समीक्षा पुस्तक

और अपने पीछे खुशबू छोड़ गई क़ितारा

अश्रुत पूर्वा II

जीवन के स्याह रंगों से उबर कर जब कोई युगल नीले आसमान में पक्षियों के मानिंद उड़ चलता है तो लगता है यह कितना सुकून भरा होता होगा।  और यह जानते हुए भी कि उस उड़ान की कोई मंजिल भी नहीं है। न ही वे लौटना चाहते हैं। चर्चित लेखिका सुषमा गुप्ता का उपन्यास ‘क़ितराह’ कुछ ऐसा ही है। गृहयुद्ध के बीच सीरिया में भयावह यातनाएं सह कर आई क़ितारा और कई सैन्य मुहिम के बाद लगभग खुद को खो चुके मेजर त्रिजल की कहानी ऐसी ही है। ये दोनों ही पात्र अपनी सारी उदासियों को खुरच कर दूर कहीं जाना चाहते हैं जहां वे अपनी बिखरी हुई जिंदगी सहेज सकें और लौट सकें फिर से अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए।
सुषमा गुप्ता का यह उपन्यास स्नेह में आबद्ध दो पात्रों की महज एक यात्रा भर नहीं है। यह प्रेम का अनहद नाद भी है। नायिका क़ितारा ने अपने नाम के अनुरूप पूरे उपन्यास में जैसे खुशबू बिखेर दी है। दो अजनबी स्त्री और पुरुष धीरे-धीरे इस कदर करीब आते हैं कि दोनों के बीच एक रूहानी और अंतत: दैहिक  रिश्ता भी कायम हो जाता है। इस उपन्यास में ईश्वर से शिकवा भी है। यह शिकायत खुद कितारा की है- ‘…सोचती हूं कि कैसा होता होगा ईश्वर का कलेजा जब वह एक सांचे में डालता है विशुद्ध पिघलता प्रेम, फिर ठीक बीचोबीच छुरी से काट के अलग करके, बना देता है दो आकृतियां और दोनों को भेज देता है अलग-अलग परिवेश, अलग-अलग काल और कभी-कभी दो बिल्कुल अलग दुनियाओं में। फिर भी एक रोज दोनों मिल ही जाते हैं नियति के विरूद्ध और रचने लगते हैं एक अपनी अलग अलौकिक दुनिया… क्या मुस्कुराता होगा उस पल ईश्वर!’  
इस उपन्यास के दोनों पात्र इतने प्यारे हैं कि इनकी यात्रा में साथ चलते हुए लगा कि यह सफर कभी खत्म न हो। मगर प्रेम हो या जीवन हर एक यात्रा का अंत है। इनकी आंखें कई बार इतनी सजल हो उठती हैं कि लगता है जैसे स्पीति नदी का जल वहां ठहर गया हो। उनकी एक रात का दैहिक प्रेम भी जैसे प्रकृति का संगीत बन गया। चांद से लेकर अनेक फूल भी उस प्रणय लीला का साक्षी बनने को आतुर हो उठे। यह लेखिका के भाषा कौशल और काव्य बिम्ब का ही कमाल है कि वे उस पल को भी बेहद खूबसूरत बना देती हैं।  
जीवन में सब कुछ गवां चुके इस युगल के बीच कब और कैसे प्रेम प्रगाढ़ होता जाता है, उपन्यास को पढ़ते हुए महसूस किया जा सकता है। पहाड़ों से होते हुए सीमा पर भारत के अंतिम गांव तक की यात्रा पर आप चलते जाते हैं। क़ितारा और त्रिजल की डायरी अलग-अलग अध्यायों के साथ 256 पेज में सिमटी है जो पाठकों को लागातार बांधे रखती हैं। एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तो फिर पढ़ते चले जाते हैं। त्रिजल की जिंदादिली, उसकी मासूमियत और भावुकता दिल को छूती है। मां की सिखाई भाषा के कारण लगता ही नहीं कि क़ितारा सीरिया में पली-बढ़ी डाक्टर है। वह एक बेहद खूबसूरत दिल रखती है जो अपने प्रथम पुरूष को सौंप देना चाहती है। यहां तक कि सर्वस्व भी न्योछावर कर देती है। उसका मान त्रिजल भी रखता है।
उपन्यास का अंत दुखांत है। मिलन की प्यास अधूरी रह गई है। यही वजह है कि क़ितारा के लौट जाने के बाद त्रिजल भी उसके पास जाना चाहता है। आगे क्या हुआ होगा, यह लेखिका ने आपकी कल्पना पर छोड़ दिया है। यह हर उस प्रेम की अधूरी गाथा है जिसे प्रत्येक सहृदय पाठक को अवश्य पढ़ना चाहिए। कुछ महीने पहले आए इस उपन्यास को हिंद युग्म ने छापा है। इसका मूल्य 249 रुपए है।  

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ashrutpurva

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