डॉ० अंकुश शर्मा II
मिसेज़ मिगलानी, सीनियर हिन्दी टीचर, क्या मैं पूछ सकता हूँ कि ऐसी क्या सिचुएसन क्लास रूम में बन गई कि आपको ऐसा कदम उठाना पड़ा? एक ऐसा कदम जिसने ना सिर्फ आपकी बल्कि सभी शिक्षकों की साख पर बट्टा लगा दिया है। बच्चे के वकील ने आप पर बहुत संगीन इल्जाम लगाए हैं, जज ने तीसरी तारीख में दो टूक प्रश्न पूछे इससे पहले कि मिसेज़ मिगलानी अपना पक्ष रखती या कुछ कहती, जज ने कहना जारी रखा-बच्चे के पैरेंट्स का आरोप है कि आपने मौके का फायदा उठाया और जिस समय क्लास में कोई और बच्चा नहीं था, आपने बेवजह आवेस में आकर उनके बेटे को तमाचा जड़ दिया। यह तमाचा पूरे गुस्से में मारा गया था।
मिसेज़ मिगलानी मूक दर्शक बनी सब देखती और सुनती रही। फिर कुछ पलों के बाद जैसे ही कुछ बोलने को हुई तो पैरेंट्स के वकील ने एक और आरोप लगाया, वह तमाचा जानबूझ कर अपनी खीझ मिटाने के लिए लगाया गया था, जज साहब। तमाचा लगने के बाद बच्चा बुरी तरह डर गया, सहम गया। डॉक्टर ने कहा है कि बच्चे का कान पूरी तरह से ठीक होने में तीन महीने तक लग सकते हैं। मिसेज़ मिगलानी बंद आँखों से सब सुनती रहीं, मानो न्याय के मंदिर में किसी से नज़रें ही ना मिला पा रही हों। कुछ बोलने का तो मानो वो साहस ही ना जुटा सकीं। जज ने सीनियर हिंदी टीचर को अगली तारीख पर अपना पक्ष रखने की हिदायत दी और साथ ही भविष्य में इस तरह की घटना दोबारा ना करने की नसीहत देते हुए ज्ञान भी दे दिया। कोर्ट में बैठे बच्चे के कान पर बंधी पट्टी को देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि उसके पैरेंट्स के वकील के सभी आरोप सही हैं। बच्चे के पैरेंट्स न्यायालय पर भरोसा जताते हुए चले गए। मिसेज मिगलानी जहाँ खड़ी थी, वहीं खड़ी रह गई।
मिसेज़ मिगलानी की जिंदगी में आज का दिन कोई पहला दिन नहीं था, जब वह स्कूल ना जाकर कोर्ट में हाजिर हुई हों। आज उन पर चल रहे केस की तीसरी तारीख थी। स्कूल जाना उन्हें बहुत अच्छा लगता था, इसलिए पिछले पैंतीस सालों में कई बार बीमार होने पर भी स्कूल जरूर जाती थी पढ़ाने में उनकी रुचि थी। उन्होंने शिक्षक के पेशे को अपने जुनून के चलते ही अपनाया था।
शुरूआत में तो वह छुट्टी ले भी लिया करती थीं लेकिन जिस दिन उन्हें पता चला था कि वह माँ नहीं बन सकती, उस दिन के बाद उन्होंने स्कूल से एक भी छुट्टी नहीं ली थी। यह बात सुनकर उन्हें सदमा तो लगा था लेकिन उन्होंने खुद को संभाल लिया था अगर वह स्कूल में ना पढ़ाती तो शायद वह यह दुख सहन भी न कर पाती। वह स्कूल में बच्चों से मातृ भाव सा प्रेम करती थी। बच्चे भी उन्हें बहुत प्यार करते थे और बच्चों के बीच उनकी अलग छवि थी। यह उनका मातृ प्रेम ही था कि कोर्ट से वापसी पर भी उनके पर स्कूल की तरफ मुड़ गए। सड़क पर चलते हुए उन्हें अचानक ही याद हो आया कि जब उन्होंने स्कूल ज्वाइन किया था तो बच्चों के माता-पिता प्रेम भाव से मिला करते थे। उन्हें बच्चों को पढ़ाने के लिए धन्यवाद तो देते ही थे और इसके साथ ही उनमें संस्कारों को रोपने का भी आग्रह करते थे। उस पल मानो एक टीचर गुरू की भूमिका में आ जाता था और मिरोज़ मिगलानी अपनी इस भूमिका को बखूबी निभाती भी थी। उनके कितने ही पुराने विद्यार्थी अपने मुकाम का श्रेय उन्हीं को देते थे। आज अतीत को याद करते हुए उन्हें खुद पर गर्व महसूस हो रहा था।
