अभिप्रेरक (मोटिवेशनल)

बंद आंखें खोलिए, बुद्धि से नाता जोड़िए

फोटो : साभार गूगल

मनस्वी अपर्णा II

पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत के साथ एक साथ बहुत सारे जीव अस्तित्व में आए, फिर ऐसा क्या हुआ कि एकमात्र मनुष्य ने अपने साथ कमोबेश सह अस्तित्व में आए बाकी पशु-पक्षियों और अन्य जानवरों के मुकाबले ज़्यादा उन्नति की  ओर उत्तरोत्तर उन्नति करता जा रहा है। यह प्रश्न बहुत मौलिक है और इसका सरल सा उत्तर यह है कि इस उन्नति की एकमात्र वजह है मनुष्य की बौद्धिक क्षमता।

मनुष्य बाकी सभी जानवरों के मुकाबले ज्यादा चेतन है उसके पास बुद्धि का वरदान है। बुद्धि यानी सही गलत के बीच निर्णय की तार्किक क्षमता। बुद्धि यानी किसी एक ही पड़ाव पर रुक नहीं जाने बल्कि नई-नई मंजिलों की खोज करना और उन्हें हासिल करने की क्षमता विकसित करना, बुद्धि यानी जो कुछ भी चुनौतीपूर्ण लग रहा है उससे पार पाने की रणनीति बनाने की क्षमता, बुद्धि यानी समग्र, सर्वांगीण विकास की चेष्टा।

बुद्धिमत्ता वह गुण है जिसके रहते हम कभी असभ्य, असहिष्णु और अतिवादी नहीं हो सकते। ऐसा व्यक्ति जिसके पास विवेक है उसकी प्रत्येक विषय की अपनी परिभाषाएं होती हंै और अपना आकलन होता है। वह मतांध नहीं हो सकता, वह कभी अंधानुगामी नहीं हो सकता। किसी के लादे हुए विचारों से अपने जीवन की दिशा तय नहीं करता। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा ज़्यादा न्यायपूर्ण होते हैं। कम कट्टर होते हैं, ऐसे व्यक्तियों को अधिकांशत: अधार्मिक कह दिया जाता है क्योंकि ऐसे लोग धार्मिक उन्माद जैसी मूर्खताओं के विरोधी होते हैं, साथ ही परंपरा और रूढ़ियों के नाम पर चल रहे पाखंड के धुर विरोधी होते हैं। ये लोग भीड़ की बजाय अकेले चलने के पक्षधर होते हैं इसलिए अक्सर अक्खड़ समझे जाते हैं। ये अधिकतर अकेले रह जाते हैं कई बार इन पर खब्ती, सनकी और पागल होने के ठप्पे लगाए जाते हैंं लेकिन इतिहास गवाह है कि इस पूरी दुनिया में कहीं भी, किसी भी क्षेत्र में कोई भी अभूतपूर्व काम हुआ है तो वो इन्हीं लोगों ने किया है, चाहें हम चार्ल्स डार्विन की बात करें या गेलिलियो या आइंस्टाइन की या राइट ब्रदर्स की या अरस्तू या रामानुजन की या इस सदी के सौभाग्य ओशो रजनीश की… ये सब अपनी तरह के लोग थे जो भीड़ से बिलकुल जुदा और अपनी बात पर अडिग…। निसंदेह इन सब में बुद्धिमत्ता ही वह तत्व था जिसने इन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचाया।

  • इंटरनेट क्रांति के बाद जीवन एक नए दौर में आ गया है और अब ये वर्चुअल दुनिया और इसकी चुनौतियां एक बड़ी चुनौती है, अब हमारे पास पूरी दुनिया का ज्ञान और लगभग सभी सूचनाएं हथेली पर हरदम मौजूद हैं। अब किसी चीज़ को जानने समझने के लिए भटकने के दौर खत्म हो गए हैं… ज़ाहिर सी बात है अब कोई भी डाटा याद रखने की कतई ज़रूरत नहीं… तो बौद्धिकता के पास अब चुनौती का प्रारूप बदल गया है..

