विनीत मोहन ‘फ़िक्र’ सागरी II
लौट आयी जाँ मेरी, तेरी ख़बर आने के बाद,
मुस्कुरायी है फ़िज़ां कुछ, ख़ैरियत पाने के बाद।
ज़ब्त कर मैं पी गया, उठती निग़ाहों के सवाल,
मिल गयी तस्कीन दिल को, होश में लाने के बाद।
बिछड़कर तुमसे ही जाना, ग़म जुदाई का ए दोस्त,
आ गयी है अक़्ल मुझको, ठोकरें खाने के बाद।
याद बस तन्हाइयों में, ग़म के कुछ ताज़ा निशान,
राहतें भी मिल न पायीं, गीत भी गाने के बाद।
छोड़कर सब चल दिये, जो यार थे मेरे करीब,
ज़िन्दगी में ग़म के बादल, यक ब यक छाने के बाद।
साँस भी अटकी गले में, धड़कनें भी बदहवास,
जी रहा उम्मीद पर दिल, तेरे समझाने के बाद।
आ भी जाओ तोड़ता दम है, चमन तेरे बगैर,
लौटकर आये न ख़ुशबु, फूल मुरझाने के बाद।
खुश्क लब हैं, चश्म पुरनम, और दिल बेहद उदास,
‘फ़िक्र’ जीता कौन है, तेरे चले जाने के बाद।
मुकद्दर
नये मरहलों में नयी रात होगी
मुहब्बत में उनसे मुलाकात होगी ।
यहाँ इश्क में जीत मिलने से पहले
कभी शह मिलेगी कभी मात होगी।
न दुनिया को कोसो न अपना मुकद्दर
मिलेगा तुम्हारी जो औकात होगी।
बदल दो सभी अपनी आदत पुरानी
नयी जिंदगी की शुरुआत होगी।
हुई जो शरारत न लो उस को दिल पर
किसी मनचले की खुराफ़ात होगी।
बदलती है हर शय जहां में हमेशा
खुदा के रहम की भी बरसात होगी।
गमे जिंदगी में रहे दर्द शामिल
नये जख्म भी ‘फ़िक्र’ सौगात होगी।
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