ग़ज़ल/हज़ल

फटी हुई सबकी जाजम है

फोटो : गूगल से साभार

डॉ. अतुल चतुर्वेदी II

भीगी यादों का मौसम है,
बस्ती में पसरा मातम है।

मजबूरी है तुम कहते हो,
उनका तो यह पेचोखम है।

खुद्दारी के गढ़ पर देखो,
फहराता कैसा परचम है।

जिसकी भी सांसें हैं बाकी,
उसका सुर फिर क्यों मद्धम है।

मंच तले की है सच्चाई,
फटी हुई सबकी जाजम है।

एक कशिश है ऐसी मेरी,
जिसका हर मंजूर सितम है।

जिसको दानिशवर कहते हो,
लूटा उसने ही दमखम है।

About the author

डॉ. अतुल चतुर्वेदी

डॉ. अतुल चतुर्वेदी देश के शाीर्षस्थ व्यंग्यकार हैं। इनकी रचनाएं देश के प्रमुख समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में छपती रहीं हैं। इन दिनों डॉ. चतुर्वेदी राजस्थान के कोटा में प्रवास के दौरान निरंतर लेखन कार्य से जुड़े हुए हैं।

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