कहानी

याददाश्त की दवा

चित्र : गूगल से साभार

तरुणा II

‘दवाई ले लो, याददाश्त बढ़ाने की दवाई ले लो।’ बाहर फेरी वाले की यह आवाज सुन कर नन्हें की आंखें चमक उठी। वाह! याद बढ़ाने की दवा! एक बार पढ़ो और फिर सब कुछ याद हो जाए। क्यों न यह दवाई खरीद लूं। ज्यादा पढ़ने से बच जाऊंगा। यह सोच कर नन्हें बरामदे में आया और आवाज लगाई ‘ऐ दवाई वाले।’

‘हां भइया। दवा लोगे। ले लो यह याद बढ़ाने की दवा है। परीक्षा में ज्यादा नंबर आएंगे।’ फेरी वाले ने कहा। ‘एक शीशी कितने की है?’ नन्हें ने पूछा। पंद्रह रुपए की है! पंद्रह रुपए की! ! फेरी वाले ने शीशी दिखाते हुए कहा। ‘इत्ते रुपए?’ न बाबा न। कुछ कम करो।’ नन्हें ने आग्रह किया।
‘चलो एक रुपए कम कर देता हूं। पर इससे कम नहीं करूंगा।’ फेरीवाला बोला। नन्हें ने सोचा अब चौदह रुपए कहां से लाऊं? हां, याद आया। भइया ने किताब खरीदने के लिए जो बीस रुपए दिए हैं उससे खरीद लेता हूं। यह ठीक रहेगा। भइया को क्या पता मैंने किताब खरीदी या नहीं। फिर याददाश्त बढ़ाने वाली दवा पीकर परीक्षा में अच्छे नंबर ले ही आऊंगा। नन्हें अपने कमरे में गया और बस्ते से बीस रुपए का लाल नोट निकाल कर ले आया।’ यह लो बेटा दवा की शीशी। और यह छह रुपए।’ फेरी वाला बोला।

याद बढ़ाने की दवा और बाकी रुपए लेकर नन्हें दबे पांव अपने कमरे में चला गया। अगले दिन क्लास में गणित के मास्टर जी ने हिसाब की किताब निकालने को कहा तो नन्हें सन्न रह गया। किताब खरीदने के लिए मिले रुपए तो मैंने याद बढ़ाने की दवा खरीदने में खर्च कर दिए। नन्हें ने सोचा ‘अब मैं क्या करूं ? तभी मास्टर जी ने कहा- ‘बच्चा अगले हफ्ते से तुम्हारी महावार परीक्षा शुरू होगी। मन लगा कर पढ़ो।

  • अगले दिन क्लास में सब बच्चे बैठे हैं। नन्हें को आखिरी वाली सीट मिली है। सब प्रश्नपत्र मिलने का इंतजार कर रहे हैं। घंटी बजती है और मैडम सबको प्रश्नपत्र देने लगती हैं। नन्हें अपनी आंखें बंद कर लेता है। आंखें खोलने पर सामने प्रश्नपत्र दिखाई देता है। वह पढ़ने लगता है। अरे बाप रे! इसमें से तो एक ही सवाल आता है। यह सोच कर नन्हें कांप उठा। एक सवाल का जवाब लिख कर दूसरे सवालों के जवाब याद करने लगा लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आया।

दिन बीतने लगे। हफ्ते से पहले नन्हें याद बढ़ाने वाली दवा की आधा शीशी पी गया। आज रविवार है। कल नन्हें की हिंदी की परीक्षा है।.. आधी दवाई तो मैं पी गया। फिर क्या डर पेपर में जो आएगा सब कर लूंगा।’ नन्हें ने सोचा और हिंदी की किताब-कापी निकाल ली। और एक-एक कर पन्ने पलटता गया। ‘बस बहुत हो गई पढ़ाई। चलूं याद बढ़ाने वाली दवाई पी लूं।’ नन्हें दवाई पीकर सो गया।

अगले दिन क्लास में सब बच्चे बैठे हैं। नन्हें को आखिरी वाली सीट मिली है। सब प्रश्नपत्र मिलने का इंतजार कर रहे हैं। घंटी बजती है और मैडम सबको प्रश्नपत्र देने लगती हैं। नन्हें अपनी आंखें बंद कर लेता है। आंखें खोलने पर सामने प्रश्नपत्र दिखाई देता है। वह पढ़ने लगता है। अरे बाप रे! इसमें से तो एक ही सवाल आता है। यह सोच कर नन्हें कांप उठा। एक सवाल का जवाब लिख कर दूसरे सवालों के जवाब याद करने लगा लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आया।

नन्हें सोचता रहा ‘मैंने इन सवालों का जवाब एक बार पढ़ा तो था। फिर मुझे याद क्यों नहीं आ रहा। लगता है याद बढ़ाने वाली दवाई का कुछ फायदा नहीं हुआ। वह सोचता रहा। इस तरह परीक्षा का समय निकल गया। घंटी बजते ही मैडम ने उससे उत्तर पुस्तिका छीन ली। इस पेपर के बाद दूसरे विषयों की परीक्षाएं कैसी हुई? यह तो नन्हें को ही मालूम है।
रिपोर्ट कार्ड मिला तो नन्हें की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। हर विषय के आगे लाल-लाल गोला था। स्कूल की छुट्टी हुई तो नन्हें घर की तरफ चल पड़ा। आज उसके पैर घर की तरफ जाने से कतरा रहे थे। पैर का वजन मानो बढ़ गया था। दस मिनट की दूरी उसने आधे घंटे में तय की। घर पहुंच कर बस्ता कोने में पटक नन्हें बैठ गया। और फूट-फूट कर रोने लगा।

बगल वाले कमरे में भइया बैठे कुछ लिख रहे थे। नन्हें का रोना सुन वे चौंके। क्या हुआ नन्हें को। वे कमरे की तरफ दौड़े। भइया को देखते ही नन्हें उनके पैरों से लिपट गया और जोर-जोर से रोने लगा। भइया परेशान। उसे चुप कराया और पूछा आखिर बात क्या है?

नन्हें रोते हुए बोला- भइया आपने किताब खरीदने के लिए जो रुपए दिए थे न, उससे मैंने यादादश्त बढ़ाने वाली दवाई खरीद ली। यह सोच कर कि इसे पीने से सब कुछ याद हो जाएगा। लेकिन मैं सभी विषयों में फेल हो गया। मुझे बचा लीजिए वरना पापा मुझे बहुत पीटेंगे। नन्हें की राम कहानी सुन भइया ने माथा पीट लिया। बोले- पगले, याद बढ़ाने की भी कोई दवा होती है? कोई भी विषय तभी याद होता है जब उसे तुम लगातार पढ़ो। उसका अभ्यास करो। पापा जी को मैं समझा दूंगा। अब तुम जाओ और उस दवा को फेंक दो। फिर मन लगा कर पढ़ो। नन्हें ने छुपा कर रखी दवा की शीशी उठाई और कूड़ेदान में उछाल दिया।

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Ashrut Purva

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