अश्रुतपूर्वा II
महाभारत को दूसरे परिप्रेक्ष्य में लें तो हम सभी का जीवन ‘महाभारत’ से कम नहीं। आप सत्य और धर्म के साथ खड़े हैं तो दूसरी तरफ घृणा और द्वेष फैलाते लोग सामने दिखते हैं। झूठ का बाजार फैलाने वाले लोगों से प्रतिक्षण चुनौती मिलती है। ऐसे में कृष्ण ही एकमात्र पथ-प्रदर्शक के रूप में दिखाई देते हैं। अगर जीवन की रणभूमि में अलग-अलग मोर्चे पर युद्धरत हैं तो बेहतर होगा कि आप कृष्ण को अपना सारथी बना लें। वे ऐसे नायक हैं जो राजनीति से लेकर कारपोरेट, कूटनीति लेकर प्रेम औरमित्र-धर्मका संदेश ही नहीं देते बल्कि वे खुद भी इसे जीते रहे हैं। वे हमारी धड़कनों में हैं।
सुपरिचित लेखक मुकेश भारद्वाज की हालिया प्रकाशित पुस्तक ‘महाभारत द गेटवे टू पोलिटिकल मोक्ष’ को पढ़ते हुए अहसास हुआ कि वे अपनी पुस्तक में वे सभी पात्र उतार लाए हैं जो सदियों बाद भी प्रासंगिक हैं। वहीं केंद्रीय पात्र श्रीकृष्ण हर चुनौतियों का हल निकालने के लिए तत्पर दिखते हैं। वे प्रेम करते हैं। मित्रता निभाते हैं। जरूरत पड़ने पर मध्यस्थ बनते हैं। युद्ध भी लड़ते हैं। याद कीजिए उन्होंने न कभी सुदामा का साथ छोड़ा और न राधा का। राधा के प्रयाण के बाद अपनी बांसुरी तोड़ कर फेंक देते हैं।
कृष्ण युद्ध के मैदान में अर्जुन के सारथी बनते हैं मगर वे महाभारत के असली नायक वीर अभिमन्यु की असमय मौत को नहीं भूलते। युद्ध नीति की धज्जियां उड़ाने वालों में कर्ण को भी दंडित कराने से पीछे नहीं रहते। जयद्रथ के वध में उनकी अहम भूमिका रही। युद्ध के मैदान में जब अर्जुन भ्रमित हो गए तो यह कृष्ण ही थे जिन्होंने उनको सत्य और धर्म के विरुद्ध खड़े सगे-संबंधियों की असल पहचान कराई।
चक्र उठाए श्रीकृष्ण की छवि सदैव मानस पटल पर रहती है। एक तो उनका रक्षक रूप है तो दूसरा यह याद दिलाने के लिए कि अगर कोई अति करेगा। सीमा पार करेगा तो वह बचेगा नहीं। वे लौकिक हैं तो अलौकिक भी। युद्ध के दौरान अर्जुन को वे अपना विराट स्वरूप दिखाते हैं। जब उनके रथ का पहिया टूट जाता है तो वे उसे चक्र बना कर भीष्म पितामह को बता देते हैं कि वे मनुष्य रूप में जरूर हैं मगर उनका वास्तविक रूपदूसरा भी है। तो कृष्ण हमें बताते हैं कि जीवन के महाभारत में अति हो जाए तो हमें सशक्त बनना चाहिए। एक सीमा पार करने के बाद विरोधियों को भी क्षमा नहीं करना चाहिए, जैसा कि उन्होंने शिशुपाल के साथ किया।
भारत की राजनीति आज जिस तरह जिस तरह बंटी हुई विचारधारा के बीच चल रही है, उसके बीच यह पुस्तक रहनुमाओं से सवाल करने के लिए आपको तैयार करती है। असुरक्षा की भावना से ग्रस्त नागरिक वर्तमान राजनीति के वे तमाम कठोर चेहरे देख सकते हैं, जिनकी वजह से कभी कुरुक्षेत्र में युद्ध हुआ।
