कविता काव्य कौमुदी

विदा

फोटो साभार:गूगल

ज्योतिष जोशी II

पौ फटने के पहले
कहा बिछली घास पर पसरी ओस ने
विदा
कहा पखेरुओं ने पीपल की झुकी शाख पर फैले
शेष होते अंधेरे से
विदा
थके मन की मलिनताओं से मैंने कहा
ठीक उसी तरह विदा
सूरज की पहली किरण से
शुरू होनेवाली यात्रा
विदा देती है विगत होते पलों को
जी लेने को एक और दिन
दिन जो विदा कर रात को
उतरता है हमारी गोद में
नन्हे शावक सा निदाग
और धीरे धीरे होता जाता बड़ा
विदा देता समय को
हम भी होते जाते विदा थोड़ा थोड़ा
कहते विदा
थके मन से
आंखों में उतर आए आंसुओं में बहते
गुजर जाते क्षण लेते विदा
बीतते हम भी साथ उसके
फिर न लौट पाने की वेदना के साथ कहते विदा
एक नए बिहान की उम्मीद में
एक नई शुरुआत की प्रतीक्षा करते
लेते विदा
विदा विदा…..

About the author

ज्योतिष जोशी

साहित्य, कला, संस्कृति के सर्वमान्य आलोचक के रूप में
प्रतिष्ठित ज्योतिष जोशी ने आलोचना को कई स्तरों पर
समृद्ध किया है।
इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं-सम्यक्, जैनेन्द्र संचयिता, विधा
की उपलब्धि : त्यागपत्र, आर्टिस्ट डायरेक्टरी, कला विचार,
कला परम्परा, कला पद्धति, प्रतीक-आत्मक (दो खण्ड),
(सम्पादन), जैनेन्द्र और नैतिकता, आलोचना की छवियाँ,
उपन्यास की समकालीनता, पुरखों का पक्ष, संस्कृति विचार,
साहित्यिक पत्रकारिता, विमर्श और विवेचना, भारतीय कला
के हस्ताक्षर, आधुनिक भारतीय कला के मूर्धन्य, आधुनिक
भारतीय कला, रूपंकर, कृति आकृति, रंग विमर्श, नेमिचन्द्र
जैन (आलोचना), सोनबरसा (उपन्यास) तथा यह शमशेर
का अर्थ |
कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित

हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव रह चुके श्री जोशी इन
दिनों केन्द्रीय ललित कला अकादमी (संस्कृति मन्त्रालय,
भारत सरकार) में हिन्दी सम्पादक हैं।

1 Comment

  • आत्मा की मृत्यु या स्व को शनैः – शनैः मारना पलायनवाद दर्शन का द्योतक है और “बिहान” पुनर्जन्म की परिकल्पना। जीवन से पलायन और परिवर्तन के नाम पर स्वार्थवाद को मुखर करती रचना। कवि पाठकों को डराने में कामयाब रहा है😊

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