लघुकथा

आदमी एक लघुकथा

अजय कुमार II

रोज लगभग शाम सात बजे के आस पास मेरे कमरे पर एक नियमित दस्तक होने लगी थी। वह अंदर आते और बैठ जाते, फिर बातों का एक सिलसिला शुरू हो जाता था। चाय से शुरू होता और देर शाम तक चलता ही रहता।
वो एक रिटायर्ड आदमी थे।किसी कॉलिज में एक लैक्चरर थे ।एक दिन पास वाले पार्क में मुझे मिल और मेरी बैंच पर आ बैठे । जब उन्हे पता चला कि मैं अकेले रहता हूं और अपने ट्रांसफर पर आया हुआ हूं उनके शहर में तो बस सीधे वो मेरे कमरे तक आ गये।मैंने उन्हे चाय बना कर पिलाई जो उन्हे बेहद पसन्द आई।मैं बोला, “मैं रोज ऑफिस से आ कर इसी वक्त चाय पीता हूं,आप भी आ जाया कीजिए..जब आपका मन चाहे..।”
पहले तो वो यदा कदा आये। फिर मुझसे इतना घुल मिल गये कि रोज रोज आने लगे।बस फिर क्या था वो बकायादा मेरे लिए रोज कुछ नयी बात, नयी जानकारी या नयी खबर लाने लगे, अपनी एक्सपर्ट ऑपिनियन के साथ।मुझे भी ये रूटीन अच्छा लगने लगा था।एक आदत सी हो गई थी मुझे उनकी।पर एक दिन वो नहीं आये।कुछ देर तक तो मैंने इंतजार किया। फिर मरे मन से अपने लिए ही सिर्फ चाय बनाई।
पर वह अगले दिन और उससे अगले दिन भी नहीं आये तब तो मैं कुछ परेशान सा हो गया।मैंने तो कभी उन से उनके घर का पता भी नहीं पूछा था । जरूरत ही नहींपड़ी थी कभी ऐसी। पता नहीं कौन सा मकान था उनका।होगा तो पास ही कहीं। मन में कई तरह के ख्याल आए,जैसे जेहन में एक कीड़ा सा कुलबुलाने लगा।
आखिर एक शाम मैं उनकी दरियाफ्त करने निकला।इधर उधर पूछा, तब जा कर पता चला वह पिछली स्ट्रीट में रहते थे। वहां गया तो पता लगा, उन्हे तो मरे ही पांच दिन हो चुके थे।अच्छे भले थे,रात को सोते के सोते ही रह गये। आज जब उनके बारे में आप को बता रहा हूं तो लिखते हुए सोच रहा हूं आदमी भी क्या बस एक लघु कथा ही होता है।

About the author

अजय कुमार

अजय कुमार

निवासी -अलवर ,राजस्थान

स्वतंत्र लेखन
प्रकाशित पुस्तक -'मैंडी का ढाबा' (कहानी-संग्रह )

Leave a Comment

error: Content is protected !!