ज्योतिष जोशी II
पौ फटने के पहले
कहा बिछली घास पर पसरी ओस ने
विदा
कहा पखेरुओं ने पीपल की झुकी शाख पर फैले
शेष होते अंधेरे से
विदा
थके मन की मलिनताओं से मैंने कहा
ठीक उसी तरह विदा
सूरज की पहली किरण से
शुरू होनेवाली यात्रा
विदा देती है विगत होते पलों को
जी लेने को एक और दिन
दिन जो विदा कर रात को
उतरता है हमारी गोद में
नन्हे शावक सा निदाग
और धीरे धीरे होता जाता बड़ा
विदा देता समय को
हम भी होते जाते विदा थोड़ा थोड़ा
कहते विदा
थके मन से
आंखों में उतर आए आंसुओं में बहते
गुजर जाते क्षण लेते विदा
बीतते हम भी साथ उसके
फिर न लौट पाने की वेदना के साथ कहते विदा
एक नए बिहान की उम्मीद में
एक नई शुरुआत की प्रतीक्षा करते
लेते विदा
विदा विदा…..
आत्मा की मृत्यु या स्व को शनैः – शनैः मारना पलायनवाद दर्शन का द्योतक है और “बिहान” पुनर्जन्म की परिकल्पना। जीवन से पलायन और परिवर्तन के नाम पर स्वार्थवाद को मुखर करती रचना। कवि पाठकों को डराने में कामयाब रहा है😊