यह बात सुनकर उन्हें सदमा तो लगा था लेकिन उन्होंने खुद को संभाल लिया था अगर वह स्कूल ने ना पढ़ाती तो शायद वह यह दुख सहन भी न कर पाती। वह स्कूल में बच्चों से मातृ भाव सा प्रेम करती थी।
कोर्ट में जिस अपराध की वह तीसरी तारीख आज भुगत कर आ रही थीं, वह अपराध उन्होंने पहली बार नहीं किया था। उन्होंने स्कूल ज्वाइन करने के अपने शुरुआती दिनों में बच्चों को समझाने के लिए प्यार का सहारा लिया तो डांट और मार की भी तकनीक अपनाई। इस क्षण उनकी आंखों के सामने तीन दशक पहले का एक वाक्या घूम गया। उन्हें याद हो आया कि उन्होंने एक बच्चे को तमाचा मारा था, जो गलती से उसकी आँख पर लग गया था। उस बच्चे ने घर में उनकी शिकायत भी लगाई। अगले दिन बच्चे के मां-बाप भी आए और बच्चे के सामने ही उन्हें कहने लगे, जी देखिये, अगर ये एक तमाचे के बाद भी नहीं सुधरता है तो हमारी तरफ से आपको दूसरा तमाचा मारने की भी पूरी छूट है। माँ-बाप ने उन्हीं के सामने बच्चे को फटकार भी लगाई। उस दिन के बाद से वह बच्चा बिलकुल सुधर गया। उसमें अभूतपूर्व परिवर्तन आ गया और उसके बाद से ऐसी कोई नौबत नहीं आई कि उस बच्चे को किसी को मारने की जरूरत पड़ी हो।
बीते तीन दशकों में समय ने ऐसी करवट ली कि तमाचा मारने का यही वाकया एक बार फिर घटा। इस बच्चे ने भी घर में टीचर की शिकायत लगाई। अगले दिन बच्चे के माता-पिता भी आए और बच्चे के सामने ही टीचर को डराने-धमकाने के अंदाज़ में बोलने लगे कि आपकी हिम्मत कैसे हुई हमारे बच्चे को चांटा मारने की ? आज तक हमने खुद अपने बच्चे पर हाथ नहीं उठाया तो आपको यह अधिकार किसने दे दिया ? एक मामूली सी टीचर की इतनी हिम्मत में आप पर कोर्ट में केस करूंगा कहते हुए बच्चे के मां-बाप बाहर चले गए। आज कोर्ट में लग चुकी तीन तारीखें उसी धमकी का नतीजा थी। बच्चे के माँ-बाप के वह शब्द, मिसेज़ मिगलानी के दिलो-दिमाग से निकल नहीं पा रहे थे। किसी ने ना केवल उन पर बल्कि उनके पेशे पर भी उंगली उठाई थी। टीचर बनने का उनका सामाजिक दंभ कुछ ही पलों में चकनाचूर हो गया। आज उन्हें अपने शैक्षिक जीवन में पहली बार मामूली होने का अहसास हुआ था। वह कुछ पल को मानो जड़ हो गई। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। स्कूल की तरफ बढ़ते हुए उनके कदम ठिठके और वह पीछे मुड़ गई, अपने घर की तरफ।
अगली तारीख पर मिसेज मिगलानी फिर कोर्ट पहुंची। कोर्ट की कार्रवाई शुरू भी ना हुई थी कि उनके लिए लोगों की कातर निगाहों से बचना मुश्किल हो गया। बच्चे के पैरेंट्स और वकील उन्हें दोषी साबित करने के लिए पूरी तरह तैयार थे। जज ने उनसे पूछा, क्या आप अपने ऊपर लगे आरोपों को स्वीकार करती हैं ? वह कुछ न कह पाने की स्थिति में थी। उन्होंने जैसे तैसे स्वयं को संभाला। कोर्ट में उनके साथ हो रहा व्यवहार उन्हें आरोपी कम और अपराधी