सांवर अग्रवाल II
नहीं थे घर में खाने को दाने
सब दोस्त मारते थे ताने
भाई का आया जन्मदिन
मन हुआ रिमझिम रिमझिम।
जन्मदिन भाई का मनाऊं कैसे
केक कहां से लाऊंगा
एक पैसा नहीं है जेब में
बाजार कैसे जाऊंगा।
पापा-मम्मी जाते काम पर
रह जाते हम अकेले,
पैसेवाले खूब दिखाते
हमको जन्मदिन के मेले।
हो जाए चाहे कुछ भी
मैं छोटे पर प्यार लुटाऊंगा
मम्मी की बनाई रोटियों पर
मोमबत्ती चिपकाऊंगा।
ये सोचते ही मन में उल्लास भरा
बड़े भाई के मन में प्यार जगा
रोटी के बीच रख कर चटनी
करने लगे दोनों मस्ती।
मोमबत्ती रोटी के किनारों पर
हैप्पी बर्थडे होठों पर
बड़ों का छोटों पर दिखा प्यार
जन्मदिन हुआ शानदार।