संजय स्वतंत्र II
कोरोना काल कुछ साल बाद हम सबको एक प्रलय की तरह याद आएगा। एक दौर से दूसरा सबसे बुरा दौर हम लोग देख चुके हैं। तीसरे दौर की आशंका अब भी बरकरार है। यकीन मानिए इस काल को भी गुजर जाना है। मगर यह दौर हमें कुछ सिखा कर जाने वाला है। इंसान सौ साल की योजना बनाता है, लेकिन कुदरत और किस्मत का प्लान कुछ और ही होता है। दस साल घिसट-घिसट कर जीने से अच्छा है आप एक साल उन सभी पलों को जी लें, जिन्हें आप सचमुच जीना चाहते हैं। जाने कब मौत हाथ पकड़ कर कहे कि चलो तुम्हारा समय पूरा हुआ। करो पैक-अप।
इसलिए जान लीजिए कि समय कभी रुकने वाला नहीं। शायद उसके लिए ही कबीर ने कहा होगा कि हम न मरब, मरिहे संसारा। समय कभी मरता नहीं। उसका पहिया घूमता रहता है। हम अपने अच्छे-बुरे कर्मों के साथ बीत जाते हैं। बस यादें रह जाती हैं मानस पटल पर। अच्छी-बुरी सभी यादें। और एक दिन आपका सब कुछ पीछे रह जाता है। आप यहां मुझे पढ़ रहे हैं और समय गुजर रहा है। अगर आप कुछ सीख रहे हैं तो अच्छा है, नहीं तो व्यर्थ समय गंवा रहे हैं। है कि नहीं?
समय का प्रबंधन बेशक आप कर लें मगर समय को तो चलते जाना है। समय को चलाने वाला कोई और है। कौन रोक पाया है उसे। तो समय का चक्र कोरोना को भी समाप्त कर देगा। मगर इसके लिए आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा। अपना आत्मबल बढ़ाना होगा। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अभी जो समय चल रहा है उसे आप रोक नहीं सकते। न आप फिर से 2019 में लौट सकते हैं न आप एकदम से 2022 में जा सकते हैं। क्योंकि हमारे पास कोई टाइम मशीन भी तो नहीं। तो फिलहाल आपको हौसले के साथ कोरोना से लड़ना है। हम लड़ चुके हैं। अब भी लड़ रहे हैं। और आप जीतेंगे। और जरूर जीतेंगे। यकीन कीजिए खुद पर।
इस समय बड़ी संख्या में लोग खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। फिर भी इस समय ऐसे काफी लोग हैं जो अपने कर्तव्य को निभाते हुए दिन-रात काम कर रहे हैं। महंगाई और रोजगार जैसी जीवन की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ये संकट की घड़ी में भी काम कर रहे थे। इनमें कई डाक्टर, पुलिस कर्मी और सिविल सेवा से जुड़े अफसर और उनके मातहत थे। हमारे एक परिचित अधिकारी दिन रात काम करते रहे। कई रातों तक ठीक से सोए नहींं। इसके अलावा मीडियाकर्मी भी आपके टेलिविजनऔर मोबाइल तक देश-दुनिया की खबरें पहुंचाने के लिए दिन-रात काम करते रहे। ये सभी जोखिम में थे उस समय। फिर भी काम करते रहे। सड़कों पर बगल से सायरन बजाती अचानक एंबुलेंस निकल जाती थी। और लोग सहम जाते थे। फिर भी दिल में हौसला रखते थे। अपना काम करते जाते थे। तब हम और आप महामारी से मुकाबला करने का साहस जुटाते थे।
उस दौर में मेरे पास अकसर कुछ मित्रों के फोन आते थे। वे डरे हुए होते थे। मैं उनका हौसला बंधाता था। उनके पास-पड़ोस में कोई महामारी का शिकार हो गया होता था। या किसी रिश्तेदार की मौत से उनका दिल टूट गया होता था। मैं उन्हें समझाता था- जिंदगी हादसे का नाम है, मौत के बाद भी सिलसिला टूटता नहीं। … साथ ही राजेश खन्ना पर फिल्माया गया वो मशहूर गीत भी गुनगना देता-
मौत आनी है आएगी एक दिन/ जान जानी है जाएगी एक दिन/ ऐसी बातों से क्या घबराना/ यहां कल क्या हो किसने जाना…। और मित्र हंस कर कुछ पल के लिए अपना गम भूल जाते। इसलिए आज फिर कहता हूं। हर पल को जीना सीखिए। मुस्कुराइए और दूसरों के चेहरे पर भी मुस्कान लाने की वजह बनिए। जीना इसी का नाम है…। खुद के लिए जिए तो क्या जिए?
ज्यादातर बच्चे डेढ़ साल से स्कूल नहीं जा रहे। दसवीं-बारहवीं के बच्चों के बारे में सोचिए। कॉलेज और आगे के करिअर का कुछ पता नहीं। जान बचाने में जाने कितने हफ्ते और महीने निकल गए। एक तरफ महंगाई दूसरी तरफ बेरोजगारी। हमारी युवा पीढ़ी कैसे मुकाबला करेगी? मगर उम्मीद है समय के साथ कोई न कोई हल निकलेगा। फिलहाल सकारात्मक होकर सोचने का वक्त है। धीरे-धीरे स्कूल खुल रहे हैं। दफ्तर भी खुल ही गए हैं। ट्रेनें-बसें और मेट्रो भी चलने लगी हैं। बच्चों को वो सब करने दीजिए जो वे करना चाहते हैं। उन्हें उचित मार्गदर्शन के साथ इस दौर के हवाले कर दीजिए। वे इस दौर का इतिहास लिखेंगे। वे समय के साथ चलना जानते हैं। उन्हें चलने दीजिए। आप भी चलिए। क्योंकि चलना ही जिंदगी है।
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