आलेख बाल वाटिका

स्टीफन हॉकिंग ने कभी नहीं मानी हार

अश्रुत पूर्वा II

बच्चों, आज हम आपको स्टीफन विलियम हॉकिंग के बारे में बताएंगे। हॉकिंग का नाम तो आपने सुना ही होगा। अपने जीवन काल में वे एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित रहे। उस बीमारी की वजह से उनका पूरा शरीर पक्षाघात का शिकार हो गया था। इससे उनकी मांसपेशियां पूरी तरह शिथिल पड़ गई थी। फिर भी ब्रिटेन के इस प्रोफेसर को अल्बर्ट आइंस्टाइन के बाद दुनिया का सर्वाधिक बुद्धिमान भौतिकशास्त्री के रूप में जाना जाता है। जानते हो क्यों। हमें उनके बारे में जान कर उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
बच्चो, जब वे महज 21 साल के थे तब डाक्टरों ने उनकी जांच के बाद बताया था कि वे मात्र ढाई साल और जीवित रह सकेंगे। मगर उन्होंने हार नहीं मानी। स्टीफन हॉकिंग अपनी बीमारी से लगातार जूझते रहे। एक समय ऐसा भी आया जब उनके हाथ पांव और जुबान ने काम करना बंद दिया। वर्ष 1988 में उनकी लिखी पुस्तक ‘अ ब्रीफ हिस्ट्री आफ टाइम’ इतनी प्रसिद्ध हुई कि 50 से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। अभी तक इसकी करोड़ों प्रतियां बिक चुकी हैं।
स्टीफन हॉकिंग कहते हैं कि, वैसे तो मैं अपनी बीमारी को खास महत्त्व नहीं देता परंतु मुझे देख कर यदि आप में कुछ करने का जोश पैदा होता है तो यह मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात होगी। वीलचेयर पर पड़े रहने के बावजूद उन्होंने खुद को कभी विकलांग नहीं माना। उनका मानना था कि दुनिया में कोई भी मनुष्य विकलांग नहीं है। आठ जनवरी 1942 को जन्मे हॉकिंग ने साबित कर दिया कि कोई इंसान शरीर से विकलांग हो सकता है, लेकिन दिमाग से नहीं।
स्टीफन का कहना था कि उनकी शारीरिक अक्षमताओं के कारण ही उन्हें ब्रह्मांड पर किए गए अनुसंधान पर सोचने का काम मिला। उन्होंने कहा था कि हमारा दिमाग एक कंप्यूटर की तरह है, जो उसके अलग-अलग हिस्से के फेल होने के चलते काम करना बंद कर देता है। अपने 75 साल के जीवन में वे करीब 53 साल वीलचेयर पर रहे।

स्टीफन हॉकिंग ने कहा था हमारा दिमाग एक कंप्यूटर की तरह है।
दुनिया में कोई भी मनुष्य विकलांग नहीं है।

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