया और हुरका को लोग अब पूरी दुनिया सुनेगी। इसके साथ ही मिथिला के समा-चकवा उत्सव को भी देखेगी। इसके लिए राज्य सरकार ने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के साथ एक करार किया है। परिषद के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर के बाद बिहार के कला और संस्कृति विभाग ने आइइसीसीआर के क्षितिज शृंखला (एचएसपी) के तौर पर प्रदर्शन के लिए प्रसिद्ध लोक नर्तकों, गायकों और कलाकारों को विदेश भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। राज्य के लोकगीतों के वैश्विक स्तर पर प्रसार की दिशा में यह बड़ी पहल है।
समझौते के मुताबिक आईसीसीआर बिहार के कलाकारों की भागीदारी से बिहार को भारत और विदेशों में अपने कला रूपों, प्रतिभा को बढ़ावा देने में सहायता करेगा। राज्य के कला, संस्कृति और युवा विभाग के अतिरिक्त सचिव दीपक आनंद ने बताया है कि आईसीसीआर विदेश में प्रमुख त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए राज्य सांस्कृतिक मंडलियों के दौरे की सुविधा भी देगा। झिझिया, हुरका, मगही झूमर, कजरी, मिथिला के समा-चकवा उत्सव आदि का प्रदर्शन करने वाले लोक कलाकारों का चयन किया जाएगा और उन्हें एचएसपी कार्यक्रम के तहत विदेश भेजा जाएगा। इसके अलावा कजरी, झरनी नृत्य और सोहर खेलावाना बिदेसिया गाने के लोक कलाकारों, मंडलियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
राज्य के लोक गीत और नृत्य भारत के बाहर काफी लोकप्रिय हैं। झिझिया एक प्रार्थना नृत्य है जिसकी उत्पत्ति बिहार के कोशी क्षेत्र में हुई और यह सूखे के दौरान किया जाता है। मगही झूमर नृत्य आमतौर पर युगल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जहां पुरुष और महिला नर्तक राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में पति और पत्नी की भूमिका निभाते हैं।
बिहार के पास दुनिया को दिखाने के लिए बहुत कुछ है। राज्य के लोक गीत और नृत्य भारत के बाहर काफी लोकप्रिय हैं। झिझिया एक प्रार्थना नृत्य है जिसकी उत्पत्ति बिहार के कोशी क्षेत्र में हुई और सूखे के दौरान किया जाता है। मगही झूमर नृत्य आमतौर पर युगल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जहां पुरूष और महिला नर्तक राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में पति और पत्नी की भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि मिथिला क्षेत्र का प्रसिद्ध समा-चकवा एकता का पर्व है और आमतौर पर छठ पूजा की रात से शुरू होने वाला यह उत्सव काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा बिदेसिया बिहार का एक और लोक प्रदर्शन है जो भारत के बाहर भी बहुत लोकप्रिय है।
आनंद ने कहा, साहित्यिक, बौद्धिक और शैक्षणिक क्षेत्रों, मूर्तिकला, व्यंजन, वस्त्र, हस्तशिल्प और वास्तुकला के अन्य क्षेत्रों में नई युवा प्रतिभाओं सहित उत्कृष्ट सांस्कृतिक समूहों एवं कलाकारों की पहचान करने में आईसीसीआर की सहायता करना भी समझौता ज्ञापन का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि बिहार में राज्य पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए विदेशी छात्रों के अध्ययन शिविरों और पर्यटन की सुविधा भी समझौता ज्ञापन का हिस्सा है। इससे दूसरे देशों के साथ सांस्कृतिक संबंध मजबूत होगे। (मीडिया में आए समाचार की पुनर्प्रस्तुति)