स्वास्थ्य

टीके से कितना सुरक्षित हो पाएंगे बच्चे?

फोटो : साभार गूगल

 डॉ. एके अरुण II

कोरोना संक्रमण की दहशत से पूरी दुनिया परेशान थी, लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों ने झेला। अक्तूबर 2020 में ही यूनिसेफ ने कहा था, स्कूल सबसे आखिर में बंद होने चाहिए और सबसे पहले खुलने चाहिए। भारत ने ठीक उलटा किया। ज्यादातर देशों ने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता दी लेकिन भारत में स्कूल बंद रहे। सवाल है कि बच्चों को कोविड-19 से कितना खतरा है? अब तक के अध्ययन बता रहे हैं कि 5 से 14 साल के बच्चों में कोविड-19 का खतरा अन्य बीमारियों जैसे फ्लू, निमोनिया, दस्त, पीलिया, कैंसर आदि की तुलना में काफी कम है। जबकि इन रोगों में कोविड के मुकाबले बच्चों में मौत का खतरा दस फीसद ज्यादा है। बुजुर्गों में कोविड-19 का खतरा एक हजार गुना ज्यादा है। कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर में भी दुनिया भर में वृद्ध व्यक्तियों की ज्यादा मौतें हुई।

फोटो : साभार गूगल
  • बच्चों में टीका लगाने से पहले इसके बच्चों में दीर्घकालीन असर का व्यापक और प्रमाणिक अध्ययन बेहद जरूरी है। विशेष परिस्थिति में वयस्कों के लिए कोरोना वायरस संक्रमण के टीके के आपातकालीन उपयोग की बात तो समझ में आती है लेकिन बच्चों को क्यों खतरे में डाला जा रहा है? कोरोना संक्रमण से बच्चे स्वाभाविक रूप से सुरक्षित हैं और अभी उनके लिए कोई आपात स्थिति भी नहीं है।

सिरोलॉजिकल सर्वे के अनुसार 80 फीसद बच्चे बाहरी संपर्क में पहले ही आ चुके हैं। यानी 80 फीसद बच्चे या तो कोरोना से संक्रमित होकर स्वत: ठीक हो चुके हैं या हर्ड इम्युनिटी प्राप्त कर चुके हैं। इसलिए इन्हें टीके की जरूरत इतना नहीं है? वैसे भी टीके का बच्चों पर क्लिनिकल ट्रायल कायदे से पूरा नहीं हुआ है।

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर के शोर के बीच नार्वे सहित छह से ज्यादा देशों ने अपने यहां बच्चों का टीकाकरण रोक दिया है। टीकाकरण रोके जाने की वजह टीके का गंभीर साइड इफेक्ट बताया जा रहा है। कई देशों में कोविड-19 से बचाव के टीके के बाद बच्चों में हृदय की धमनियों की सूजन की शिकायतें आई हैं। इजराइल में हुए अध्ययन में भी कोविड-19 के टीके के गंभीर दुष्परिणाम बच्चों में देखे गए हैं। कहने को सौ से ज्यादा देशों ने बच्चों के लिए टीके को मंजूरी दी है लेकिन महीनों बीत जाने के भी बाद ज्यादातर देशों में टीका लग नहीं रहा है।

इसमें संदेह नहीं कि कोरोना संक्रमण ने पूरी दुनिया में स्वास्थ्य और दवा संबंधी अनुसंधान को इस वायरस के इर्द गिर्द ही समेट कर रख दिया है। साल 2015 में जब बिल गेट्स इस संक्रमण की संभावना पर बात कर रहे थे तभी यह संदेह उत्पन्न हो गया था कि भविष्य में कोरोना संक्रमण और इससे बचाव के नाम पर टीके तथा उपचार के नाम पर कथित एंटीवायरल दवाओं का बड़ा बाजार खड़ा होने वाला है। अब मामला बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य का है सो कोई भी देश जोखिम मोल नहीं लेना चाहता।

  • सिरोलॉजिकल सर्वे के अनुसार 80 फीसद बच्चे बाहरी संपर्क में पहले ही आ चुके हैं। यानी 80 फीसद बच्चे या तो कोरोना से संक्रमित होकर स्वत: ठीक हो चुके हैं या हर्ड इम्युनिटी हासिल कर चुके हैं। इसलिए इन्हें टीके की जरूरत इतना नहीं है? वैसे भी टीके का बच्चों पर क्लिनिकल ट्रायल कायदे से पूरा नहीं हुआ है।

भारत में छह वर्ष तक के बच्चों की आबादी लगभग 16 करोड़ है। ऐसे में कोरोना वायरस संक्रमण के डर से कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को यों ही छोड़ना नहीं चाहेगा। वैसे भी भारत में वैज्ञानिक सोच के अभाव के कारण कंपनियां अपना बाजार ज्यादा सुरक्षित देखती हैं। अभी कहने को 12 से 17 वर्ष के बीच के बच्चों के लिए टीके आएंगे लेकिन कोई आश्चर्य नहीं जब ये यह सभी बच्चों के टीकाकरण में शामिल कर लिए जाएं। कुछ भी हो, सूचनाओं की तहकीकात और उसके प्रमाणिक विश्लेषण पर नजर रखिए। उम्मीद कीजिए कि सब ठीक हो।

लेखक देश के प्रसिद्ध जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।

About the author

AK Arun

डॉ. एके अरुण देश के प्रख्यात जन स्वास्थ्य विज्ञानी हैं। वे कई पुस्तकों के लेखक और संपादक हैं। साथ ही परोपकारी चिकित्सक भी। वे स्वयंसेवी संगठन ‘हील’ के माध्यम से असहाय मरीजों का निशुल्क उपचार कर रहे हैं। डॉ. अरुण जटिल रोगों का कुशलता से उपचार करते हैं। पिछले 31 साल में उन्होंने हजारों मरीजों का उपचार किया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। कोरोना काल में उन्होंने सैकड़ों मरीजों की जान बचाई है।
संप्रति- डॉ. अरुण दिल्ली होम्योपैथी बोर्ड के उपाध्यक्ष हैं।

Leave a Comment

error: Content is protected !!