अभिप्रेरक (मोटिवेशनल) जीवन कौशल

खुद को भी कभी माफ कीजिए

फोटो : साभार गूगल

मनस्वी अपर्णा II

‘माफी’ इस शब्द से हम में से कोई भी अनजान नहीं है। हम सब कभी न कभी या तो माफी मांग चुके हैं या किसी को माफ कर चुके हैं। यह शब्द और यह भाव हमारे जीवन का बहुत अटूट सा हिस्सा हैं। औपचारिकता में ‘माफ कीजिए’ या ‘सॉरी’ शब्द हमारे रोज के वातार्लाप और व्यवहार का अंग बन चुके हैं। ‘छमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात’ जैसी लोकोक्तियां हमारी बोलचाल का हिस्सा रही हैं। आज भी हैं। आपने कभी ये सोचा है कि सबसे कठिन माफी कौन सी होती होगी?

जब भी हम अपने किसी भी कृत्य के प्रति अपराध बोध महसूस करते हैं तो हममें माफी का भाव उपजता है। इसके विपरीत जब हमारे प्रति वैचारिक, शाब्दिक या शारीरिक अपराध घटित होता हैं तो हम अपराध की गंभीरता के अनुरूप आघात महसूस करते हैं, लेकिन कितना भी गंभीर और दुखदायी अपराध क्यों न हो, हम अपराधी को किसी न किसी स्तर पर आखिरकार माफ कर ही देते हैं या कहें कि माफ करने की पूरी संभावना होती है। लेकिन एक ऐसा व्यक्ति होता हैं जिसे हम भरसक कोशिश के बाद भी माफी नहीं दे पाते। जानते हैं वो व्यक्ति कौन है? हम खुद…।

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  • अपने आप को माफ कर पाना बहुत मुश्किल है। लगभग नामुमकिन। और ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा अपना अहंकार यह कहता है कि जो भी गलती हमसे हुई है दरअसल, हम अपने आप को उस गलती के लायक मानते ही नहीं। हमने खुद की नजर में अपनी एक बहुत अच्छी छवि बना कर रखी है और हमारी छोटी से छोटी गलती भी हमारी उस विशाल और अच्छी छवि को चोट पहुंचाती हैं। हमारा ईगो यानी अहंकार यह मानने के लिए तैयार ही नहीं होता कि हम ऐसी भी कोई क्षुद्र गलती कर सकते हैं।

मैं बिल्कुल सही कह रही हूं। दुनिया के बड़े से बड़े अपराध और अपराधी को माफ करना कतई मुमकिन है, लेकिन अपने आप को माफ कर पाना बहुत मुश्किल है। लगभग नामुमकिन। और ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा अपना अहंकार यह कहता है कि जो भी गलती हमसे हुई है दरअसल, हम अपने आप को उस गलती के लायक मानते ही नहीं। हमने खुद की नजर में अपनी एक बहुत अच्छी छवि बना कर रखी है और हमारी छोटी से छोटी गलती भी हमारी उस विशाल और अच्छी छवि को चोट पहुंचाती हैं। हमारा ईगो यानी अहंकार यह मानने के लिए तैयार ही नहीं होता कि हम ऐसी भी कोई क्षुद्र गलती कर सकते हैं। इसलिए तमाम तर्क देने के बावजूद हमारी आत्मा हमको कचोटती रहती है और निरंतर आत्मग्लानि में ले जाती है। बाहर से हम कुछ भी कह लें, लेकिन हम जानते हैं कि अपने आप को हमने माफ नहीं किया है।

हमारे मानसिक स्वास्थ्य और आत्मिक विकास के लिए यह बहुत बुरी बात सिद्ध होती है और हम बहुत हद तक दो तरफा जीवन जीने पर मजबूर होते जाते हैं। ऐसे में जो सबसे अहम काम हमें सीखना चाहिए, वह है खुद को माफ कर देने की प्रक्रिया… अगर हम एक शांत दिनचर्या और सुखद नींद चाहते हैं तो इसके लिए बहुत जरूरी है कि हमारे भीतर का असमंजस और ग्लानि का भाव दूर हो। यह महायज्ञ अहंकार की आहूति मांगता है जो असंभव तो नहीं, लेकिन बहुत कठिन और दुरूह है। फिर भी कोशिश की जा सकती है।

एक यात्रा शुरू की जा सकती है। संभव है कि हम मंजिल को भी पा लें। और खुद भी कई उलझनों से मुक्त हो जाएं। तो चलिए किसी अपराध बोध से निकलने के लिए खुद को आज ही माफ कीजिए। कोई ऐसा शख्स जो इस तरह की उलझनों से घिरा हो तो उसे भी बाहर निकालिए।

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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