डा. सांत्वना श्रीकांत II

कोई जो पूछे तो कह दूँगा उस ने भेजे हैं
इफ़्तिख़ार नसीम

चेहरई चेहरा हमें भाता रहा
मीर तक़ी मीर

रोज़ निकलेगी बात फूलों की
मख़दूम मुहिउद्दीन

कोई काँटा तो न था फूलों में
बासिर सुल्तान काज़मी

फूल को हाथ लगाने की ज़रूरत क्या है
हफ़ीज़ मेरठी

आप जब जब भी मुस्कुराते हैं
साजिद प्रेमी

आदमी ही न आदमी से मिले
ख़ुमार बाराबंकवी
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