अश्रुतपूर्वा II
बसंत पंचमी खत्म होते ही हम लोग होली का इंतजार करने लगते हैं। होली का रंग दस-पंद्रह दिन पहले ही चढ़ने लगता है। गुब्बारे, पिचकारी बच्चों और युवाओं की पसंद होती है। असल में इन दिनों हर कोई बच्चा बना नजर आता है। सबकी जुबान पर बस एक ही बात होती है-बुरा न मानो होली है। इस दिन ‘नहीं’ं कहने वालों की भी ‘हां’ में बदल जाती है। और लोग जम कर होली का आनंद लेते हैं। इसलिए आपका मित्र या कोई अन्य इस दिन गुलाल लगाए लगाए, तो नाराज मत होइए। बस समझा दीजिए। इस त्योहार का मजा लीजिए।
कहते हैं होली के दिन दुश्मन को भी गले लगा लेना चाहिए। अगर आपका कोई दोस्त नाराज है तो फिर उसे मनाने का इससे अच्छा कोई दिन नहीं हो सकता। होली की कोई भी शरारत अगर लोगों को बुरी लगती है तो उनसे सिर्फ इतना भर कहना होता है- होली है। फिर सारी शिकायतें माफ।
होली के दिन बड़े भी बच्चे बन जाते हैं। हों भी क्यों न। यही वह दिन है जब बच्चों की तरह आप शरारती हो जाते हैं। तो एक बार फिर बचपने को महसूस करने के लिए तैयार हो जाइए। अपनों पर पिचकारी से रंग डालना या गालों पर गुलाल लगाना और फिर थोड़ी देर के लिए खुद को दूसरों से बचाना, बचपना ही तो है। कुछ पल के लिए यह खुशी इस त्योहर पर सहेज लेना चाहिए।
दस साल की सारिका को अपने दोस्तों के साथ पिचकारी खेलना पसंद है। साथ ही पड़ोस के बच्चों को रंग भरे पानी से सराबोर करना भी। अपने दोस्तों और रिश्तेदारों पर इस दिन रंग-गुलाल लगाना आपके प्यार को दर्शाएगा। और कभी न भूलने वाली यादें दे जाएगा। अच्छा होगा कि उनके गालों पर सूखे रंग लगा दें। फिर देखिए उनके चेहरे कैसे खिल उठते हैं।
कई लोग इस दिन सफेद कपड़े पहनना पसंद करते हैं। काफी लोग पुराने कपड़े पहन कर ही होली खेलते हैं। लेकिन जब सफेद कपड़े में रंग-गुलाल खेलते हैं, तो आप कितने रंग-बिरंगे लगते हैं। इसका आनंद ही कुछ और होता है। सुबह सफेद कपड़े पहने हैं तो दोपहर तक पता ही नहीं चलता कि ये सफेद थे। शिल्पी का कहना है कि वह होली के लिए हमेशा सफेद-सलवार कमीज सिलवाती है। इस त्योहार का असर ऐसा है कि हर कोई अपने आप को अलग-अलग रंगों से सराबोर पाता है। इसलिए सफेद कपड़े से शुरुआत हो तो अच्छा है। हिंदी फिल्मों ने इस चलन को बढ़ाया है। फिल्मी हस्तियां अकसर सफेद कपड़े पहन कर होली खेलती हैं।
होली के दिन गुजिया से बेहतर पकवान नहीं है। हालांकि हर घर में तरह-तरह के पकवान बनाए जाए जाते हैं। जैसे गुड़ और चीनी के पुए। मालपुए तो खास तौर से। मगर गुजिया फिर भी सबकी पहली पसंद होती है। गुजिया में भरा खोआ, किशमिश-बादाम और इलायची एक अलग तरह का दिव्य स्वाद देती है। घर से लेकर मन तक इस खास मिठास से सुवासित हो उठता है। होली से दो-तीन दिन पहले मिठाइयों की तमाम दुकानों में बस गुजिया बिकती हैं।
होली के दिन अगर ठंडाई का आनंद न लिया जाए तो यह त्योहार शायद अधूरा रह जाए। कई लोग सादी ठंडाई पसंद करते हैं। मगर कई लोग इस दिन खास तौर से भांग की ठंडाई भी बनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह शिवजी का प्रसाद है। ठंडाई के अलावा इस दिन भांग की और भी चीजें बनाई जाती हैं। जैसे भांग के लड्डू, भांग के पकौड़े वगैरह। याद रहे यह होली पर तो ठीक है मगर इसे आदत न बनाएं। जितना संभव इस दिन मदिरा से दूर रहें। मगर लोग मानते नहीं।
रंग, गुजिया और भांग के बाद अगर संगीत पर न थिरके तो कैसी होली। होली के गीत भी लोग गाते हैं। होली के गानों की तो अपने यहां कमी नहीं है। हिंदी फिल्मों में होली पर इतने गीत हैं कि इसे सुन कर आप झूमे बिना नहीं रह सकते। बस गानों का सिलसिला शुरू कीजिए और देखिए क्या आनंद आता है। होली साल में एक बार ही आती है तो क्यों न इस दिन झूम लें। जरा जी लें।
कहते हैं होली के दिन दुश्मन को भी गले लगा लेना चाहिए। अगर आपका कोई दोस्त नाराज है तो फिर उसे मनाने का इससे अच्छा कोई दिन नहीं हो सकता। होली की कोई भी शरारत अगर लोगों को बुरी लगती है तो उनसे सिर्फ इतना भर कहना होता है-होली है। फिर सारी शिकायतें माफ।