मनस्वी अपर्णा II
(एक)
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
हौसलों का क्या करेंगे जब सलामत सर नहीं
कैसे ले परवाज़ वो पंछी कि जिसके पर नहीं //१//
इक मुसलसल से सफर में रहने को मजबूर है
पास जिनके कहने को भी कोई बामो दर नहीं //२//
दूर तक बिखरी हुई है ख़ामोशी सी दरमियां
चाहता तो है यही दिल मैं सदा दूं, पर नहीं //३//
आ जुदा हो जाएं हम क्यूं तल्खियों को तूल दें
रास्ता अब और कोई इससे तो बेहतर नहीं //४//
तुम कहो क्या है तुम्हारे सर झुकाने का सबब
बात कोई और ही तो यां पसे मंज़र नहीं //५//
जिंदगी इस तरह गुज़री है ग़मों की धूप में
अब किसी भी हादसे का हमको कोई डर नहीं //६//
दो
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
दिल में रखने की जगह जज़्बात कहना चहिए
आंख में भर आए हैं आंसू तो बहना चाहिए //१//
चाहती हूं मैं यही वो खुश रहे हर हाल में
वो मेरा हो या न हो महफूज़ रहना चाहिए //२//
ग़ैर हो तो हम करें शिकवा गिला नाराज़गी
दर्द अपनों का दिया हो जब तो सहना चाहिए //३//
सोचना अच्छा बुरा क्या सामने जब हो सनम
साथ जज़्बातों में उसके खूब बहना चाहिए //४//
माना हम हासिल नहीं इक दूजे को तो क्या हुआ
जिंदगी में ना सही पर दिल में रहना चाहिए //५//
मुख़्तसर सी जिंदगी तन्हा गुज़ारें क्यूं भला
दरमियानी दूरी की दीवार ढहना चाहिए //६//
Leave a Comment