ज़्यादा साबित कर रहा था। वकील ने बच्चे का मेडिकल दिखाते हुए कहा कि जज साहब अगर थप्पड़ थोड़ा सा भी ऊपर लगता तो बच्चा बहरा भी हो सकता था। इससे पहले कि जज साहब कोई निर्णय देते, मिसेज़ मिगलानी ने अपनी गलती मान ली। उन्होंने स्वीकारा कि गुस्से में आकर उन्होंने तमाचा मार दिया, जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। इसके साथ ही उन्होंने अपना पक्ष भी रखा कि उनकी मंशा बच्चे को बहरा करने की नहीं थी। जज ने उन्हें भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने की नसीहत के साथ ही बच्चे के इलाज की फीस भरने का देते हुए बरी कर दिया। एक तरफ मिसेज़ मिगलानी ने स्वीकार कर लिया था कि गुस्से में उन्होंने थप्पड़ मार दिया था लेकिन दूसरी तरफ बच्चे के माता-पिता का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था। कोर्ट का फैसला निष्पक्ष था।
आज तक हमने खुद अपने बच्चे पर हाथ नहीं उठाया तो आपको यह अधिकार किसने दे दिया ? एक मामूली सी टीचर की इतनी हिम्मत…! मैं आप पर कोर्ट में केस करूंगा कहते हुए बच्चे के मां-बाप बाहर चले गए। आज कोर्ट में लग चुकी तीन तारीखें उसी धमकी का नतीजा थी।
मिसेज मिगलानी को कोई खास फर्क नहीं पड़ा, पर बच्चे के माता पिता खुद को हारा हुआ महसूस कर रहे थे। बच्चे के पिता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। उन्होंने भी कोर्ट में सबके सामने मिसेज़ मिगलानी को धमकी दे दी कि वह यह कैस हाईकोर्ट तक ले जाएंगे लेकिन उन्हें ऐसे बख्शेंगें नहीं। उन्हें जेल की सजा तो दिलवाकर ही रहेंगे ताकि अगलीवार कोई भी टीचर किसी बच्चे पर हाथ उठाने से पहले एक बार तो ज़रूर सोचे। आज हमारा बच्चा कल को किसी और का भी हो सकता है। आज हमारे बच्चे का कान बचा है, शायद कल को किसी की जान ही चली जाए। इनके घरों का गुस्सा, हम स्कूल में अपने बच्चों पर नहीं उतरने देंगे। हम आपको सजा दिलवाकर ही रहेंगे।
जिस टीचर पर भरोसा करके वह अपने बच्चे को ज्ञान प्राप्त करवा रहे थे, जिस टीचर को उन्होंने बच्चे में संस्कार रोपित करने की जिम्मेदारी दी थी, आज वह उसी टीचर को जेल भिजवाना चाहते थे उनकी एक मामूली सी गलती पर उन्हें अपराध बोध महसूस करवाने के बाद भी उनकी तमन्ना मिसेज मिगलानी को जेल करवाने की थी। मिसेज़ मिगलानी ने कोर्ट के बाहर भी बच्चे के माता-पिता से माफी मांगी लेकिन वह पिघलने को तैयार नहीं थे। यह अन्य बच्चों के माता-पिता के हितैशी बनने का मुगालता पाले थे। वह अपने फैसले से अन्य शिक्षकों के लिए मिसाल कायम करने का जिम्मा अपने कंधों पर उठाए थे और एक टीचर को जेल में बंद करवा कर केस जीतना चाहते थे। केस जीतना शायद उनकी शाख का सवाल बन गया था मिरोज़ मिगलानी ने बच्चे के माँ-बाप से मामला रफा-दफा करने की कई बार गुजारिश की, लेकिन वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थे क्योंकि उन पर एक शिक्षक को मामूली टीचर बनाने का भूत जो सवार था। बच्चे के पिता ने तो गुरसे में उन्हें उनकी औकात तक याद दिलाने की चेतावनी दे दी।
