ज्योतिष जोषी II
कभी पास से देखिए
मंडराती हैं छायाएं आपके आसपास
उनके धुंधले रूप चकित करते हैं
जब वे एकतान होती हैं आपसे
तनिक झुके नहीं आप कि
तन जाती हैं वे इठलाकर
जैसे खिली धूप में या
चांदनी में या फिर तेज रोशनी में आपकी छाया के साथ कई आकृतियां डोलती हैं साथ आपके
याद कीजिए एन इसी वक़्त
दिखेगा कोई चेहरा
या फिर अनेक चेहरे मुस्कुराएंगे अचानक
जिन्हें आप कहीं छोड़ आए हैं
या जिनकी स्मृति भी उतर गई है आपके जेहन से
जानते हैं ऐसा क्यों होता है?
इसलिए कि आप होते तो हैं एक पर एक नहीं होते
वे जो नहीं रहे वे भी होते साथ
जो हैं पर नहीं रहे आपकी याद में वह भी
और वह भी जो आपके खयाल में हैं
और वह भी जिनको खयाल में लाने की कोशिश करते हैं आप बारहा
इतनी भीड़ में रहते फिर भी लगता है आपको
अकेले हैं आप और इस तरह निरन्तर दूर होती आपकी आत्मा छोड़ती जाती है आपको रोज रोज थोड़ा थोड़ा
है न अजीब बात कि एक दिन
आप जीते जी मर जाते हैं
लोग तो तब जानते हैं जब आप
सिर्फ देह रह जाते है निस्पंद
और कहते हैं मर गए
पर आप तो मर चुके पहले ही
यह कोई नहीं जानता आप से ज्यादा
ज़िंदा होना अपने में गुजरना है
छायाएं भीतर उतर जब खोलती हैं शिराएं आपकी
आप बहते हैं नदियों सी
अपने में होते झरनों सी हंसते हैं
जीते हैं इसीलिए कि जीना
होम होना है
उतरना है पर्वत की चोटियों से
मरना लोप होना है राख बन
बिखरना और मिट जाना है बनकर एक धुंधली सी छाया।
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