सर्वमान्य नियम है कि हर एक चीज की एक कीमत होती है और जाहिर तौर पर किसी बुद्धिमान व्यक्ति को भी अक्सर अपने पास बुद्धि होने की कीमत चुकानी पड़ती है। खासकर तब जब कि आप ऐसे लोगों के बीच घिरे हुए हैं जिनका तर्क और बुद्धि से कोई नाता नहीं है जिन्होंने कभी अपनी बंद आंखें खोलने के बाबत सोचा तक नहीं है। अंधों के बीच आंख वाले व्यक्ति को या पागलों के बीच सामान्य व्यक्ति को अक्सर बहुमत के आधार पर अमान्य घोषित किया जाता रहा है, जी हां ये बुद्धिमान होने के संभावित नुकसान हैं फिर भी इन नुकसानों के चलते किसी भी बौद्धिक ने कभी अपनी बुद्धि को ताक पर रखने की कोशिश नहीं की, न ही ऐसी कोई मंशा जाहिर की… कारण स्पष्ट है एक बार जब हम किसी उच्चतम स्वाद को चख लेते हैं तो फिर उससे कम पर सहमत होना मुश्किल होता है।

आज के इस दौर में लगभग पूरे विश्व में युवाओं के जीवन के मुख्य प्रश्न तब्दील हो गए हैं, पहले जहां रोजगार, शिक्षा और जीवन यापन के साधन चुनौती हुआ करते थे आज वो उस मात्रा में चुनौती नहीं हैं। इंटरनेट क्रांति के बाद जीवन एक नए दौर में आ गया है और अब ये वर्चुअल दुनिया और इसकी चुनौतियां एक बड़ी चुनौती है, अब हमारे पास पूरी दुनिया का ज्ञान और लगभग सभी सूचनाएं हथेली पर हरदम मौजूद हैं। अब किसी चीज़ को जानने समझने के लिए भटकने के दौर खत्म हो गए हैं… ज़ाहिर सी बात है अब कोई भी डाटा याद रखने की कतई ज़रूरत नहीं… तो बौद्धिकता के पास अब चुनौती का प्रारूप बदल गया है…।

और आज नहीं लेकिन कुछ समय बाद, कुछ पीढ़ियों के बाद जब हमारी नई पीढ़ी आनुवंशिक रूप से ज़्यादा तार्किक और समझदार होगी, ऐसे व्यक्ति जिन्हें हम मेधावान और तार्किक कहते हैं जो आज भले ही इक्का-दुक्का दिखाई पड़ते हैं बहुतायत में नजर आने लगेंगे। इसके पीछे का सहज कारण भी वही है बुद्धि का उत्तरोत्तर विकास जो मनुष्य को और अधिक क्षमतावान बनाता जाएगा और तब हम धर्म को, संबंधों को, व्यक्ति को, भावनाओं को ज़्यादा बेहतर ढंग से परिभाषित कर पाने में समर्थ होंगे। शायद तब हम अपने जीवन के हर पहलू को पुन: परिभाषित कर पाने समर्थ होंगे और ये नई परिभाषाएं ज्यादा वैज्ञानिक और प्रामाणिक होंगी। एक व्यक्ति जो सामान्य दुविधाओं और चुनौतियों से बाहर आ चुका है, निश्चित ही जरा अलग ढंग का होगा उसके जीवन की परिभाषाएं नई और ज्यादा बेहतर होंगी जो फिर मनुष्यता के लिए एक नया आयाम खोलेगी।     

About the author

मनस्वी अपर्णा

मनस्वी अपर्णा ने हिंदी गजल लेखन में हाल के बरसों में अपनी एक खास पहचान बनाई है। वे अपनी रचनाओं से गंभीर बातें भी बड़ी सहजता से कह देती हैं। उनकी शायरी में रूमानियत चांदनी की तरह मन के दरीचे पर उतर आती है। चांद की रोशनी में नहाई उनकी ग़ज़लें नीली स्याही में डुबकी ल्गाती है और कलम का मुंह चूम लेती हैं। वे क्या खूब लिखती हैं-
जैसे कि गुमशुदा मेरा आराम हो गया
ये जिस्म हाय दर्द का गोदाम हो गया..

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