लेखक मुकेश भारद्वाज की पुस्तक ‘महाभारत गेटवे टू पोलिटिकल मोक्ष’ ऐसे समय आई है जब देश की राजनीति निर्णायक दौर से गुजर रही है। कुछ ही महीने बाद ‘चुनावी महाभारत’ का आगाज होने वाला है। इस पुस्तक में महाभारत के प्रमुख पात्रों का अलग-अलग अध्यायों में इस तरह वर्णन है कि वे समकालीन राजनीति का ही हिस्सा लगते हैं। यह पुस्तक पात्रों की नियति को सामने रखते हुए भारतीय राजनीति और समाज की मनोदशा को भी व्याख्यायित करती है। अभिमन्यु पर लिखा अध्याय बताता है कि युद्ध हो या राजनीति क्रूर योद्धा अपनी जीत के लिए सभी नियमों को ताक पर रख देते हैं। इस तरह की प्रवृत्ति आज की राजनीति का भी हिस्सा बन गई है। हम ऐसे चरित्र को देख सकते हैं।
महाभारत में एक पात्र ऐसा भी है जिसे युद्ध के मैदान में होना चाहिए था, मगर वह हाशिए पर है। यह पात्र है-बर्बरीक। मुकेश भारद्वाज बताते हैं कि हम सभी की हालत भी बर्बरीक की तरह है। हम सभी जानते हैं कि योद्धा भीम का पौत्र युद्ध को पलटने में समर्थ था। मगर युद्ध के मैदान में उसे मूक दर्शक बना दिया गया। सत्ता की राजनीति में भी जनता इसी तरह हाशिए पर है।
महाभारत वस्तुत: नीति-सिद्धांत, मानवीयता, सत्य-धर्म और प्रेम को बचाने का युद्ध है। यह युद्ध आज भी किसी न किसी रूप में जारी है। इस मायने में यह पुस्तक बेहद प्रासंगिक है। इसे पढ़ने के लिए आप प्रेरित होंगे क्योंकि लेखक ने आपको अपनी जड़ों से ही नहीं अस्तित्व से भी जोड़ा है। उन्होंने मौजूदा व्यवस्था के पीछे राजनीतिक परिदृश्य को दिखाने की भी कोश्शि की है। इसे पढ़ते हुए राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं, पितृसत्ता, कूटनीति-अनीति और अधर्म की राजनीति को स्वयं परख सकते हैं।
मुकेश भारद्वाज महाभारत के वे सभी अहम पात्र उठा लाए हैं जो आज की खोखली राजनीति के बरक्स हैं। भारत की राजनीति आज जिस तरह जिस तरह बंटी हुई विचारधारा के बीच चल रही है, उसके बीच यह पुस्तक रहनुमाओं से सवाल करने के लिए आपको तैयार करती है। असुरक्षा की भावना से ग्रस्त नागरिक वर्तमान राजनीति के वे तमाम कठोर चेहरे देख सकते हैं, जिनकी वजह से कभी कुरुक्षेत्र में युद्ध हुआ।
लेखक ने इस पुस्तक में दुर्योधन, द्रोणाचार्य, शिखंडी अश्वत्थामा, बलराम, कर्ण, शकुनि, विदुर, युधिष्ठिर, गांधारी इत्यादि को समकालीन राजनाति की कसौटी पर रखा है। इन पर रचे सभी अध्यायों की शुरुआत में उन्होंने संक्षिप्त सार दिया है जो सूत्रधार का काम करता है। आप पढ़ने के लिए उत्सुक हो सकते हैं। किताब वाणी बुक कंपनी ने छापी है। पुस्तक का आवरण ध्यान आकृष्ट करता है। प्रकाशक ने उम्दा कागज पर बेहतरीन छपाई कराई है जो आंखों को सुखद लगती है और शब्द धीरे-धीरे मन में उतरने लगते हैं।