मिसेज़ मिगलानी का यह तमाचा अब केस बन चुका था। केस अब हाईकोर्ट पहुंचा और अचानक मीडिया भी बच्चे के माता-पिता की भूमिका में आ गया। कई मीडिया चैनल्स ने तो कोर्ट के फैसले से पहले ही उन्हें अपराधी बनाकर पेश कर दिया। जितने न्यूज़ चैनल्स, उतनी सनसनीखेज बातें कलयुगी टीचर शिक्षक है या हैवान शिक्षिका भूली अपना फर्ज बच्चे पर निकला टीचर का गुस्सा बच्चों को टीचर से बचाए क्यों आपा खो रहे हैं टीचर? इत्यादि, इत्यादि। वहीं, दूसरी तरफ अध्यापकों का ऐसा कोई गुट नहीं था जो मिरोज मिगलानी के पक्ष में आया हो। उनका अपना स्कूल भी इस मामले में उनसे किनारा कर चुका था।
हाईकोर्ट के बाहर जमघट लगा था, मीडिया का लोगों का और टीचर्स का इसी जमघट को पार कर के मिरोज मिगलानी को अंदर जाना था। आज हाईकोर्ट में आने से पहले बारह दिनों के बाद वह मात्र दस मिनट के लिए स्कूल गई थी। स्कूल में उनसे किसी ने बात तक नही की सभी उन्हें हेय दृष्टि से देख रहे थे। गेट पर खड़े गार्ड ने उन्हें व्यक्तिगत व्यवहार के चलते अंदर अपने कमरे तक जाने दिया था, वर्ना स्कूल प्रबंधकों ने तो कोर्ट के फैसल से पहले, उन्हें स्कूल में ना घुसने का नोटिस भी दे दिया था। वह सीधा अपने कमरे में गई, अंदर से दरवाज़ा बंद किया, अलमारी खोली और फिर बंद करते हुए कुछ ही देर में बाहर आ गई। स्कूल से वह सीधा हाईकोर्ट पहुंची। उनके चेहरे के भावों को देख कर ऐसा लगता था कि वह कोई निर्णय ले चुकी हैं। कोर्ट रूम में बच्चे के माता-पिता, उनके पक्ष के लोग और दोनों तरफ के वकील उपस्थित थे। जैसे ही जज ने कोर्ट की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया, निचली कोर्ट में चल रहे थप्पड़ कांड के इस ड्रामे ने बिलकुल नया मोड़ ले लिया।
मिसेज मिगलानी ने जो तथ्य सामने रखे, उसकी किसी ने उम्मीद तक न की थी। उन्होंने सभी के सामने अपने बैग से एक पिस्टल निकालकर अपने हाथों में रख ली। उनके इस व्यवहार से कुछ पलों के लिए कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया। उनका इरादा किसी को मारने का नहीं था, यह साफ जाहिर था लेकिन उनके हाथ की वह पिस्टल कुछ ही मिनटों में पहेली बन गई थी। अब जज के साथ ही सभी की नजरें उस पिस्टल पर टिक गई थी। सभी अवाक होकर पिस्टल को ऐसे देख रहे थे मानो चंद पलों में खुद ही बोलने लगेगी। पिस्टल का मुँह उग आया था और पैने दांत भी दिखाई दे रहे थे उसके लंबे-लंबे नाखून मानो राय की धज्जियाँ उधेड़ने को आतुर थे।
जज ने जब मिसेज मिगलानी से पिस्टल की गुत्थी को सुलझाने के लिए कहा तो उनके अंदर दबा लावा मानो फूट पड़ा। उन्होंने सहज अंदाज़ में सबसे पहले स्पष्ट किया कि यह पिस्टल उनकी नहीं है, लेकिन उनके स्कूल की अलमारी में उस दिन से रखी थी, जब से बच्चे का तमाचा कांड सुर्खियों में है। आप सब सोच रहे होंगे कि प्वाइंट चार बोर की यह जर्मन मेड पिस्टल अगर मेरी नहीं है तो मेरे पास कैसे आई ? इसे मैंने अपने स्कूल की अलमारी में क्यों रखा? सवाल सिर्फ इतना नहीं है बल्कि इससे भी बड़ा सवाल तो यह हैं कि अगर यह पिस्टल मेरी नहीं है तो आखिर यह पिस्टल है किसकी ?
