समीक्षा

प्रीत के परिप्रेक्ष्य में स्त्री अस्तित्व की अभिव्यक्ति : कहीं कुछ रिक्त

डॉ. सम्राट सुधा II

बुशरा तबस्सुम का सद्य प्रकाशित काव्य-संग्रह’ कहीं कुछ रिक्त’ हिन्दी काव्य-जगत् में अनुपम कविताओं के अस्तित्व का उद्घोष है। इस काव्य-संग्रह में उनकी एक सौ पचास कविताएं संग्रहित हैं।

बुशरा तबस्सुम की कविताओं की सबसे बड़ी विशिष्टता, उनमें सन्निहित शांत रस है, वे यद्यपि अपने कथ्य में विविध भावों की अभिव्यक्ति करती हैं। कवयित्री होने के नाते उनके काव्या में स्त्री-चेतना है, परन्तु यह साहित्य के उस कथित ‘स्त्री विमर्श’ के चीत्कार से विमुख है, जिसमें वयम् के स्थान पर अहम् सम्पोषित किया गया है। वे प्रीत के परिप्रेक्ष्य में स्त्री के अस्तित्व को अभिव्यक्त करती हैं। कविता’ मेरे जन्म’ का यह अंश द्रष्टव्य है-

“प्रीत की सदी में
मेरे ये जनम
अमर है अजर हैं
इस सदी से कुछ वर्षों पूर्व
जनमी थी जो औरत
आयु के अवसान पर
मृत्यु बस उसी की होगी।”

कवयित्री बुशरा संस्कृति-सम्बद्ध मान्यताओं से संपृक्त कर अपनी बात उन्हीं देशज शब्दों में कहने की सिद्धहस्त हैं। संग्रह की एक रचना ‘मन आँगन’ इस संदर्भ में द्रष्टव्य है-

“निषेध है बुहारना आँगन
शाम ढल जाने के बाद
सो मैं भी
घिर जाने पर उदासियों के अंधेरे
नहीं बुहारती मन आँगन
कहीं सकोर न दूँ कोई
प्यारी-सी याद!”

बुशरा तबस्सुम की कविताओं में हिन्दी के तत्सम और उर्दू के शब्दों के समुचित व्याकरण का समावेश बहुत सुंदर रूप में दृष्टिगोचर होता है। उल्लेखनीय यह है कि वे इनका प्रयोग करते हुए क्रिया या संज्ञा-शब्दों के संग सटीक रूप से उसी भाषा विशेष का विशेषण भी रखती हैं। कविता’ विपुल विश्वास’ का शीर्षक संस्कृत शब्दों का है, तो इसी की प्रथम पंक्ति व आगे अन्य देखिए-

“शर्मसार शाम
दिल दरिया में डूबा फिर
सुखद स्वप्न बेनाम…”

शाम है, तो विशेषण उसी भाषा का ‘शर्मसार’ है, इसी प्रकार दिल की विशेषता व्यक्त करने हेतु ‘दरिया’ प्रयुक्त है। यह अद्भुत बात है कि यह प्रयोग ना होकर, प्राकृत रूप से उनकी रचनाओं में है, इसी कारण रचनाओं में प्रवाह है; ठिठकाव कहीं नहीं!
सूक्ष्म अभिव्यक्ति वस्तुतः चिंतन की गहनता से उद्भूत होती है, बुशरा तबस्सुम की प्रत्येक रचना में यह है। व्याकरणिक चिह्नों के संग उनकी एक छोटी, परन्तु अद्वितीय रचना ‘अलबत्ता’ द्रष्टव्य है-

“कोष्ठक में रखे शब्द
अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं
अर्थ का विस्तार करते हुए यह
स्वयं से पहले लिखे शब्द की
सिद्ध कर देते हैं महत्ता
अलबत्ता
तभी मन में आता है
हथेलियों के मध्य रखकर तुम्हारा चेहरा
उससे पूर्व
लिख दूँ प्यार!”

इस काव्य-संग्रह की सभी कविताएं अनुपम बिंबों से अपनी बात कहती हैं। इन बिंबों में कवयित्री कहीं वस्तुओं के संग भावों के बिंब भी रच जाती हैं, जो रचनाशीलता का दुर्लभ प्रायः गुण है। इस दृष्टि से मात्र सात पंक्तियों की कविता ‘आँच की हांडी’ देखिए-

“जब सुलग कर
भड़कने लगे ग़म
मैं आँच पर चढ़ा देती हूँ
सहनशीलता की हांडी
उबल-उबलकर
अधरों पर ठहर जाती है
मुस्कराहटें!”

