समीक्षा पुस्तक

कठोर जिंदगी का मर्म तलाशता एक कवि

अश्रुतपूर्वा II

अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का काव्य से श्रेष्ठ कोई माध्यम नहीं है। मन में प्रस्फुटित होते भावों को अगर शब्द मिल जाए तो कहना ही क्या। शिल्प की कमी रह जाए तो अनगढ़ सौदर्य भी अपना आकार लेकर पाठक के हृदय को छू लेता है। इन दिनों कविताएं खूब लिखी जा रही हैं। काव्य संग्रह भी अच्छी-खासी संख्या में सामने आ रहे हैं। कुछ के लिए कविता शगल हो सकती है, मगर कुछ के लिए जीवन जीने का जरिया भी है। कवि किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो, पर उसकी बस यही चाह कि दुख-सुख के भाव को वह दूसरों से बांट लें।
कोई भी कविता महज कवि की निजी भावनाओं पर केंद्रित हो जाए तो वह कविता बहुत दूर तक नहीं जाती। इसलिए उसे सामाजिक सरोकार से जुड़ना ही पड़ता है। लोक मंगल की कामना करनी ही होती है। हमारे यहां कबीर, सूरदास और तुलसी इसलिए बड़े कवि है क्योंकि वे समाज को जगाते हैं। मन में भक्ति भावना को पोषित करते हैं। लोक मंगल की कामना करते हैं। ये कवि कई सौ साल बाद भी इसलिए याद किए जाते हैं।
अभी पिछले दिनों तकनीक के क्षेत्र से जुड़े युवा कवि पंकज गुप्ता ने कविता लेखन में दस्तक दी है। आईआईटी दिल्ली से इंजीयिरिंग कर चुके पंकज नवउद्यम से लेकर उद्योग जगत में कई भूमिका निभा चुके हैं। एक क्षेत्र विशेष से जुड़े होने के बावजूद उनके मन में बैठा कवि कुछ न कुछ लिखने के लिए उन्हें प्रेरित करता रहा। जीवन लंबा नहीं, बड़ा होना चाहिए, इस अवधारणा को आत्मसात करने वाले पंकज अपने आसपास की हलचल और साधारण सी घटनाओं को बेहद गहराई से देखते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी कितनी ही कठोर हो मगर उसके पीछे भी एक संवेदना होती है। उस मर्म तक कवि पहुंच कर शब्द दे देता है, तो वह कविता बन जाती है। पंकज ने यही किया है।
हाल में प्रकाशित पंकज का काव्य संग्रह ‘आज कल’ ने सभी का ध्यान खींचा है। क्यों न हो, आखिर तकनीक का आदमी कविता लिख रहा है। निश्चित तौर से उनके लिखने की शैली सरल और सहज है। जिंदगी के हर जज्बात को, हर रिश्ते को सपनों और महत्वाकांक्षाओं को वे शब्द देते हैं। कहीं-कहीं वे संदेश देते भी प्रतीत होते हैं। कवि का यह भी धर्म होना चाहिए। कविताएं स्वांत: सुखाय से बढ़ कर लोक सरोकार की ओर बढ़ने लगे तो कवि का कर्म संपूर्ण हो जाता है। यही उसका समाज के प्रति दायित्व भी है। पंकज ने बेहद मासूमियत से यह कोशिश की है।
एक सौ बीस पेज के काव्य संग्रह ‘आज कल’ में पंकज की कई कविताएं हैं जो जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं को सामने रखती हैं। उन्हें पढ़ते हुए आप ठहर जाते हैं या फिर तेजी से आगे बढ़ते हैं, ठीक अपनी जिंदगी की तरह। मनुष्यों को लेकर उनकी कविता कितनी सच बयानी करती है-

बदल जाते हैं हालात, इंसान नहीं बदलते
लाख समझाने पर भी, दिल के अरमान नही बदलते।

पंकज हवा, पेड़-पौधा और मौसम से भी संवाद करते हैं। एक कविता है उनकी। जरा देखिए- मौसम ने हमसे, यूं ही पूछा…/ बताइए क्या खबर है/हमने कहा गरम हवाएं/ भी देती सुकून हैं/किसी की तासीर का/ हुआ ऐसा असर है…। बड़ी-बड़ी बातों या बड़ी घटनाओं को कवि संक्षेप में शब्द देता है। पंकज तो कुछ शब्दों में अपनी बात रखने का कौशल रखते हैं-
बहुत सी कविताएं सुन कर
समझ थोड़ा सा, यह जमाना आ गया
और जरा सा…बड़ी बातों को,
छोटे लफ्जों में बताना आ गया।

पंकज की छोटी-छोटी कविताएं गुरुतर भाव लिए हुए हैं। अगर सौ ग्राम वजन की हैं, तो भाव किलो भर का है। उन्होंने जिंदगी की रफ्तार की जो सच्चाई है उसे कितनी सहजता से प्रस्तुत किया है-
जरा थम कर देखो तो,
दुनिया अलग ही दिखती है…
जब सब कुछ धीरे ही अच्छा है,
तो हर जगह स्पीड क्यों बिकती है।

कुल जमा ये कि पंकज की शुरुआत अच्छी है। उम्मीद है कि वे भविष्य में और बेहतर कविताएं लेकर सामने आएंगे। उनका काव्य संग्रह आज कल ‘बीकमसेक्सपीयरडॉटकॉम’ ने प्रकाशित किया है। एक सौ निन्यानवे रुपए का यह संग्रह अखरता नहीं। आकर्षक आवरण के साथ पुस्तक की छपाई भी साफ-सुथरी है।

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