उपन्यास

पहली औरत…  राना लियाकत बेगम!

राजगोपाल सिंह वर्मा II

दूसरी मुलाक़ात
शरारा सूट पहने और सर पर पल्लू ढँके वह खूबसूरत महिला ‘वेंगर्स’ कैफ़े के एक ऐसे कोने की टेबल पर अकेली बैठी थी, जहाँ से आवाजाही आसानी से दिखती थी। उस कन्फेक्शनरी और कैफ़े शॉप में काफी रौनक थी, पर इस सम्भ्रांत महिला को किसी ख़ास व्यक्ति का इंतज़ार था इसलिए वह बेचैन थी। उसकी निगाहें इस जगह की खुशबूओं को अनदेखा करती हुई बार-बार मुख्य द्वार के शीशे के पार जा रही थी। उन दिनों कनाट प्लेस में यह विशाल पेस्ट्री-कंफेक्शनरी शॉप और कैफ़े ब्रिटिश अधिकारियों, नवाबों और समृद्ध लोगों की चहलकदमी का चर्चित स्थल हुआ करता था। हो भी क्यों न! अपने किस्म का एकमात्र और लजीज स्विस पेस्ट्री का अड्डा जो था।
“हेलो…!”,
वह आ गया था. युवती ने उठकर, फिर थोड़ा अदब से झुक कर उस आगन्तुक को सलाम किया, जिसके इन्तजार में वह बार-बार खिड़की-दरवाजे और कभी अपनी कलाई घड़ी को देख रही थी.
“गुड इवनिंग आइरीन! मुआफ़ कीजिये, थोड़ा देर हुई”,
लगभग पौने छह फुट के इस मध्यम आयु के आगन्तुक ने अपनी कुर्सी महिला के नजदीक खिसकाते हुए क्षमा माँगते हुए कहा।
क्या वाकई में देर हुई थी? शायद हाँ भी और शायद नहीं भी!
‘हाँ’ इसलिए कि वह पुरुष प्रथमतः मारग्रेट आइरीन पंत से लगभग दस साल बड़ा था. दूसरे, पूर्व में ही विवाहित था तथा तीसरी बात जो उसको नापसंद करने का बड़ा कारण थी, उसका दूसरे समुदाय से मुस्लिम होना था।
इसके विपरीत ‘नहीं’ के लिए भी मजबूत कारण थे. पहला कारण उस व्यक्ति विशेष का भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन की प्रथम पंक्ति में मजबूती से खड़ा होना था, दूसरा उसका ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त होना था। तीसरी बात जो उसके पक्ष में जाती थी वह उसका करनाल और मुजफ्फरनगर के प्रतिष्ठित और प्रभावी कुलीन नवाब परिवार से होना था, जिनकी बेहिसाब जागीर आसपास के इलाकों में फैली हुई थी। वह बाद में मुजफ्फरनगर निर्वाचन क्षेत्र से संयुक्त प्रांत की विधान परिषद में भी चुन कर आया था।
लखनऊ के सांस्कृतिक कार्यक्रम में हुई दोनों की पहली मुलाक़ात में उन्होंने एक दूसरे के काफी विचारों को भी जाना था। आइरीन मूल रूप से अल्मोड़ा के एक प्रतिष्ठित उच्च ब्राह्मण कुल से ताल्लुक रखती थी, परन्तु उसके पूर्वजों ने ईसाई धर्म को अपना लिया था, सो वह मारग्रेट आइरीन पंत के नाम से जानी जाती थी. उसके पिता डैनियल पंत ब्रिटिश हुकूमत में सचिवालय सेवा के अफसर थे और इलाहाबाद, लखनऊ तथा नैनीताल में पोस्टिड रहे थे. आइरीन स्वयं सामाजिक और शैक्षिक रूप से बहुत सक्रिय और खुले विचारों की थी। उसने लखनऊ विश्वविद्यालय के अधीन आने वाले इस्साबेला थॉमस कॉलेज फॉर वीमेन से अर्थशास्त्र और धार्मिक अध्ययन में ग्रेजुएशन किया था। फिर दो वर्ष बाद ही उसने विश्वविद्यालय से दुहरी पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्रियां प्राप्त की अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान में। उसे वित्त प्रबन्धन में रुचि थी, पर अन्य विषयों पर भी उसका समान अधिकार था, ख़ास तौर से महिला सशक्तिकरण, अंतरराष्ट्रीय मसलों और कूटनीति पर।
पहली मुलाक़ात के बाद बात आई-गई हो गई होती अगर ये नवाब साहब जो १९२६ के चुनाव में मुजफ्फरनगर की मुस्लिम आरक्षित सीट से चुनाव लड़ कर लखनऊ की असेंबली में पहुंचे थे, वहाँ तथा अपने दल के विभिन्न फोरमों पर की गई अपनी जोरदार तकरीरों से चर्चा में न आ गए होते. तब तक आइरीन दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ कॉलेज ऑफ़ वीमेन में अर्थशास्त्र की कक्षाओं को पढ़ाने के लिए

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राजगोपाल सिंह वर्मा

“बेगम समरू का सच” नामक औपन्यासिक जीवनी का प्रकाशन. इस पर उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, लखनऊ द्वारा ‘पं महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान’ और एक लाख रु की पुरस्कार राशि प्रदत्त. पुस्तक का प्रकाशन अंग्रेजी में भी हो रहा है.
ऐतिहासिक विषयों पर कई किताबें प्रकाशित और प्रकाशनाधीन. दो कहानी संग्रह प्रकाशित.
कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार-२०१९ आयोजन में श्रेष्ठ कहानीकार घोषित.
राष्ट्रीय समाचारपत्रों, पत्रिकाओं, आकाशवाणी और डिजिटल मीडिया में हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लेखन, प्रकाशन तथा सम्पादन का अनुभव. कविता, कहानी तथा ऐतिहासिक व अन्य विषयों पर लेखन. ब्लागिंग तथा फोटोग्राफी में भी रुचि.

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