व्यंग्य (गद्य/पद्य)

घात लगाती बिल्ली

फोटो : गूगल से साभार

हरीश नवल II

घात, घातक, विश्वासघात और प्रतिघात शब्दों को हम पढ़ते सुनते रहे हैं। वृहत हिंदी कोश में स्त्री वाची संज्ञा में इसका अर्थ कार्य सिद्धि का अच्छा अवसर, ताक, दांव-पेंच, छल, चाल और तौर-तरीका अर्थ उपलब्ध होते हैं। पुल्ंिलग संज्ञा में घात का अर्थ चोट, आघात, प्रहार, हत्या, अहित, गुणनफल, बाण और एक अशुभ नक्षत्र दिए गए हैं।

शेर की मौसी कही जाने वाली बिल्ली ने संभवत:वृहत हिंदी कोश नहीं पढ़ा किंतु घात लगाने में उसका कोई सानी नहीं है। इच्छित शिकार की उपस्थिति अथवा उपके उपस्थित होने की आशा या प्रतीक्षा में बिल्ली कई घंटे घात लगा सकती है। घात लगाने की क्रिया में वह अपने पंजों और सिर को अपने शरीर में छिपाने की क्रिया करती हुई लक्षित स्थान पर अपनी पैनी दृष्टि लगाए रखती है। न हिलती है, न डुलती है, मूर्तिवत दिखती है। जब लक्षित शिकार नजर आ जाता है, सांस रोके धीमे-धीमे उसकी ओर इस भांति बढ़ती है कि शिकार को तब तक उसके होने का भान नहीं हो पाता जब तक वह उसे दबोच नहीं लेती यह क्रिया घातक कही जाती है। वास्तव में घातक एक विशेषण है जो हानिकारक होने का ही परिचय देता है।

समाज में, हमारे आसपास इस प्रकार की बिल्लियां घूम रही होती हैं जिनका शिकार हम हैं। हमें ज्ञात नहीं हो पाता। ये बिल्लियात्मयक व्यक्ति और कोई नहीं संबंधी, मित्र, पड़ोसी अथवा अनजान भी हो सकते हैं जो दबोचने के लिए धीमे-धीमे अपनी लक्ष्य पूर्ति हेतु कार्य करते रहते हैं। दूसरों की सीढ़ी इनकी आंखों में चुभती है इनके हाथ में एक अदृश्य रंदा होता है जिससे वे सीढ़ी काटने का प्रयोजन सिद्ध करते हैं।

फोटो : गूगल से साभार

समाज में, हमारे आसपास इस प्रकार की बिल्लियां घूम रही होती हैं जिनका शिकार हम हैं। हमें ज्ञात नहीं हो पाता। ये बिल्लियात्मयक व्यक्ति, संबंधी, मित्र, पड़ोसी अथवा अनजान भी हो सकते हैं जो दबोचने के लिए धीमे-धीमे अपनी लक्ष्य पूर्ति हेतु कार्य करते रहते हैं। दूसरों की सीढ़ी इनकी आंखों में चुभती है इनके हाथ में एक अदृश्य रंदा होता है जिससे वे सीढ़ी काटने का प्रयोजन सिद्ध करते हैं। अपने पंजे छिपाए मासूम बने अपने मनोभाव प्रदर्शित नहीं करते। 
कई बार ये रूप बदल लेते हैं और सरकते-सरकते लक्षित शिकार की आस्तीनों में घर बना लेते हैं। और ऐसे आस्तीन में घुसे हुए सांप न जाने कितना दूध पी जाते हैं। पिलाने वाले को तब पता चलता है जब दूध विष बन जाता है। ऐसे रूप रंग बदलने वाले गिरगिट को भी मात देने की अपूर्व क्षमता रखते हैं।

अब अधिक क्या कहें। सावधान रहें इन बिल्लियों से और देखते रहें आसपास आपको आघात पहुंचाने के लिए घात तो नहीं लगाया जा रहा।

About the author

Harish Naval

हरीश नवल दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कालेज के पूर्व प्रोफेसर हैं। वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार हैं। मुख्यत: हिंदी व्यंग्य के पुरोधा हैं। उन्हें उनके ‘बागपत के खरबूजे’ के लिए युवा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। हरीश नवल को पंडित गोविंद वल्लभ पुरस्कार और व्यंग्यश्री सम्मान सहित नौ अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। वे 50 देशों में हिंदी और हिंदी साहित्य का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नवल के साहित्य पर नौ शोधार्थियों को उपाधियां मिल चुकी हैं। उनकी 30 मौलिक पुस्तकें और नौ संपादित पुस्तकें हैं।
डॉ. हरीश नवल एनडीटीवी के हिंदी कार्यक्रम के सलाहकार, आकाशवाणी दिल्ली के कार्यक्रम सलाहकार रह चुके हैं। इसके अलावा वे इंडिया टुडे के साहित्य सलाहकार भी रह चुके हैं। डॉ नवल भारतीय अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, विदेश मंत्रालय की विख्यात पत्रिका के संपादक रहे हैं। लेखन और पठन-पाठन के क्रम में वे बल्गारिया के सोफिया विश्वविद्यालय के विजिटिंग व्याख्याता और मारीशस विश्वविद्यालय के मुख्य परीक्षक भी रहे। वे अब तक 30 देशों की यात्रा कर चुके हैं। हिंदू कालेज से सेवानिवृत्ति के बाद डॉ. नवल की लेखन यात्रा का क्रम अनवरत जारी है।

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