आलेख कथा आयाम

चमत्कार को नमस्कार

रविदत्त गौड़ II

बालकाण्ड में राजा प्रतापभानु का एक प्रसंग है, जहां वे एक कपटी मुनि के मायाजाल में फंस जाते हैं।जब राजा उनसे उनका नाम पूछते हैं तो वे अपना नाम “एकतनु” बताते हुए नाम के संदर्भ में निम्न स्पष्टीकरण देते हैं:
‘आदि सृष्टि उपजी जबहिं तब उतपति भै मोरि।।
नाम एकतनु हेतु तेहि देह न धरी बहोरि ।।’
(मुनि ने कहा-) जब सबसे पहले सृष्टि हुई थी, तभी मेरी उत्पत्ति हुई थी। तब से मैंने फिर दूसरी देह नहीं धारण की, इसी से मेरा नाम एकतनु है।
ऊपर के प्रसंग में जो कपटी मुनि है ,वह राजा प्रतापभानु से प्रतिशोधवश कपट लीला खेलता है।उक्त सोच लगभग चार सौ साल पहले बाबा तुलसी के रामचरित मानस में व्यक्त हुई है।आज भी ऐसे झूठे चमत्कारिक संतों की गाथाएं हम सुनते रहते हैं।किसी के भक्त-लोग उनकी आयु 400-500 वर्ष बतायेंगे तो अन्य लोग भिन्न-भिन्न चमत्कार।
मुझे याद है लगभग पचास वर्ष पूर्व मेरे गांव में कुछ लोग एक दिवंगत बाबाजी के बारे में चर्चा करते हुए बताते थे कि “बाबा जी जब सोते थे ,तो योगनिद्रा लेते थे और उनके शरीर के अंग एक ही समय में ,उनके मंदिर के कई कमरों में लोगों ने देखे थे।”
‘चमत्कार को नमस्कार’ कहावत बहुत पुरानी है।सत्तर के दशक में गुमनाम पोस्टकार्ड या पर्चे प्रसारित होते थे कि ‘अमुक-अमुक ने यह चमत्कार देखा और उसने पर्चे बांटे और उसकी करोड़ों की लॉटरी निकली या 40 साल बाद पुत्र- रत्न की प्राप्ति हुई या हारा हुआ कोर्ट-केस जीत गये।’
आजकल सोशल-मीडिया पर ऐसे संदेश लगभग हर प्लेटफार्म पर देख सकते हैं।चमत्कारों सम्बंधित सूचना न केवल दैवीय शक्तियों के सम्बंध में होती हैं,बल्कि आयुर्वेदिक/यूनानी/अंग्रेजी दवाओं ,योगगुरुओं,झाड़फूंक, ताबीज़ जैसे नुस्खों ,ज्योतिषीय भविष्यवाणियों की भरमार विज्ञापनों में देखी जा सकती है।विशेषतया जब आध्यात्म सम्बन्धित व्याख्यान देने वाले गुरू अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार अन्य क्षेत्रों में करने लगते हैं, तो उनके अनुयायी उन्हें चमत्कारी युगपुरुष के पद पर स्थापित कर देते हैं।
प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों होता है?रामचरितमानस के राजा प्रतापभानु दिग्भ्रमित होकर मायावी मुनि के आश्रम में पहुंच गये, चूंकि वे अपने साथियों से बिछुड़ गये थे और अपने राज्य की दिशा भूल गये थे।आजकल अधिकांश लोग जो चमत्कारों के फेर में पड़ते हैं, वे भी किसी न किसी कष्ट या समस्या से ग्रस्त हैं और जब उन्हें हर ओर का रास्ता बंद दिखाई देता है तो वे किसी “‘चमत्कारी शक्ति “” को तलाशने लगते हैं।दुर्भाग्यवश वे दलदल में फंसते चले जाते हैं।साथ ही वे उस चमत्कारी पुरुष/स्त्री को सम्मान के ऐसे सोपान पर बैठा देते हैं ,कि समय के साथ उनका पतन स्वाभाविक हो जाता है।

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रवि गौड़

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