अभिप्रेरक (मोटिवेशनल)

जीवन चलने का नाम…

तस्वीर : गूगल से साभार

मनस्वी अपर्णा II

 ऐसा व्यक्ति ढूंढना मुश्किल होगा जो ये दावा कर सके कि उसके जीवन में कभी भी किसी भी तरह की कोई मुसीबत नहीं आई है या जीवन का हर एक दौर निर्बाध रूप से गुज़रा है। हम सबके जीवन में कम या ज्यादा, शारीरिक या मानसिक,आर्थिक या सामाजिक, अस्तित्वगत या प्राकृतिक इनमें से किसी एक तरह की या सभी के मिले-जुले रूप में कोई न कोई समस्या या बाधा आती जरूर है जो हमारे जीवन की गति में स्पीड ब्रेकर की तरह से काम करती है।

यदि समस्याओं ने घनीभूूत होकर हमारी गति अचानक रोक दी है तो स्थिति स्पीड ब्रेकर वाली बनती है या हमने समस्याओं को देख कर खुद ही अपना जीवन रोक लिया है तो स्थिति हैंड ब्रेक वाली बनती है…और दोनों ही दशाओं में एक बात ज़रूर घटती है कि हमारे जीवन की गति रुक जाती है।

हम चलने की बजाय बाधाओं से घबरा कर सड़क के किनारे खड़े हो जाते हैं, किंकर्तव्य विमूढ़ होकर। ये अगर कुछ समय के लिए लिया गया अल्प विराम है और आगामी यात्रा के लिए शक्ति, साधन और योजना के उद्देश्य से लिया गया विराम है तो बिलकुल ठीक है। यों भी किसी भी तरह की समस्या को दूर किए बिना आगे बढ़ जाना आगामी यात्रा के लिहाज से ठीक नहीं है, अगर पांव में मोच है या जूते में कील चुभी है तो दोनों का इलाज किए बिना चलते रहना उस समस्या को और अधिक परेशान करने वाला बना सकता है।

लेकिन यदि आप ने अल्पविराम को ही पूर्ण विराम मानना शुरू कर दिया है और जीवन में आई कैसी भी छोटी-बड़ी समस्या को जीवन का अंत मान लिया है और अपनी आगामी यात्रा को रोक कर वहीं खड़े हो गए हैं तो ये सोच और नजरिया निश्चित रूप से गलत है, दरअसल हम अगर इस तरह के किसी पूर्वाग्रह में जीते हैं कि जीवन में कभी कोई समस्या या चुनौती आनी ही नहीं चाहिए या जीवन सदा एक समरसता में चलना चाहिए तो यकीनन हमारी असली समस्या ये सोच और ये नजरिया ही है। जीवन असल में एक अनसुलझी पहेली की तरह है और मजे की बात ये है कि इस पहेली का कोई हल है ही नहीं और हम चाहे मानें या न मानें। ये अनसुलझापन, ये अनगढ़पन ही जीवन का असली सौंदर्य है, हम जितनी गहराई से इस बात को समझ जाते हैं, हमारा जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदलता जाता है, और हमारी सोच भी अप्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती।

किसी भी बाधा, समस्या, अनहोनी या उलझन से कहीं ज़्यादा विराट है जीवन, जैसे समुद्र है जो किसी लहर के होने या न होने से प्रभावित थोड़े ही हो सकता है… लहर बहुत मामूली बात है समुद्र बहुत बहुत विशाल है…जैसे कि शरीर के किसी एक अंग में आई तकलीफ की वजह से पूरे शरीर का त्याग करना कोरी मूर्खता होगी… तो समस्याएं किसी लहर से ज्यादा अस्तित्व नहीं रखती। लहरें बड़ी छोटी हो सकती हैं, लेकिन फिर भी समुद्र के आगे उनकी कोई हस्ती नहीं।

तस्वीर : गूगल से साभार

यदि हमने किसी चुनौती को बाधा की तरह माना है तो हमारा नजरिया अलग होगा, हमारा व्यवहार और आचरण किसी और ढंग का होगा लेकिन यदि हमने सामने आई चुनौती को महज एक चुनौती की तरह ही लिया तो हमारा नज़रिया और व्यवहार और ढंग का होगा… यदि हम इस तरह से अपने मन मस्तिष्क को तैयार करते हैं कि जीवन में रोज कोई न कोई चुनौती हमारे सामने आएगी ही कभी कम या कभी ज़्यादा प्रभाव के साथ और हमें बस उससे जूझने के लिए खुद को तैयार रखना है तो फिर हम उन सभी चुनौतियों के साथ बेहतर ढंग से तालमेल बिठा पाएंगे।

मैंने लोगों को अक्सर समस्याओं से घबरा कर और परेशान होकर जीवन जीने की चाह छोड़ते हुए या गहरे अवसाद में जाते हुए देखा है, मैं खुद भी इसी राह की राही रह चुकी हूं इसकी वजह जो मैं समझ पाई हूं वो यही कि जीवन को हम बहुत ही कम तरजीह देते हैं जबकि जीवन सर्वाधिक मूल्यवान है…। किसी भी बाधा, समस्या, अनहोनी या उलझन से कहीं ज़्यादा विराट है जीवन, जैसे समुद्र है जो किसी लहर के होने या न होने से प्रभावित थोड़े ही हो सकता है… लहर बहुत मामूली बात है समुद्र बहुत बहुत विशाल है…जैसे कि शरीर के किसी एक अंग में आई तकलीफ की वजह से पूरे शरीर का त्याग करना कोरी मूर्खता होगी… तो समस्याएं किसी लहर से ज्यादा अस्तित्व नहीं रखती। लहरें बड़ी छोटी हो सकती हैं, लेकिन फिर भी समुद्र के आगे उनकी कोई हस्ती नहीं। 

यदि हम इस तरह से सोचना शुरू करते हैं कि जीवन और समस्याएं आपस में जुड़े हुए हैं, समस्या विहीन जीवन सिर्फ मुर्दा लोगों के पास हो सकता है, तो हम कुछ भी कर लें अगर हम जिदा हैं तो समस्याएं आएंगी ही और जब आएंगी तो उनके यथा संभव समाधान भी हम ढूंढ ही लेंगे तो शायद हम ज्यादा बेहतर ढंग से जीने की शुरुआत करेंगे, फिर हम को जीवन से विमुख होने की जरूरत नहीं होगी फिर हम इस जीवन के हर स्वाद का रसास्वादन कर पाने में सक्षम होंगे और ये निश्चित रूप से एक बेहतरीन अनुभव होगा। क्योंकि जीवन चलने का नाम है।

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Ashrut Purva

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