ग़ज़ल/हज़ल

… जैसे मिल जाए दवा वक्त पे मरते मरते

फोटो: साभार गूगल

मनस्वी अपर्णा II

नब्ज़े बीमार पे बस हाथ ही धरते धरते
तू खुदा हो गया है हां! शिफा करते करते//१//

पारसा हो गए हैं सोहबतों में तेरी हम
इश्क नेमत की तरह बरसा है झरते झरते //२//

सुर्खियां मेरी निगाहों में उतर आती है
शोख नजरों का तेरी सामना करते करते //३//

रात भी है जवां, तनहाई भी बस तू कम है
सब्र भी थक गया है आहें यूं भरते भरते //४//

कोई आतिश सी सुलग जाती है उस आलम में
जब भी छूती हूं तेरा हाथ मैं डरते डरते //५//

यूं महरबां हुआ है तू मेरी इस हस्ती पे
जैसे मिल जाए दवा वक्त पे मरते मरते //६//

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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