अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ II
स्त्रियों का शुक्रिया कौन अदा करता है…?
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कवि
तुमने कहा था पूछना नदी से
कि तुम कैसी हो…!!
सुनो न कवि,
पुल से गुजरते हुए
एक दिन
पूछ ही लिया मैंने
नदी तुम कैसी हो…?
कितने ही खुरदुरे पत्थरों को
तराशा है तुमने
खुद को खोने से पहले
कितनी ही पीड़ाएं
सोखी हैं, बहाई हैं,
कितने प्यासों की प्यास भी बुझाई है
शुक्रिया अदा किया किसी ने?
बुदबुदाई नदी
निर्मल मुस्कान लिए तुम भी न…!
यह समय खत्म ही नहीं होता
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मैं एक मां हूं
मेरी सबसे बड़ी पीड़ा आज यह है
कि अपनी बेटी को ही
नहीं सिखा पा रही
करना विश्वास
किसी एक जात (मर्द) पर
यह जानते हुए भी
किसी भी रिश्ते की नींव
टिकी होती है विश्वास पर
पहले करना अविश्वास
कहना चाहती हूं
यह एक अविश्वासी समय है
जो खत्म ही नहीं होता…।
सबसे मजबूत कंधे पिता के होते हैं
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दुनिया में सबसे मजबूत कंधे
पिता के होते हैं
जो उम्र के बोझ से
दब जाएं भले
परन्तु संतान की
नाकामियों
तकलीफों
गलतियों
आकांक्षाओं को
बखूबी ढोने की हिम्मत रखते हैं
छायादार वृक्ष
सदृश
उम्र की दहलीज के
अंतिम पड़ाव तक
एक-एक कर चुकते पत्ते
तब तक साया देते हैं
जब तक सलामत रहता है
आखिरी पत्ता…
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