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रिश्तों में नया रंग भरती है होली

फोटो- साभार गूगल

अश्रुत पूर्वा विशेष II

बसंत आगमन के साथ प्रकृति जब नए रूप में खुद को संवारती है, तो इसकी छटा निराली होती है। वह अपनी पूरी गांठें खोल कर स्वयं को विविध रंगों में अभिव्यक्त करती है। इस समय पेड़-पौधों की हरियाली और नाना प्रकार के पुष्प अपनी रंग-बिरंगी छटा से मन मोह लेते हैं। तब मनुष्य का मन जैसे तरुण हो उठता है। यह तरुनाई मादकता इतराने लगती है। इस दृष्टि से देखें तो होली मन की गांठें खोलने का त्योहार है।

होली अकेला ऐसा त्योहार है जब सभी धर्मों और समुदायों के लोग एक दूसरे को गुलाल लगा कर मन का मैल धो लेते हैं। सारे शिकवे दूर कर लेते हैं। दुनिया की किसी भी संस्कृति में ऐसा पर्व नहीं है जिसमें लोग एक दूसरे पर रंग डाल कर बदरंग हो गए रिश्तों में भी एक नया रंग भर एक नई शुरुआत करते हों। पिचकारियों से फुहार डाल कर और गालों पर एक दूसरे को गुलाल मलते हुए भारतीय समाज अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लेता है। यही हमारी संस्कृति की खूबसूरती है। जब इस देश की प्रकृति अलग-अलग मौसम में अपना मिजाज बदलती है तो भला लोग भी पीछे क्यों रहें। क्यों एक रंग में रंगे रहें।

होली पर हर रंग अपना एक अलग संदेश लेकर आता है। गोरी के गालों पर जब कोई लाल रंग लगाता है तो वह उसके प्यार की गरमाहट को ही अभिव्यक्त करता है। लाल रंग में सराबोर पत्नी जब पलट कर अपने पति, देवर, बहनोई और अन्य सदस्यों को हरे रंग का गुलाल लगाती है, तो वह संबंधों में निर्मलता और प्रकृति व नारी के संबंध को ही प्रकट करती है। इसी तरह जब प्रियजनों को पीला रंग लगाया जाता है तो तब हम यह कहना चाहते हैं कि चलो हम फिर से संबंधों को शुद्ध कर लें। शुभ अवसरों पर पीले रंग का कितना महत्व है, यह हर भारतीय समझता है। हम चाहे जामुनी रंग लगाएं या नीला रंग सब का एक ही संदेश की उदासी का रंग दूर होना चाहिए।

होली पर हर रंग अपना एक अलग संदेश लेकर आता है। गोरी के गालों पर जब कोई लाल रंग लगाता है तो वह उसके प्यार की गरमाहट को अभिव्यक्त करता है। लाल रंग में सराबोर पत्नी जब पलट कर अपने पति, देवर, बहनोई और अन्य सदस्यों को हरे रंग का गुलाल लगाती है, तो वह संबंधों में निर्मलता और प्रकृति व नारी के संबंध को ही प्रकट करती है। इसी तरह जब प्रियजनों को पीला रंग लगाया जाता है तो तब हम यह कहना चाहते हैं कि चलो हम फिर से संबंधों को शुद्ध कर लें।

फोटो- साभार गूगल

 होली उत्साह से भरपूर त्योहार है। थोड़ी मस्ती, थोड़ी उछल-कूद और थोड़ी चुहलबाजी, यह सब होली पर दिखती है। रंग-गुलाल से खिला मन तब और आह्लादित हो जाता है जब घर पर कई तरह के पकवान बनते हैं और मिल बांट कर खाते-पीते हैं। उत्तर पूर्वी भारत में इस मौके पर इतने पकवान बनते हैं कि क्या खाएं और क्या छोड़ें। होली पर मस्ती के बाद यों भी भूख बढ़ जाती है। खोए और चाशनी में पगी गुजिया, गरमा-गरम जलेबी, गुड़ और चीनी के मालपुए, गरमागरम पकौड़े, दही-भल्ले और ठंडाई खास तौर से तैयार किए जाते हैं।

एकल और संयुक्त परिवारों में महिलाएं सुबह से पकवान बनाने में जुट जाती हैं। उनमें अपने परिवार के लिए प्यार और इस त्योहार के प्रति उल्लास देखते बनता है। मित्रों और संबंधियों का सुबह से लेकर शाम तक आना-जाना लगा रहता है। उनका तरह-तरह के पकवानों से स्वागत होता है। होली पर जिस तरह हम रंगों से अपना सम्मान और स्नेह प्रकट करते हैं उसी तरह पकवानों का भी एक संदेश है कि साल भर इसी तरह रिश्तों में भी मिठास बनाए रखना।

होली वस्तुत: मन की गांठें खोलने वाला त्योहार है। इस दिन लोग अपने पुराने मतभेद भूल कर सद्भाव की एक नई शुरुआत करते हैं। होली पर जो लोग दूसरों को चोट पहुंचाने, अभद्रता करने और स्त्रियों को रंग लगाने के बहाने उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास करते हैं, उनसे दूर ही रहना चाहिए। उनकी हरकतें साबित करती हैं कि वे सभ्य नहीं हैं। इस समाज के लायक नहीं हैं। उनके मन का एक ही रंग है यानी काला। जिस पर किसी रंग का असर नहीं होता।

होली को कभी बदरंग न होने दें। क्योकि विविध रंग मिल कर ही सतरंगी बनता है। इस अवसर पर हर मनुष्य में, समाज और परिवार में रिश्तों का ऐसा इंद्रधनुष बनाएं जिसमें मर्यादा तो हो ही, अगली होली तक उसकी गरमाहट भी बनी रहे।

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Ashrut Purva

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