अश्रुतपूर्वा II
लखनऊ की पली-बढ़ी,एवं लखनऊ विश्वविद्यालय से रसायनविज्ञान में M.Sc. व B.Ed पूर्ण करने वाली रचना दीक्षित जी संपूर्ण रूप से विज्ञान को समर्पित, स्वयं को एक साधारण महिला मानती हैं। आपको बचपन से ही पढ़ाई में रुचि थी और घर में आने वाली तमाम पत्र-पत्रिकाएं जो उम्र बढ़ने के साथ बदलती रहीं,जिनमें-चंदामामा, कल्याण, दिनमान, धर्मयुग, रीडर्स डाइजेस्ट जैसी पत्रिकाओं को पढ़ने का सौभाग्य मिला और शायद साहित्य में अभिरुचि बने रहने का मुख्य कारण भी यही रहा। विश्वविद्यालय में पढ़ते समय ही विदेशी भाषा पढ़ने का सौभाग्य मिल गया पर उर्दू भाषा बहुत बाद में सीखी ।
परवरिश लखनऊ की थी शायद इसी कारण रचना जी अंदर एक लखनऊ आज भी बसता है। रचना जी का मानना है कि-उनका लेखन उनकी सोच सब लखनऊ की बदौलत है।वे यह भी जानती हैं कि-लेखन के लिये भाषा का ज्ञान और समझ होना एक स्तर तक ही जरूरी है परन्तु सिर्फ भावनाओं और मन को कचोटने वाली हर चीज को कागज पर उकेरना ही उनकी वास्तविक भाषा है। रचना जी की लेखन यात्रा बचपन से ही शुरू होगई थी,जब आकाशवाणी लखनऊ के लिए बच्चों के प्रोग्राम में जानें लगीं थीं। शुरुआत में तो सिर्फ सुनने ही जातीं रहीं फिर धीरे-धीरे यह गतिविधियां उनको लेखन की ओर आकर्षित करने लगीं। फिर करियर,परिवार,जिम्मेदारी सभी को आवश्यकतानुसार वरीयता मिलती रही। इस बीच नौकरी, तरह-तरह की डिग्रियां और जीवन के अनुभव मन-मस्तिष्क के पिटारे में संग्रहीत होते रहे।
2006 में ब्लॉगिंग के माध्यम से लेखन जगत से जुड़ने का अवसर मिला। और इसप्रकार बचपन का लेखन-प्रेम दोबारा जाग उठा । पर इस बार तैयारी मुश्किल थी ‘बचपन का लेखन’ बचपन का ही होता है,आपने ब्लॉग लिखना शुरू किया, बहुत समय गुजारा, लिखते हुए बहुत कुछ नया सीखने को मिला। ब्लॉगिंग के दौरान बहुत सारे नए मित्र भी जुड़े।
रचना जी कहती हैं-“पता नहीं ये मेरा मन है जो लिखता है या मेरी कलम? कुछ समय बाद सालों का मेरा लिखा एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ-‘टंगी खामोशी’। मेरी पुस्तक में प्रकाशित कुछ कविताओं ने जीवन के कुछ रिश्तों को झकझोर कर रख दिया। वाकई क्या कुछ खोया है, क्या पाया क्या यथार्थ है, क्या मात्र कल्पना, नहीं जानती पर हाँ एक उत्साह एक उमंग आ गई जीवन में जैसा की मैंने पहले ही लिखा है मेरे ब्लॉग पर, ब्लॉग मित्रों ने भी देखा होगा कि मेरी कविताओं में विज्ञान का बहुत समावेश मिलता है । पता नहीं क्यों मैं अपने आप को अपने प्रेम को अपने वातावरण को मेरे पास होने वाली हर चीज को विज्ञान से जोड़ ही लेती हूँ ना चाहते हुए भी।“
‘टंगी खामोशी’ कविता संग्रह पाठकों को एक ऐसा अनुभव देगा कि पाठक कवयित्री के मन और मस्तिष्क में चल रही ऊहापोह को स्वयं महसूस कर सकेंगे। कवयित्री के मन के कमरे की टीन की बनी छत पर टप टप कर टपकती यादें और तिस पर अनगिनत खेमों में बंटा आसमान, अंधेरों में पायल से खनकते दंश, पूरी रात चेहरे को सहलाते विकलांग शब्द, न्यूनकोण से अधिककोण के बीच शब्दों की मितव्ययिता और उसके साथ जीवन जीने की विवशता रचना के माध्यम से अभिव्यक्त होते शब्द और शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त होती सक्षम रचनाओं का ये बेहतरीन संकलन है।
