अश्रुत पूर्वा II
जब आप संगीत सुनते हैं तो क्या कभी अपने भीतर कोई बदलाव महसूस करते है? तब आप मन ही मन थिरक रहे होते हैं। मन के किसी कोने में मधु रस बह रहा होता है। आप सराबोर हो जाते हैं। कोई बेहद मधुर गीत सुन रहे होते हैं, तो शायद आपको एकदम से यह अहसास नहीं होता, लेकिन यह सच है कि संगीत मानव के तन-मन पर ही नहीं मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर असर डालता है।
कोई दो राय नहीं कि गाने गुनगुनाने से, वाद्य यंत्र बजाने या संगीत सुनने से मस्तिष्क के कुछ हिस्से एक साथ सक्रिय हो जाते हैं। ये आपको खुश तो करते ही हैं। आप कई गम भूल जाते हैं। आप अपनी बीमारियां या परेशानियां भी एक पल के लिए भूल जाते हैं। सच तो यह भी है कि संगीत हमारे बोलने, चलने-फिरने, याद करने और भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है। अनुसंधान से पता चलता है कि संगीत केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के एक अहम घटक ‘ब्रेन मैटर’ को बढ़ा सकता है। इससे मस्तिष्क को खुद मरम्मत करने में मदद मिल सकती है।
संगीत अपने आप में दिव्य है। एक ईश्वरीय चेतना है। एक लौ है। यह कितना दिलचस्प है कि संगीत का असर उन मामलों में भी हो सकता है, जहां मस्तिष्क उस तरह काम न कर रहा हो, जैसा उसे करना चाहिए। अध्ययन बताते हैं कि अल्जाइमर से पीड़ित लोगों के लिए संगीत ऐसी प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकता है, जिससे मरीजों को उन बातों को याद करने में मदद मिल सकती है, जिन्हें वह भूल चुके हों। ऐसे भी साक्ष्य हैं कि जिन मरीजों के मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था और जिनकी बोलने की क्षमता चली गई थी, वे भी संगीत के बजने पर गाना गा सकते हैं। मस्तिष्क पर संगीत पर कितना असर होता है, यह इस बात का प्रमाण है।
शोध करने वाले यह पता लगा रहे हैं कि क्या संगीत का प्रयोग विभिन्न तंत्रिका संबंधी बीमारियों के इलाज में किया जा सकता है जैसे आघात, पार्किंसन बीमारी या सिर पर लगी चोट के कारण मस्तिष्क का ठीक तरीके से काम न करना। इनके इलाज के लिए ऐसा एक इलाज तंत्रिका संबंधी संगीत थेरेपी भी है। यह संगीत थेरेपी एक तरह से फिजियोथेरेपी या स्पीच थेरेपी की तरह ही है, इसका उद्देश्य मरीजों को लक्षणों से निपटने और उनके जीवन में बेहतर तरीके से काम करने में मदद करना है। मिसाल के लिए किसी दुर्घटना या आघात के बाद फिर से चलना सीख रहे मरीज थेरेपी सत्र के दौरान संगीत की धुन पर चल सकते हैं।
- शोध करने वाले यह पता लगा रहे हैं कि क्या संगीत का प्रयोग तंत्रिका संबंधी बीमारियों के इलाज में किया जा सकता है जैसे आघात, पार्किंसन बीमारी या सिर पर लगी चोट के कारण मस्तिष्क का ठीक तरीके से काम न करना। इनके इलाज के लिए ऐसा एक इलाज तंत्रिका संबंधी संगीत थेरेपी भी है। यह संगीत थेरेपी एक तरह से फिजियोथेरेपी या स्पीच थेरेपी की तरह ही है, इसका उद्देश्य मरीजों को लक्षणों से निपटने और उनके जीवन में बेहतर तरीके से काम करने में मदद करना है।
इस तरह की अनोखी चिकित्सा ने आघात के मरीजों को भाषा फिर से सीखने, चलना-फिरना सीखने और शारीरिक गतिविधि फिर से हासिल करने में मदद की है। अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि क्या तंत्रिका संबंधी संगीत चिकित्सा से अन्य विकार जैसे पार्किंसन बीमारी का इलाज किया जा सकता है। इस क्षेत्र में ज्यादातर अध्ययनों ने ‘रिदमिक एंट्रेनमेंट’ व्यायाम नाम की तकनीक का प्रयोग किया, जो धुन के साथ तालमेल बैठाने की मस्तिष्क की क्षमता का इस्तेमाल करती है जैसे संगीत या धुन की एक खास गति में चलना। तंत्रिका संबंधी संगीत थेरेपी दिमाग के उन हिस्सों को सक्रिय करने पर ध्यान केंद्रित करती है, जो क्षतिग्रस्त हो गए जैसे ‘प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स’ यानी मस्तिष्क का वह हिस्सा जो योजना बनाने, निर्णय लेने, समस्या का समाधान निकालने और खुद पर नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है।
दरअसल, तंत्रिका संबंधी संगीत चिकित्सा इसलिए काम करती है क्योंकि संगीत मस्तिष्क के कई अलग-अलग हिस्सों को सक्रिय कर सकता है। अध्ययन से पता चलता है कि संगीत मस्तिष्क में नए जुड़ाव विशिष्ट तरीके से पैदा कर सकता है। आॅडियोबुक सुनने के मुकाबले संगीत सुनने से न्यूरॉन की मरम्मत बेहतर तरीके से होती है।
यों भी संगीत का मस्तिष्क पर दीर्घकालीन असर पड़ता है। इसका इतना ज्यादा असर होता है कि एक संगीतकार का मस्तिष्क उन लोगों के मुकाबले असल में ज्यादा बेहतर तरीके से काम करता है जिन्होंने संगीत नहीं बजाया है। यह तंत्रिका संबंधी स्थितियों से पीड़ित लोगों के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि संगीत से समय बीतने पर उनके दिमाग के क्षतिग्रस्त हुए हिस्से की मरम्मत करने में मदद मिल सकती है।
वैसे संगीत थेरेपी का व्यापक पैमाने पर स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर इस्तेमाल किए जाने से पहले और शोध की जरूरत है लेकिन अध्ययनों के शुरुआती नतीजे दिखाते हैं कि यह थेरेपी कितनी कारगर साबित हो सकती है। यह पता लगाने के लिए भी अनुसंधान हो रहा है कि क्या इसका इस्तेमाल उम्र संबंधी बीमारियों जैसे कि डिमेंशिया या अल्जाइमर से पीड़ित लोगों की मदद के लिए भी किया जा सकता है कि नहीं। इन दिनों कुछ अस्पतालों में संगीत का इस्तेमाल कर मरीजों पर उसका असर देखा जा रहा है। इसका उद्देश्य उन्हें जल्द से जल्द स्वस्थ करना है। (इनपुट एजंसी)
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