कविता

व्यथा

अनिमा दास II

मैं नहीं ठहरती समीर की सीमाओं में
न मैं बुझती सागर की क्षुधा में
मैं नग्न रेणु सी उड़ जाती हूँ
शीतल शुष्क पर्णल वृक्षों की गहनता में
मुझे मृत आकांक्षाओं में जीने दो ।
मुझे ईंगुरी शवों पर सो जाने दो ।
मैं रक्त सा बहती हूँ
शांत धीर सागरीय तट पर
अभिशप्ता धारा सी झरती हूँ
निर्जीव प्रस्तरों पर… अनेक अंतर्वेदना लिये
मुझे प्रश्न नहीं करती
मौन मेघीय कृष्णिमा
मुझे आश्लेष में नहीं लेती
आत्मश्लाघा की क्रूर रश्मियाँ
मैं झरती रहती हूँ अनंतर
किसी मुग्धा मोहिनी के दृगों से
असहिष्णु अश्रुधारा सी
मुझे श्मशान की मौनता में
ध्वनित होने दो…
मुझे शब्दकुंजों में विलीन होने दो ।
मरू मृत्तिका मैं
अंबुदों की घनी परछाई में
मृगतृष्णा सी हूँ
मेरी सुर ग्रंथियों में घनीभूत है अस्पष्टता
असंख्य चीत्कारों की है लहर
मैं गंध पारिजात की करती अभिलाषा
परंतु… स्वप्न निर्झरिणी बह जाती है
तमिस्र ही भाग्य है
क्षितिज की उष्ण तारिका सी
अस्त होती हूँ
दिवस की लालिमा में
सांध्य मुखमंडल की आभा में….
मेरी समाधिस्थ इच्छाओं को संभवत:
अंतरिक्षीय सुधा दिये बिना
पृथक कर रही मुझे मेरी विवशता
मुझे अश्पृश्य ऊसर वृत्तांश बने रहने दो ।
मुझे अश्पृश्य ऊसर वृत्तांश बने रहने दो ।

About the author

Anima Das

श्रीमती अनिमा दास- (१५ सितंबर, १९७३) का जन्म ओड़िसा के कटक जिले में हुआ , आप एक मिशनरी इंग्लिश मीडियम स्कूल में शिक्षिका हैं। आप एक अत्यंत प्रतिभा संपन्न हिंदी कवयित्री व सोनेटियर हैं। इनकी लेखनी सोनेट्स एवं छंदमुक्त कविताओं में प्राणों का संचार कर देती है। प्रकृति, सामाजिक समस्याओं के प्रति चिंता व विशेष रूप से मृत्यु एवं प्रेम के प्रति संवेदनशीलता आपके काव्य की विशिष्टता है। हिंदी में मुख्य कार्य के रूप में 'काव्य-पुष्पांजलि' व एकल सोनेट संग्रह 'शिशिर के शतदल' के अतिरिक्त 5 साझा संग्रह भी पृष्ठबद्ध हुये हैं। काव्य संग्रह 'प्रतीची से प्राची पर्यंत' में आपने सुविख्यात ओड़िआ सोनेट रचनाकारों को हिंदी में अनूदित भी किया है।

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