भाषा, सोच और कविताओं में विज्ञान का बेजोड़ वैज्ञानिक समन्वय आपकी विशेषता है। विज्ञान को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ किसी भी विषय में ढालकर प्यार से सराबोर कर देना आपकी एक उपलब्धि है। आपका विज्ञानमय कविताओं का एक संकलन जल्द ही प्रकाशित होने की राह पर है।
विभिन्न देशी और विदेशी भाषाओं जैसे कि हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, उर्दू, संस्कृत व जर्मन इत्यादि का भी इन्हें अच्छा ज्ञान है और उन पर पकड़ भी मजबूत है। इनके पास अच्छा कार्य अनुभव भी है जिनमें उच्च स्तरों पर शैक्षणिक कार्य, स्वास्थ्य पोषण सम्बन्धी कार्य, स्वरचित कविता पाठ का सिलसिला शामिल है। इनका शैक्षणिक कार्यों के अलावा सामाजिक गतिविधियों में सतत् योगदान व विविध प्रतिस्पर्धाओं में भी अग्रणी स्थान रहा है। आपको बचपन से ही लेखन में रूचि होने के कारण आप ब्लॉग लेखन द्वारा निरंतर पाठकों से संवाद करती रही हैं। आपकी कवितायें विभिन्न समाचार पत्र पत्रिकाओं में देश-विदेश में प्रकाशित हुई हैं। आपका अनुभव आपकी कृतियों में साफ झलकता है।
कविताओं के प्रकाशन का सिलसिला चलता रहा, कोरोना काल में भी पाठकों के स्नेह ने रचना जी की रचनाधर्मिता को जीवंत बनाए रखा । उन्हे बहुत सारी पत्र-पत्रिकाओं के लिए समीक्षाएं लिखने का अवसर मिला । आप आजकल मुंबई की एक मासिक और एक त्रैमासिक पत्रिका में समीक्षक एवं सह संपादक के तौर पर कार्यरत हैं। रचना जी विज्ञान की छात्रा रहीं हैं और अपने पास-परिवेश,प्रेम,पीड़ा,जीवन के सभी आयामों को विज्ञान से जोड़ लेने की अद्भुत क्षमता आपकी लेखनी में है। कहने को ‘विज्ञान’ बहुत ही शुष्क, विवेकपूर्ण एवं तर्कसंगत विषय है,जो भावना,संवेदना,मानव जीवन के सुकोमल पक्ष को भी एक रासायनिक एवं यांत्रिक प्रक्रिया मानता है और बहुत ही तर्कसंगत ढंग से इसकी पुष्टि भी करता है। इतने मशीनी धरातल से भी कवयित्री रचना दीक्षित जी की कलम काव्यरस निचोड़ लाती है वास्तव में सराहनीय योग्यता है.. विशिष्ट योग्यता है! रचना जी की इसी विशिष्टता की झलक प्रस्तुत करती एक कविता ‘शून्य’ उल्लेखनीय है-
‘शून्य’
पढ़ती आई हूँ
किसी अंक के बाद
शून्य का लगना
उसका रंक से राजा हो जाना
अंक से पहले लगना
राजा से रंक होना
मेरे पास भी हैं
शून्य
जहाँ तहाँ बिखरे हुए
नहीं चाहती उन्हें राजा या रंक बनाना
चाहती हूँ टटोलना आर्य भट्ट को
दिलाना चाहती हूँ
मेरे शून्यों के भीतर पसरे शून्य को
एक सम्मान एक स्थान
हे आर्यभट्ट आओ
मुझे समझाओ
कहाँ लगाऊँ अपने शून्य
भाव -शून्य,
संज्ञा-शून्य,
विचार -शून्य,
संवेदना -शून्य
अंक के बाद लगाऊं
अंक से पहले लगाऊं
या अंक से लगाऊं ।
जीवन की तमाम व्यस्तताओं एवं गतिविधियों के समानांतर कुछ समय निकाल कर आने वाले समय में सामाजिक जगत में सक्रियता बनाये रखने का आपका प्रयास सफलता पाए।आपकी विज्ञानपगी लेखनी मानवीय संवेदनाओं के धरातल पर काव्य की सरसधारा प्रवाहित करती रहे।
शुभकामनाएं ।
अत्यंत प्रभावी परिचय… 🌹🙏
मुझे अपने प्रतिष्ठित मंच पर स्थान देने के लिए आभार
टीम अश्रुतपुर्वा