अश्रुत पूर्वा II
कविता को गढ़ना कितना मुश्किल है, यह कवि ही जानता है। फिर भी उसे कितना गुमान? जरा सोचिए ईश्वर को कितना गुमान हुआ होगा, जब उसने नारी को रचा होगा। कवयित्री पूनम सूद लिखती हैं-कवि होता है, कविता होती है। मतलब कवि पुरुष, स्त्री है कविता। कवि मानता है कविता को उसने है गढ़ा, सोचती है कविता उससे ही अस्तित्व है कवि का। तो जब ईश्वर नारी को गढ़ कर भी उसके मन को समझ नहीं पाया तो पुरुष की क्या बिसात? वह लाख जतन कर ले स्त्री मन की तह तक वह कहां पहुंच पाया?
कवयित्री पूनम सूद ने अपने सद्य प्रकाशित संग्रह ‘जमा खाता’ में कसक शीर्षक से लिखी कविता में कवि और कविता का संदर्भ लेकर पूरे जीवन संसार की परतें खोल दी हैं। ‘मिसफिट’ के बाद पूनम जी का यह दूसरा काव्य संग्रह वस्तुत: मनुष्य जीवन का बही खाता है। उन्होंने जीवन के हर छोटे-बड़े पलों को समेटा है।
इस संग्रह में एक छोटी कविता है- फ्राड। इसमें कितनी सहजता से कवयित्री ने बड़ी बात कह दी है- कई बार सर्द मौसम में/खिली मटर खोलने पर/ मिलती है खाली/मोटी ताजी दिखने वाली/मूंगफली निकल आती है खोखली। … जीवन का भी यही सच है। जिसे हम सच्चा समझते हैं, वह नकली निकलता है।
प्रेम में पड़ी स्त्री हर बार अपना मन नहीं खोलती। पूनम सूद नारी की भावनाओं को इस तरह सामने रखती हैं- प्रेम में पड़ी हर स्त्री खत नहीं लिखती/ न ही कह पाती है आई लव यू/ वो नहीं जानती करने इशारे, दिखानी अदाएं, जताना हक…उसे विश्वास है/ समझ लेगा पुरुष/ उसके मूक प्रेम की परिभाषा/पुरुष उतना ही समझ पाता है/जितना होता है लिपिबद्ध/ या जितना चाहता है वो समझना/किसी लिपि के बिना। पूनम स्त्रियों के संसार में बड़ी गहराई से जाती हैं। उनकी भावनाओं को अपने लेखन में पर्याप्त जगह देती हैं।
कवयित्री ने उन विषयों पर भी कविताएं रचीं जिन पर कोई लिखना नहीं चाहता। यह बड़ी बात है। डस्टबिन शीर्षक से लिखी कविता में नायिका अपनी भावनाएं इस तरह उकेरती है-मां एक बात कहूं? साफ संवरा खूबसूरत मन लेकर बैठी हूं अकेली उदास…अपने कमरे में रखे डस्टबिन के पास, जिसमें पड़े हैं उतरे उधड़े मुखौटे रिश्ते के, तुम्हारी कही बातों और सीख के साथ…।
पूनम सूद संप्रेषण कला में सिद्धहस्त हैं। वे छोटी-छोटी कविताओं से भी सीधी-सच्ची बात एकदम सहजता से कह देती हैं। सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए उन्हें अंग्रेजी शब्दों से भी कोई गुरेज नहीं। जैसे बिटविन द लाइंस, मिसकैरिज, स्यूसाइड. फ्लर्ट और पाकेट वाच आदि। उनकी यह कविता नोटिस करने लायक है- न जाने/ लोग कैसे यादों के सहारे जिंदगी काटते हैं…/मैंने तो चंद अपनों के सहारे यादें काटी हैं।
कोई भी कवि अपने देश और काल से निरपेक्ष नहीं होता। उसके काव्य फलक पर चांद-सितारे, सूरज, नदी-समंदर सहित पूरी प्रकृति होती है, मगर वह समय के साथ मुठभेड़ करना भी जानता है। पूनम लॉकडाउन के दौरान मजदूरों की व्यथा उकेरती हैं तो किसान आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में किसानों की समस्याओं से रूबरू होना नहीं भूली हैं-कर्ज लेकर करी बुआई/बिन जल बिजली/कइसन होय सिंचाई/ बड़न ऊंच संग प्रीत लगावे/ हम संग सावन करत ढिठाई/तकदीर का दामन छूटा/अरे रामचंद्र तोसे काहे राम रूठा।
कई अहम पुरस्कार अर्जित कर चुकीं पूनम सूद अयोध्या की निवासी हैं। उनकी कविताओं में फैजाबाद भी आता है और पूरब के जीवन का लोक रंग भी। उसमें सीधी-सादी मां आती है और बच्ची को भूख पैक कर बेटी को टिफिन देती है स्कूल ले जाने के लिए। उधर, स्कूल में मास्टर साहब बच्ची पर चोरी का इलजाम लगा कर पीटते हैं। पैबंद शीर्षक से लिखी कविता दिल छू लेती है।
कुल जमा ये कि पूनम सूद का काव्य संग्रह जमा खाता पठनीय है। एक सौ तीन पेज के इस संग्रह को अंतरा इनफोमीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने छापा है। काव्य संग्रह का आवरण मुंबई के चरण शर्मा तैयार किया है। यह अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। मूल्य 250 रुपए है।
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