अब इस बड़े सवाल का जवाब यह है कि यह पिस्टल मिस्टर नागेश अरोड़ा की है, जो अनुज अरोड़ा के पिता हैं और अनुज अरोड़ा नौवीं क्लास में पढ़ने वाला वह बच्चा है, जिसे मैंने थप्पड़ मारा था। अब दूसरा सवाल यह उठता है कि अगर यह पिस्टल मिस्टर नागेश अरोड़ा की है तो यह मेरे पास आई कैसे? इसका जवाब यह है जज साहब कि मिस्टर अरोड़ा को तो यह मालूम भी नहीं है कि उनकी लाइसेंसी पिस्टल उनके पास सुरक्षित है भी या नहीं। उन्हें इस बात की जानकारी भी नहीं है कि पिछले एक महीने से उनकी पिस्टल वहीं रखी हैं, जहाँ उन्होंने रखी थी या फिर एक मामूली टीचर की अलमारी में रखी थी। उन्हें इस बात की भनक तक नहीं है कि उनकी पिस्टल उसके यथास्थान से महीना पहले ही गायब हो चुकी है। मिस्टर अरोड़ा जब अपनी चीज़ों को संभाल कर नहीं रख सकते तो अपने बेटे को कैसे संभाल लेते। शायद उनसे कही चूक हो गई।
अपनी लाइसेंसी पिस्टल की हकीकत जानने के बाद मिस्टर अरोड़ा शर्म से पानी-पानी हो गए। कोर्ट में सभी के सामने यह बात आने से उनके पैर तले की ज़मीन खिसक गई।
जज साहब मैंने अनुज अरोड़ा को थप्पड़ मारा, मुझे इसका कोई पछतावा नहीं है। अभी तक मुझे उसे थप्पड़ मारने का अफसोस था लेकिन अब नहीं है। मुझे अफसोस है तो सिर्फ इस बात का कि मैंने उसे सिर्फ एक ही थप्पड़ मारा क्योंकि आत्म-रक्षा में मुझे सिर्फ एक थप्पड़ ही नहीं मारना चाहिए था बल्कि कोई सख्त कदम उठाना चाहिए था। यह मेरा अधिकार है और में उससे भली तरह अवगत हूँ। बच्चे के भविष्य की चिंता करते हुए मैंने कोई सख्त कदम नहीं उठाया, यह मेरी गलती थी मुझे कोई ऐसा कदम उठाना चाहिए था, जिससे बच्चे का भविष्य खराब हो जाता।
अब अगला सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने मेरी सोच ही बदल दी। अभी तक मुझे लग रहा था कि शयद मैंने गलती कर दी लेकिन नहीं। मैं अपनी जगह पर बिलकुल सही हूँ। जज साहब जिस दिन थप्पड़ मारने की यह घटना हुई, उससे एक दिन पहले अनुज और एक बच्चे के बीच लड़ाई हो रही थी। मैंने उन्हें डांटकर अपनी-अपनी क्लास में जाने को कहा। दूसरा बच्चा, मुझे सॉरी मैम, बोलते हुए अपनी क्लास में चला गया लेकिन अनुज का गुस्सा मुझे देखकर भी शांत नहीं हुआ। वह मुझे देख लेने की धमकी देते हुए वहाँ से चला गया। मुझे उसका व्यवहार अजीब लगा लेकिन मैंने उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। जज साहब, वह धमकी ठीक उसी तरह की थी, जिस तरह की धमकी अनुज के पिता नागेश अरोड़ा ने मुझे निचली कोर्ट से बरी होने पर दी थी। मैंने बच्चे के उन शब्दों को उसका