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‘बात फूलों की…’

नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की
-मख़दूम मुहिउद्दीन

डा. सांत्वना श्रीकांत II

अगरचे फूल ये अपने लिए ख़रीदे हैं
कोई जो पूछे तो कह दूँगा उस ने भेजे हैं
इफ़्तिख़ार नसीम
मेहर-ओ-मह गुल फूल सब थे पर हमें
चेहरई चेहरा हमें भाता रहा
मीर तक़ी मीर
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की
मख़दूम मुहिउद्दीन
रुक गया हाथ तिरा क्यूँ ‘बासिर’
कोई काँटा तो न था फूलों में
बासिर सुल्तान काज़मी
रंग आँखों के लिए बू है दिमाग़ों के लिए
फूल को हाथ लगाने की ज़रूरत क्या है
हफ़ीज़ मेरठी
फूल ही फूल याद आते हैं
आप जब जब भी मुस्कुराते हैं
साजिद प्रेमी
फूल कर ले निबाह काँटों से
आदमी ही न आदमी से मिले
ख़ुमार बाराबंकवी

About the author

santwana

सशक्त नारी चेतना के स्वर अपनी कविताओं में मुखरित करने वाली डाॅ सांत्वना श्रीकांत का जन्म जून1990 में म.प्र. में हुआ है।सांत्वना श्रीकांत पेशे से एक दंत चिकित्सक हैं। इनका प्रथम काव्य-संग्रह 'स्त्री का पुरुषार्थ' नारी सामर्थ्य का क्रान्तिघोष है।

इनकी कविताएँ प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं- गगनांचल, दैनिक भास्कर,जनसत्ता आदि में प्रकाशित होती रहती हैं।

साथ ही वे ashrutpurva.com जो कि साहित्य एवं जीवनकौशल से जुड़े विषयों को एक रचनात्मक मंच प्रदान करता है, की संस्थापिका एवं संचालिका हैं।

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