उदात्तता काव्या का अपरिहार्य गुण है, जो इस संग्रह की सभी कविताओं में समावेशित है। किसी को दुखी होने से रोकने के सुंदर मनुहार की कविता ‘सहूलियत’ द्रष्टव्य है

“बस इसलिए
कि सहूलियत रहे मुझे
बहुत खुश रहना तुम
दुख की कोई नदी पार करोगे
तो
भीग मैं भी जाऊंगी!”

प्रेम शाश्वत है, परन्तु उसका आश्वासन भी महत्त्वपूर्ण है। इस संग्रह की प्रत्येक कविता पाठक के लिए अक्षय आश्वासन का हेतु हैं। मात्र छह पंक्तियों की कविता ‘आशा’ देखिए-

काव्य-संग्रह ‘कहीं कुछ रिक्त’ की प्रत्येक रचना अभिनव कथ्य, भावों, बिंबों और विस्तार की रचना हैं। इस काव्य-संग्रह का शीर्षक ही संभावनाओं के गगन का प्रतीक है। यह संग्रह कवयित्री का प्रथम काव्य-संग्रह है, परन्तु यह परिपक्व एवं पूर्ण कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह की अधिकांश कविताएं छोटी एवं संवादात्मक हैं, जो अपने इसी कलेवर में पाठक पर स्थायी प्रभाव छोड़ती हैं। अतुकांत होते हुए भी सभी कविताओं में गीतात्मकता एवं प्रवाह है, जो अद्भुत है!

“मत उखाड़ फेंकना
मज़बूरियों के शिशिर में
ठूँठ हुआ प्रेम
सहूलियत का मौसम होगा
तो फिर
फूट आयेंगी नयी कोंपलें!”

संग्रह के प्रारम्भ में सम्पादक सहित जिन चार लोगों के वक्तव्य हैं, वे कवयित्री के काव्य का सम्यक् मूल्यांकन तो हैं, परन्तु उनमें ना केवल वर्तनी, वरन् भाषागत व्याकरण की दृष्टि से भी अनेक त्रुटियां हैं, जिनसे बचा जा सकता था। एकल काव्य-संग्रह के लिए सम्पादक का होना, उचित प्रतीत नहीं होता। एक समर्थ ही नहीं, हिन्दी काव्य-जगत् की प्रथम पंक्ति की कवयित्री होने के नाते बुशरा तबस्सुम भविष्य में ऐसी भावुकता से बचेंगी व किसी समर्थ रचनाकार से ही एक पुरोवाक् लिखवाएंगी, ऐसा विश्वास है। कवयित्री ने ‘छोटी-सी काव्य-यात्रा’ शीर्षक से अपनी काव्य-यात्रा पर प्रकाश डाला है, जो रुचिकर है।

काव्य-संग्रह का मुख-पृष्ठ आकर्षक है। समग्रतः काव्य-संग्रह ‘कहीं कुछ रिक्त’ उत्कृष्ट कविताओं का पठनीय एवं संग्रहणीय काव्य-संग्रह है, जिससे हिन्दी कविता के सुंदर व सशक्त भविष्य का आश्वासन मिलता है!

काव्य-संग्रह : कहीं कुछ रिक्त
कवयित्री : बुशरा तबस्सुम
प्रकाशन वर्ष : 2022
मूल्य : 349
प्रकाशक : कालसाक्षी साप्ताहिक, लखनऊ
समीक्षक : डॉ. सम्राट सुधा

About the author

डॉ सम्राट सुधा

★ रुड़की के रचनाकारों के प्रथम काव्य-संग्रह 'प्रतिबिंब' का सम्पादन ( वर्ष-1996 )

◆ प्रकाशन : वर्ष 1985 से राष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशित।
◆प्रसारण :
●आकाशवाणी व बी. बी. सी. लन्दन रेडियो। सृजन ऑस्ट्रेलिया ई-पत्रिका द्वारा आयोजित ऑन लाइन अन्तर-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कविता प्रस्तुत ।
●अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के महत्त्वपूर्ण पटल से काव्य-पाठ का सौभाग्य ।

◆ पुस्तक :
1-उत्तर आधुनिकता - भूमंडलीकरण तथा शशि- काव्य (शोध)
2- प्यास देखता हूँ ( काव्य - संग्रह )
3- पीले पन्नों से ( संस्मरण )

◆ पुरस्कार :
1- संचेतना सम्मान-2002
2- शब्दश्री साहित्य सम्मान-2021
3- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी दिवस सम्मान- 2021

◆ अनुभव : पूर्व उप सम्पादक एवं ब्यूरो चीफ। अनेक बोर्डिंग स्कूल्स में हिंदी विभागाध्यक्ष।
◆ सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ( हिन्दी)

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