कविता काव्य कौमुदी

प्रेम

फोटो साभार:गूगल

ज्योतिष जोषी II

प्रेम
अपने में
होने की खोज है
या कहीं खो गए अधूरे मन की
पूर्णता का अनवरत अधीर प्रयत्न
जो हो होता है ऐसा जो हमें अर्थ देता है जन्मने का
पूरे चाहें न हों हम कभी
इस खोज में ही बने रह सकते हैं मनुष्य
धड़क सकता है हिया हमारा
झर सकते हैं आंसू
हो सकती है प्रतीक्षा
उद्धत हो सकते हैं हम समग्र विसर्जन के लिए
वर्ना तो अमानुष बनाने को
प्रस्तुत ही है यह संसार
प्यार जिसे कहते हैं
रहते उसीमें देवता अगर वे होते हैं
और हम कुछ कुछ उठते उपर भी
अपनी क्षुद्रताओं से थोड़ा ही सही
होते जाते मनुष्य भी थोड़ा अगर
समझते करते प्यार थोड़ा ही सही….

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Ashrut Purva

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