राधिका त्रिपाठी II
इक दिन जब मैं न रहूं, तब मैं बस तुम में रहूं…
तुम सुनना खुद की धड़कनों को मेरे कान लगाए…
पुरुषों पर कभी कोई महाकाव्य नहीं रचा गया, उनके लिए कोई प्रेम गीत भी नहीं। उनके आंसुओं को कभी नहीं मिली मोतियों की संज्ञा। उनके दिल की धड़कनों को कभी कान लगा कर किसी ने नहीं सुना। यहां तक कि उन्होंने स्वयं भी नहीं… पुरुष स्वयं की चोटिल उंगलियों से हर रिश्ते में खाद-पानी डालते रहे। सींचते रहे। अपनी गाढ़ी कमाई से घर संसार बसाते रहे। पूरी करते रहे सभी की ख्वाहिशें…! मगर मिला क्या। दरअसल, एक सच्चा पुरुष किसी अपेक्षा में नहीं जीता। किसी से बदले में कुछ नहीं मांगता।
यही पुरुष के जीवन का कौशल होना चाहिए। उसमें कयामत तक सब्र होना चाहिए। सदियों का इंतजार लिखा होने पर भी वह टिका रहे, वह अपने साथी की धड़कनों को सुनता रहे घड़ी की टिकटिक के साथ. इतना बड़ा दिल होना चाहिए उसका। ऐसे पुरुषों की जरूरत है जो स्त्रियों के लिए नया संसार रच दें। उसकी आंखों में इंद्रधनुष रच दे। हो सके तो सपनोंं को भी साकार कर दे। या कम से काम साथ ही निभा दे।
स्त्री और पुरुष के बीच रिश्ते की यही ताकत होनी चाहिए कि एक कमजोर पड़े तो दूसरा संभाल ले। सबसे पहले तो उनमें मित्रता की भावना होनी चाहिए। यह सबसे जरूरी है। रिश्ता चाहे कोई भी हो। भाई बहन का हो या पति-पत्नी का या फिर प्रेमी युगल का। हाथ थामे एक दूसरे को आगे बढ़ाने और हौसला देते रहने का नाम ही जीवन है। यही एक रिश्ता है डूब कर जीने का। इस रिश्ते को ऐसे जियें कि लम्हा थम जाएं। देह भले खत्म हो जाएं, मगर एक दूसरे की रूह में फना हो जाएं। और एक दूसरे की दुआओं में मुकम्मल हो जाएं।
… उस दिन स्वभाव के अनुसार वैशाली उसके कान के पास फुसफुसा कर बोली, सुनो आज मैं बहुत फुर्सत में हूं। तुम एक लंबी सांस लो और अपनी आंखें बंद करो। अनंत ने हंसते हुए कहा, क्या बात है। आज तुम बहुत रोमांटिक हो रही हो। …हां, तो रोमांस करना क्या बुरा है, उसके गले में अपनी बांहें डालते हुए वह कहती है, जरा बंद तो करो अपनी आंखें। अनंत ने कहा, ओके बाबा बंद करता हूं।
पुरुष के जीवन का कौशल क्या होना चाहिए। सबसे पहले तो उसमें कयामत तक का सब्र होना चाहिए। सदियों का इंतजार लिखा होने पर भी वह टिका रहे, वह अपने साथी की धड़कनों को सुनता रहे घड़ी की टिकटिक के साथ। इतना बड़ा दिल होना चाहिए उसका। ऐसे पुरुषों की जरूरत है जो स्त्रियों के लिए नया संसार रच दें। स्त्री और पुरुष के बीच रिश्ते की यही ताकत होनी चाहिए कि एक कमजोर पड़े तो दूसरा संभाल ले।
चित्र: गूगल साभार
आंखें बंद करते ही वैशाली अनंत के सीने से अपने कान को सटा कर धड़कने सुनने लगती है। कुछ देर तक बिना किसी आहट के। अनंत बनावटी गुस्से में वैशाली को हिला कर, क्या यार, ये क्या बचपना है। सुबह-सुबह तुम छिपकली सी सीने से चिपक गई हो। …वह उसके माथे को चूम कर आफिस के लिए तैयार होता है। फिर वह नाश्ता करके वह चला जाता है। उधर, वैशाली मानो अभी भी उसके सीने से चिपकी मानो धड़कनें सुन रही हो…!!
कितना मुश्किल था उसे वापस काम में उलझाना। खुद का बस चले तो वह अनंत को कभी अपनी नजरों से दूर न जानें दे, लेकिन क्या करें। जानेमन पापी पेट का सवाल है। इसलिए आफिस जाना ही होगा, अनंत की ये बात याद आते ही वैशाली मुस्कुराते हुए घर के काम निपटाने में लग जाती है। शाम को तैयार हो कर वह अनंत का इंतजार कर रही थी। यह रोज का उसका सबसे पसंददीदा कामों में से एक है।
हर आहट पर उसकी आंखें दरवाजे तक जा कर वापस लौट आती…। तभी ससुर जी अपने कमरे से निकल कर वैशाली से बोलते है, बेटा आज तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही। डाक्टर को दिखा दो चल कर। वह गाड़ी निकाल कर चल देती है अस्पताल की तरफ। गाड़ी एक साइड में पार्क करके वह ससुरजी का हाथ थामे रोड पार कर ही रही थी, तभी एक बेकाबू कार दोनों को टक्कर मार कर चली जाती है। वैशाली का सिर डिवाइडर से टकरा जाता है। वह वहीं बेहोश हो जाती और ससुर पैर में चोट लगने के कारण उठ नहीं पाते। आसपास के लोगों ने दोनों को पास ही अस्पताल में एडमिट करवाया।
अनंत भागते हुए अस्पताल पहुंचा तो पता चला की बाबू जी के पैर में फ्रैक्चर है और वैशाली के बारे में सुनते ही वह जड़वत हो गया। डाक्टर ने बताया कि सिर में चोट लगने की वजह से वह कोमा में चली गई है…। करीब तीन महीने बाद अनंत वैशाली को लेकर घर आया।
बाबूजी ने तो धीरे-धीरे चलना शुरू कर दिया था, लेकिन वैशाली किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। शायद वह कभी कोमा से बाहर न आ सके। लेकिन अनंत के लिए वैशाली की खुली आंखें ही बहुत थी जीने के लिए। वह उन्हीं में अपना जीवन देखता और रोज वैशाली के माथे को चूम कर आफिस के लिए निकल जाता…।
अनंत को अक्सर वैशाली के कहे शब्द याद आते-
एक दिन जब मैं न रहूं, तुम चुनना मेरी स्मृतियों के फूल अपनी कोमल पलकों से, जब होना विकल मेरी यादों में, तुम थोड़ा और जीने की कोशिश करना…।
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