डाॅ. सुमन सचदेव II
उसने कहा –
बारिश पसंद है मुझे
और हम बरस पड़े
बन के घटा
और तर बतर कर दिया उसे
अपने स्नेह, प्यार,
दुआ, मुहब्बत, वफा से
फिर एक बार
उसे बाग में
फूलों के पास
खुश खड़े देखा
फिर क्या था
महक उठे हम
पूरे के पूरे
और घुल गये
भीनी हवा के संग
इस तरह से
कर दिया सुरभित
उसका अंग प्रत्यंग
बोले वो
कि गुनगुनी धूप
अच्छी लगती है उसे
और सुलगा दिए हमने
अपने मन के अरमां,
इच्छाएं, हसरतें
और ऐसा करते करते
ठंडे पड गये
हमारे चाव, शौक,
लगन व उत्साह
और फिर एक दिन
सपने में आकर
धीरे से फुसफुसाए
कि अब तो पतझड़
भाने लगा है उसे
तो सुबह होने तक
झड़ गये हम
बिखर गये टूट कर
उतार फेंकी
सब हरी पत्तियां
और बन गये
एक ठूंठ
सदा के लिए
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