सांत्वना श्रीकांत II
कई दिनों से फेमिनिस्ट कहे जाने वाले पुरूषों और महिलाओं के विचार सोशल मीडिया पर पढ़ रही हूं। उन सब में एक आम बात यह है कि ये लोग आखिर किसके विरोध में हैं? यह समझना मुश्किल है कि वे किसे विरोध में हैं। स्त्री स्वतंत्रता चाहिए? बेशक…लेकिन स्वतंत्रता के पैमाने क्या हैं, किस ढर्रे पर यह गढ़ा जा रहा है, यह समझना कठिन है। अक्सर ही हम जिन्हें फेमिनिस्ट मानते हैं उन्हें पारिवारिक संरचना से घृणा है, लेकिन वे हमेशा ही परिवार से सुरक्षा और देखभाल की दरकार पर अपनी बहस समेटे पाए जाते हैं।
उसी संदर्भ में मेरा अपना एक पक्ष है-
अगर हम ऐन्थ्रॉपॉलॉजिस्ट के अनुसार परिवार की परिभाषा देखें तो-मानव समाज में, परिवार ( लैटिन से : फैमिलिया ) लोगों का एक समूह है जो या तो आम सहमति (मान्यता प्राप्त जन्म से) या आत्मीयता (विवाह या अन्य रिश्ते से) से संबंधित है। परिवारों का उद्देश्य अपने सदस्यों और समाज की भलाई को बनाए रखना है। आदर्श रूप से, परिवार पूवार्नुमेयता, संरचना और सुरक्षा की पेशकश करेंगे क्योंकि सदस्य परिपक्व होते हैं और समुदाय में भाग लेते हैं। अधिकांश समाज में बच्चे परिवार के बाहर जीवन के लिए समाजीकरण प्राप्त करते हैं। मनुष्यों के लिए लगाव, पोषण और सामाजीकरण के प्राथमिक स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। इसके अलावा, अपने सदस्यों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए बुनियादी इकाई के रूप में, यह एक सुरक्षित वातावरण में कार्यों को करने के लिए सीमाओं की भावना प्रदान करता है। आदर्श रूप से एक व्यक्ति को एक कार्यात्मक वयस्क बनाता है। संस्कृति को प्रसारित करता है और ज्ञान के उदाहरणों के साथ मानव जाति की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
मेरी समझ से स्वतंत्रता की पूर्ण परिभाषा यह होती है कि आप अपनी जि़म्मेदारी निभाते हुए आप अपने सपने पूरे करें और दूसरों को सहयोग भी करे। नारीवाद क्या इन अर्थों में सीमित रह गया है कि कर्तव्य से विमुख रहा जाए और वह लड़ाई लड़ी जाए जो रूढि़वादिता की वजह से प्रबल है या कहीं न कहीं आयातित तथ्य प्रभावी हैं।
मानव विज्ञानियों और समाजशा्त्रिरयों के अनुसार इस परिवार की परिभाषा को पढ़ें तो पाएंगे कि परिवार की संरचना इस अवधारणा से थी कि साथ में एक दूसरे का सहयोग किया जा सके। कुछ दशक पहले का उदाहरण लें तो पाएंगे कि शिशु के जन्म होने से लेकर वयस्क होने तक पालन पोषण पूरे परिवार की जि़म्मेदारी थी। परिवार के पुरुष और बुजुर्ग महिलाएं सब मिल कर बच्चे का ध्यान रखते थे। क्योंकि आजकल परिवार की अवधारणा खत्म होने की तरफ है, लेकिन जब बच्चे होते हैं तो उस स्थिति में आप यह सोचते हैं कि अब इसका पालन पोषण कैसे करें। फिर आपको परिवार की याद आती है। आपको लगता है कि परिवार की जिम्मेदारी है कि आपकी संतति का पालन पोषण करें। या कोई ऐसा हो जो बच्चे का ध्यान रखे।
लेकिन मेरा प्रश्न यह है की ऐसी स्थिति में आप क्यों परिवार चाहते हैं? क्या आप स्वतंत्रता नहीं चाहते? फिर आप स्वतंत्रता की बात नहीं करते! फिर क्यों आप अपनी जि़म्मेदारी नहीं समझते! क्या जि़म्मेदारी से भागना ही फेमिनिज्म है?
अगर नारीवादियों की जिरह पर जाते हैं तो उनका मानना है की स्वतंत्रता के ग्राफ में परिवार बाधक है। स्वतंत्रता और परिवार एक दूसरे के विलोम है। और मेरी समझ से स्वतंत्रता की पूर्ण परिभाषा यह होती है कि आप अपनी जि़म्मेदारी निभाते हुए आप अपने सपने पूरे करें और दूसरों को सहयोग भी करे। नारीवाद क्या इन अर्थों में सीमित रह गया है कि कर्तव्य से विमुख रहा जाए और वह लड़ाई लड़ी जाए जो रूढि़वादिता की वजह से प्रबल है या कहीं न कहीं आयातित तथ्य प्रभावी हैं, जो सत्य है उसके बारे में कोई बात नही। इस कारण महिलाएं सच में परेशान हैं उसकी कोई बहस नहीं…!
आगे मैं और उदाहरणों से अपनी अपनी बात कहने की कोशिश करूंगी।