विजया सिंह II
मच्छर
मच्छर सुन्दर संगीत का वाहक है
एक उड़ता हुआ गवैया
जो अपने पंखों से मधुर संगीत उत्पन्न करता है
जब वह आपके कान में गुनगुनाता है
तो दरअसल वह आपके और नज़दीक आने की गुज़ारिश कर रहा होता है
वह आपके इतना क़रीब आना चाहता है
कि अपनी शहनाई सी चोंच से आपके खून तक में संगीत भर दे
अपने खून से आपके खून में वह प्लासमोडियम वैवाक्स
का धारदार परकशन प्रवाहित करता है
जो आपके हीमोग्लोबिन को तबले सा थपकाता है
तभी तो आपके शरीर का तापमान गिरता और उठता है
आप थिरकते हैं,कंपकंपाते हैं,पसीने से सराबोर हो जाते हैं
मच्छर दरअसल आपके खून के आदिम संगीत का ग्राहक है
आपका ताली बजा कर उसका स्वागत करना
उसकी प्रतिभा का सम्मान ही तो है
छिपकलियाँ
सच तो यह है कि छिपकलियाँ कला के बारे में हमसे ज्यादा जानती हैं
वे उच्च कोटि की कला प्रेमी हैं
आश्चर्य नहीं कि उनका निवास अक्सर चित्रों की दीवार से सटी पीठ पर होता है
उन्हें सच्चे कलाकारों की तरह इस बात से फर्क नहीं पड़ता
कि दीवार और तस्वीर के बीच की जगह कितनी असुविधाजनक है
कि वहां रोशनी कम है
यूँ प्रकाश के बारे उन्हें कोई भ्रम भी नहीं
अलबत्ता यह ज़रूर है कि वहाँ से अनजान और लापरवाह कीट पतंगों
को छोटी चमकदार आँखों से ताका जा सकता है
और लपक कर हजम किया सकता है
परवाने जो शमा के इर्द गिर्द सूफियों सा चक्कर काटते हैं
उनकी मासूमियत पर दिल खोल कर हँसा जा सकता है
और मौक़ा मिलते ही उनके सुन्दर, मुलायम परों वाले शरीर को
लपलपाती जीभ से दुलारा जा सकता है
यही नहीं कीमती पेंटिंग्स पर इत्मीनान से रेंगा जा सकता है
उनकी बनावट को पेट और टूटी दुम से महसूस करते हुए
एक कलाकृति से दूसरी की और जोरदार दौड़ लगाई जा सकती है
उनके बीच की दूरी को इस तरह से नापा जा सकता है
और जो पेंटिंग पसंद आ जाये
उसके आगे पीछे घूमते हुए उस पर एक सटीक पर टेड़ी समीक्षा दी जा सकती है
और जो नापसंद हो
उसे जैसी है वैसे ही छोड़ा जा सकता है
बिना टिप्पणी के
जैसा समझदार आलोचक अक्सर किया करते हैं।
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