पुस्तक समीक्षा

आज भी सवाल, स्त्री क्यों डरती है

अश्रुत पूर्वा संवाद II

सचमुच यह एक बड़ा सवाल है। यह सवाल समाज के संवेदनशील लोगों को खटकना चाहिए। उन पढ़ी-लिखी स्त्रियों को भी खुद से सवाल करना चाहिए कि वे डरती क्यों हैं। बाल्यकाल में अपने पिता से। किशोरावस्था में अपने भाई से। विवाह उपरांत अपने पति से। वृद्धावस्था में अपने ही उस बेटे से जिसे वे पाल-पोस कर बड़ा करती हैं। सचमुच यह सवाल आहत करता है। छत्तीसगढ़ की युवा कवयित्री संतोषी बघेल का सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ‘स्त्री क्यों डरती है’, इसी सवाल से मुठभेड़ करता है।
अंग्रेजी व्याख्याता संतोषी बघेल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहीं स्त्रियों पर निरंतर लिख रही हैं। वे जहां प्रेम और जन-सरोकार पर लिखती हैं, वहीं विरही नायिका के मन को भी अभिव्यक्त करती हैं। लेकिन जब बात स्त्री विमर्श की होती है तो उनकी कविताओं का कैनवास बड़ा हो जाता है। वह यह सवाल खड़ा करती हैं कि आखिर एक स्त्री क्या चाहती है, शायद वो खुद भी नहीं जानती। वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए और अपने ख्वाबों को बुनने के लिए विद्रोह करना चाहती है।
संतोषी बघेल लिखती हैं कि स्त्री लीक से हट कर चलना चाहती है। अपने ढंग से जीना चाहती है, मगर एक कदम पीछे हट जाती है, यह सोच कर कि लोग कहेंगे कि यह औरत उच्छृंखल हो गई है। वह डरती है कि वे उनकी जीवन शैली के नाम पर टिप्पणी न टांक दें। वह बार-बार डरती है और इसी डर से समाज को उसे डराने का मौका मिल जाता है। फिर भी कवयित्री को भरोसा है कि स्त्री लड़ सकती है-अपनी नियति के खोखलेपन को अनावृत्त कर सकती है/अपने साहस से चाहे तो/ हर नियम को चुनौती दे सकती है।
कवयित्री का यही निष्कर्ष है कि कोई भी स्त्री अपने दृढ़ निश्चय पर कायम रह कर अपने डर को दूर कर सकती है। अपनी भूमिका में उन्होंने लिखा है कि उन्होंने स्त्री के हर उस अहसास को उकेरने की कोशिश की जो उनसे होकर गुजरे। उनके बेहद करीब होकर गुजरे। वे कहती हैं कि उनकी कविताएं कभी प्रेम में लिखी गई, गहरी पीड़ा में, तो कभी उदासियों के बोझिल क्षणों में।
संतोषी बघेल ने अपने काव्य संग्रह ‘स्त्री क्यों डरती है’ को तीन अध्याय में बांटा है। पहला-स्त्री विमर्श। इसमें 11 कविताएं हैं। दूसरा अध्याय है-‘प्रेम और सरोकार’। इसमें 26 कविताएं हैं। तीसरे अध्याय ‘विरह’ में 35 कविताएं हैं। इन सभी कविताओं में स्त्री मन के अलग-अलग शेड हैं। संतोषी की कविताओं में जहां प्रेम के लिए उत्कंठा है, तो विरह भी उतना ही सघन। वहीं जन-जीवन और सरोकार से जुड़ी कविताएं रच कर वे इंद्रधनुषी कोलाज बनाती हैं।
यह काव्य संग्रह विरही नायिका की स्मृतियों का स्मारक है। वहीं इसमें सम्मिलित प्रेम कविताएं जीवन का उल्लास अभिव्यक्त करती हैं। एक संघर्षशील स्त्री अपनी स्वतंत्रता और उज्ज्वल भविष्य के लिए अपना एक कदम आगे बढ़ाती है, तो सबसे पहले उस मां को याद करती जिससे उसकी कुछ शिकायतें भी हैं-
मां ने क्यों नवाजी ये जिंदगी/पूछना चाहती हूं उससे/क्यों दीं ये घुटी हुई सांसें/समाज में पल-पल सिसकने के लिए।
संतोषी बघेल के काव्य संग्रह भावों का सुंदर गुलदस्ता है। उसमें विविध सौंदर्य है। कवयित्री बघेल शब्दों के चयन में बेहद सतर्क दिखती हैं। वे तत्सम शब्दों का बेहद खूबसूरती से प्रयोग करती हैं। उनकी भाषा में एक लय है, एक मिठास है जो उनकी कविताओं को पठनीय बनाता है। इन कविताओं से हर स्त्री पाठक स्वयं को जोड़ सकती है। यही इसकी बड़ी विशेषता है। इस काव्य संग्रह को रायपुर के अस्तित्व प्रकाशन ने छापा है। मूल्य है 230 रुपए।

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