आवेश समझ कर टाल दिया लेकिन अगले दिन मिस्टर नागेश अरोड़ा का चौदह साल का बेटा अनुज अरोड़ा अपनी धमकी को अमली जामा पहनाने के लिए मेरे सामने था। उसके पास अपने पिता की लाइसेंसी पिस्टल थी। जब क्लास से सभी बच्चे चले गए तो मौका पाकर उसने वह पिस्टल मेरे माथे पर ठीक यहाँ लगा दी और जान से मारने की धमकी देने लगा। मैंने उसे गुस्से में एक थप्पड़ मार दिया। उसके हाथों से पिस्टल गिर गई और अनुज डरकर वहाँ से भाग गया। उसने घर जाकर अपने माता-पिता से शिकायत की और उसके बाद जो हुआ वो पूरा देश जानता है। शिकायत में उसने यह तो बताया कि मैंने उसे थप्पड़ मारा है लेकिन वह नहीं बताया, जो वह मेरे साथ करना चाहता था।
जजसाहब, आत्म-रक्षा में मेरे पास यह अधिकार है कि मैं अपना बचाव करने के लिए किसी भी तरीके को अपना सकती हूँ इसलिए आज कोर्ट में मुझे यह कहते हुए कोई अफसोस नहीं है कि मैंने अपने बचाव में अनुज अरोड़ा को थप्पड़ मारा। बेशक यह थप्पड़ अगर थोड़ा सा ऊपर कान के पास लगता तो वह बहरा हो सकता था लेकिन वह भी एक जिंदगी के बदले बहुत छोटी सी सज़ा होती इसलिए आज मुझे अपने तमाचे का कोई अफसोस नहीं है।
किसी ने ना केवल उन पर बल्कि उनके पेशे पर भी उंगली उठाई थी। टीचर बनने का उनका सामाजिक दंभ कुछ ही पलों में चकनाचूर हो गया।
अभी तक थप्पड़ कांड के पीछे की हकीकत मिस्टर और मिसेज अरोड़ा भी नहीं जानते थे। अपनी लाइसेंसी पिस्टल की हकीकत जानने के बाद मिस्टर अरोड़ा शर्म से पानी-पानी हो गए। कोर्ट में सभी के सामने यह बात आने से उनके पैर तले की ज़मीन खिसक गई। उन्हें उम्मीद भी ना थी कि उनका 14 साल का बेटा किसी को मारने के लिए अपने पिता की पिस्टल तक चुरा सकता है। वह बेटे की इस हरकत के लिए खुद को दोषी मान रहे थे। अब वह सोच रहे थे कि मामले को कोर्ट के बाहर ही निपटा देना चाहिए था। जिस टीचर को यह दोषी ठहराना चाह रहे थे, उसका तो कोई कसूर ही नहीं था। वह मन ही मन सोच रहे थे कि अगर उन्होंने तमाचा मारने के लिए टीचर को दोष ना दिया होता तो उन्हें आज इस स्थिति का सामना ना करना पड़ता। कठघरे में खड़ी मामूली टीचर के सामने आज वह कठघरे के बाहर खड़े होकर भी मामूली प्रतीत हो रहे थे। काफी देर तक एक दूसरे को हिकारत भरी स्तब्ध नज़रों से देखने के बाद उन्होंने सभी के सामने अपने बेटे को एक ज़ोरदार थप्पड़ मार दिया।
माँ-बाप का यह थप्पड़ अपने बेटे को शायद सही दिशा में लाने का एक शुरुआती प्रयास भर था। क्या मिसेज़ मिगलानी के तमाचे के बाद अब कोर्ट में अगला केस मिस्टर एंड मिसेज़ अरोड़ा के थप्पड़ का होगा ?