नई आमद

ये जिंदगी है ‘तालाब में तैरती लकड़ी’ की तरह

फोटो : साभार गूगल

अश्रुत पूर्वा II

इन दिनों ‘तालाब में तैरती लकड़ी’ ने पाठकों का ध्यान खींचा है। तालाब में तैरती लकड़ी यानी प्रदीप बिहारी की मैथिली कहानियों का संग्रह। इसका अनुवाद किया है अरुणाभ सौरभ ने। प्रदीप बिहारी मैथिली भाषा के चर्चित कथाकार हैं। अरुणाभ लिखते हैं कि प्रदीप जी की कहानियां मिथिला के निम्न मध्यवर्गीय जीवन का जीवंत दस्तावेज है। एक बार इन कहानियों में प्रवेश करने के बाद आप बाहर नहीं निकल सकते।  

मधुबनी में जन्मे कथाकार प्रदीप बिहारी की कहानियां हिंदी के अलावा नेपाली, ओड़िया, मराठी, असमिया, मलयालम, तेलुगु, पंजाबी, गुजराती, डोगरी, उर्दू और अंग्रेजी में अनुदित और प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रदीप रंगमंच लेखन, अभिनय और निर्देशन से भी जुड़े रहे हैं। इसके अलावा वे मैथिली टेलिफिल्म के लिए पटकथा लेखन से भी संबद्ध रहे हैं। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित प्रदीप बिहारी की मैथिली साहित्य में विशिष्ट पहचान है।

 हालिया प्रकाशित उनका कथा संग्रह ‘तालाब में तैरती लकड़ी’ मनुष्यता को बचाने की कथाकार की निर्भीक कोशिश है। इनमें कहानियां आकार में छोटी हैं। मगर मनुष्य के अंतकरण का विस्तार करती हैं। संग्रह में शामिल चौदह कहानियों का मैथिली से हिंदी में अनुवाद करने वाले अरुणाभ सौरभ कहते हैं कि यहां आप कोरी भावुकता में आप नहीं फंसते अपितु यथार्थ के त्रासद दृश्यों को देख कर आपकी भावना छलनी हो सकती है। आपके भीतर थोड़ी और मनुष्यता जागृत होती है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रदीप बिहारी की इन रचनाओं के केंद्र में मिथिला है। यहां बेगूसराय जनपद और उसके आमजन का संघर्ष इन कहानियों के भीतर बोलता है। संग्रह में शामिल कहानियों के अनुवादक अरुणाभ सौरब कहते हैं कि इन कहानियों के अनुवाद के क्रम में खुद को इस लोक में ले जाने की कोशिश रही है, जहां से लेखक स्वयं खाद-पानी पाता रहा है। लेखक की मूल भावना तक पहुंचने की कोशिश अनुवादक की रही है।

इस संग्रह की सभी कहानियां वैसे तो न केवन पठनीय है बल्कि मन पर गहरी छाप भी छोड़ती है। मगर कुछ कहानियां बेहद प्रभावशाली हैं। वर्चुअल दुनिया दोस्ती की किस तरह नई मिसाल गढ़ सकती है, इसकी मिसाल है कहानी ‘संगतिया’। वहीं स्त्री-पुरुष संबंधों की नई व्याख्या है कहानी-‘मकड़ी’। मकड़जाल में उलझी स्त्री की कहानी मन को छूती है। ‘एक और सांताक्लाज’ कहानी में ड्राइवर सरदार लोगों को खुशियां बांटता फिरता है। काम वाली कविता की जिंदगी ‘तालाब में तैरती लकड़ी’ की तरह है।  

कहानीकार-प्रदीप बिहारी
कथा संग्रह- तालाब में तैरती लकड़ी
अनवादक- अरुणाभ सौरभ
प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ
मूल्य- 250 रुपए    
 

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Ashrut Purva

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  • मैथिली, भोजपुरी, पूरबी आदि अनेक बोलियां मैथिली भाषा संग जुड़ी हैं। मैथिली भाषा को आठवीं सूची में दर्ज होने से मैथिली लेखन को लोकप्रिय पुरस्कारों के प्राप्ति की दावेदारी आरम्भ हो गयी। बोली से भाषा की यह यात्रा रोचक होती है। अनुवाद की दृष्टि से देखा जाए तो मैथिली से हिंदी में अनुवाद उतना ही सरल है जैसे घर से निकल बाह्य प्रांगण में आ जाना। इस अनुवाद में किसी भी प्रकार की कठिनाई संभव ही नहीं है। बोलियां अनेक श्रव्य कथाओं को अपने मरीन संजोए है जो संस्कृति की अनमोल।धरोहर है। मुझे विश्वास है कि इस पुस्तक की कहानियां मैथिली श्रव्य कथाओं की जड़ से भी कथानक का चयन की होगी। मैथिली भाषा विकास में यह लेखन प्रयास प्रशंसनीय है😊

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