मनस्वी अपर्णा II
नब्ज़े बीमार पे बस हाथ ही धरते धरते
तू खुदा हो गया है हां! शिफा करते करते//१//
पारसा हो गए हैं सोहबतों में तेरी हम
इश्क नेमत की तरह बरसा है झरते झरते //२//
सुर्खियां मेरी निगाहों में उतर आती है
शोख नजरों का तेरी सामना करते करते //३//
रात भी है जवां, तनहाई भी बस तू कम है
सब्र भी थक गया है आहें यूं भरते भरते //४//
कोई आतिश सी सुलग जाती है उस आलम में
जब भी छूती हूं तेरा हाथ मैं डरते डरते //५//
यूं महरबां हुआ है तू मेरी इस हस्ती पे
जैसे मिल जाए दवा वक्त पे मरते मरते //६//
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