जीवन कौशल

कुछ तो है भरोसे के आर-पार

फोटो : साभार गूगल

मनस्वी अपर्णा II

हम सबने विश्वास और विश्वासघात के कई किस्से सुने हैं। कुछ प्रसंग भी झेले हैं। कहीं भरोसा पाया है, तो कहीं खोया है। किसी के विश्वासपात्र हम बन पाए हैं तो किसी के विश्वास को हमने खो दिया है। जब भी हम कहते हैं विश्वास के कौन से भाव हमारे भीतर होते हैं तो मुझे लगता है कि जब भी हम कह रहे होते हैं कि हम विश्वास करते हैं या नहीं करते तो दोनों ही स्थितियों में हम अपनी ही कुछ अपेक्षाओं की बात कर रहे होते हैं।

जैसे हम अपने बच्चों के बारे में अक्सर कहते हैं कि हमें पूरा विश्वास है कि ये फलां-फलां काम नहीं कर सकते या फिर हमें विश्वास है कि ये फलां-फलां काम ज़रूर कर के दिखाएंगे, तब हम उन पर अपनी छद्म इच्छाओं को अनजाने ही लाद रहे होते हैं बिना उनकी रुचि, इच्छा और क्षमता को जांचे परखे तो बहुत ही सरल हो जाता है विश्वास करना और उतना ही सरल हो जाता है यह अविश्वास… दोनों ही परिस्थितियों में आपकी ही भूमिका अहम है।

जैसे हम जब ये कहते हैं कि मुझे विश्वास है कि फलां व्यक्ति मुझे धोखा नहीं दे सकता तब दरअसल, हम ये कह रहे होते हैं कि क्योंकि मैंने इसके और मेरे आपसी व्यवहार और समझ के आधार पर ये विश्वास की धारणा निर्मित है, इसलिए ये धोखेबाजी नहीं करेगा। अब आप गलत भी हो सकते हैं और सही भी… किसी भी व्यक्ति के प्रति पूर्वानुमान कोई बहुत अच्छी बात नहीं होती तब तो बिल्कुल भी नहीं जबकि आप मानव मनोविज्ञान के ज्ञाता नहीं है।

  • जब भी किसी पर भरोसा करना हो या अविश्वास करना हो, दोनों ही परिस्थितियों में किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर किए गए निर्णय दुखदायी होते हैं। विश्वास या अविश्वास वस्तुस्थिति-परिस्थिति और मनोस्थिति का ठीक ठीक आकलन करके ही करना चाहिए तभी आपके साथ कभी धोखा हुआ है या छल हुआ है ऐसे भाव नहीं उठ पाएंगे।

किसी भी व्यक्ति या स्वयं आपका भी व्यवहार अपनी इच्छाओं अनिच्छाओं, क्षमताओं और कुशलताओं से निर्मित और निर्धारित होता हैं, ऐसे में किसी और का आपको देख कर सही सही आकलन कर आपके प्रति धारणा बनाना और भरोसा कायम करना सही है, लेकिन मात्र आपके पद, नौकरी और पृष्ठभूमि को देख कर विश्वास या अविश्वास कर लेना गलत है। अक्सर देखा गया है कि अपने आप को बहुत भरोसेमंद दिखाने वाले लोग ही विश्वासघाती होते हैं। क्यों… क्योंकि वे आपकी धारणाओं और रुझानों पर दांव लगाते हैं। इसके विपरीत भी उतना ही सच है किसी की पृष्ठभूमि, पद या धनाभाव को देख कर उसको सदा शक के कटघरे में खड़ा करना भी ठीक बात नहीं है।

मेरी समझ से जब भी किसी पर भरोसा करना हो या अविश्वास करना हो, दोनों ही परिस्थितियों में किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर किए गए निर्णय दुखदायी होते हैं। विश्वास या अविश्वास वस्तुस्थिति-परिस्थिति और मनोस्थिति का ठीक ठीक आकलन करके ही करना चाहिए तभी आपके साथ कभी धोखा हुआ है या छल हुआ है ऐसे भाव नहीं उठ पाएंगे।

अंतिम महत्त्वपूर्ण बात वह ये कि एक ही घटना किसी का विश्वास तोड़ती है तो किसी का बनाती है, ये हमारी चित्त दशा और सोच पर निर्र्भर करता है। एक ही घटना के दो सर्वथा अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं बल्कि होते ही हैं। युद्ध में हमारे सैनिक जब दुश्मन देश के सैन्य अड्डे ढूंढ कर तबाह करते हैं तो ये काम देश के प्रति निष्ठा और विश्वास  दर्शाता है वहीं दुश्मन देश के लिए ये विश्वासघात की बात होगी कि उनकी जानकारी के बिना ये कदम उठाया गया। इसलिए हम विश्वास और अविश्वास को कभी भी किसी एक तय दायरे में रख कर नहीं समझ सकते। बेहतर यही होगा कि हम अपने सर्वोत्तम ज्ञान और समझ का प्रयोग करें और पूर्वाग्रहों से यथासंभव दूर रहें।

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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