अश्रुतपूर्वा II
नई दिल्ली। भारत में तीर्थाटन की सुदीर्घ परंपरा है जिसमें धार्मिक उद्देश्य से मनुष्य यात्रा करता रहा है। देशाटन की भी हमारे यहां संस्कृति रही है। इसमें लोग आर्थिक लाभों के लिए भ्रमण करते हैं। मगर देशाटन का उद्देश्य केवल यही नहीं है। नई जगह जाने और वहां की संस्कृति-सभ्यता को जानने की ललक सभी मनुष्यों में रहती है। सुदूर देश और शहर की बोली-बानी और वहां के व्यंजन से लेकर साहित्य-पुरातत्त्व के प्रति जिज्ञासा ही मनुष्य को अपने निवास से बाहर निकलने के लिए अभिप्रेरित करती है।

अश्रुत पूर्वा ने साहित्य सरोकार से आगे बढ़ते हुए बतर्ज काव्याटन की पहल की है। इसका उद्देश्य भारत के अलग-अलग राज्यों की भाषाओं और संस्कृति के साथ साहित्य समागम करना है। बड़े कवियों के बीच नए कवियों को पहचान देना और उनकी काव्य प्रतिभा को एक मंच पर लाकर मुखर बनाना है।
इसी दिशा में अश्रुत पूर्वा ने साहित्य सरोकार से आगे बढ़ते हुए बतर्ज काव्याटन की पहल की है। इसका उद्देश्य भारत के अलग-अलग राज्यों की भाषाओं और संस्कृति के साथ साहित्य समागम करना है। बड़े कवियों के बीच नए कवियों को पहचान देना और उनकी काव्य प्रतिभा को एक मंच पर लाकर मुखर बनाना है। आवर्तन-एक शृंखला के अंतर्गत अश्रुत काव्याटन की सर्वप्रथम शुरुआत साहित्य की नगरी काशी से हो रही है। अश्रुत पूर्वा डॉट कॉम का यहां पहुंचने का एक बड़ा उद्देश्य पुराने और नए रचनाकारों को जोड़ना भी है।

अश्रुत पूर्वा के लिए यह आयोजन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसे काशी विश्वविद्यालय के प्रांगण में आयोजित किया जा रहा है। भारत अध्ययन केंद्र के द्वितीय तल पर अपराह्न तीन बजे से आयोजित होने वाले इस काव्याटन में शहर के कई बड़े कवि-कवयित्रियों ने इसमें भाग लेने की पुष्टि कर दी है। इनमें प्रमुख हैं-प्रो. सदानंद शाही, श्री ज्ञानेंद्रपति, प्रो. नीरज खरे, डॉ. अलका दुबे, डॉ. फिरोज, श्री परमहंस तिवारी, श्री रुद्र प्रताप सिंह और ज्योति सिंह प्रमुख हैं। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से डॉ. सांत्वना श्रीकांत और श्रीमती लिली मित्रा प्रतिनिधित्व करेंगी।