लेखक परिचय/ कवि परिचय

जब हसरत जयपुरी का प्रेमपत्र बन गया फिल्म का मशहूर गीत

फोटो : साभार गूगल

राजकिशोर त्रिपाठी II

जब लेखक कोई कहानी लिखता है तो यह उसके आसपास की कहानी होती है। जब कोई कवि या गीतकार प्रेम आधारित रचना लिखता है तो वह प्राय: उसके जीवन का ही हिस्सा होती है। लेखकों के बारे में ऐसी कई मिसाल हमें मिलती है। हसरत जयपुरी को ही लीजिए। वे बेहद कच्ची उम्र के थे तभी से शायरी करने लगे। जैसा कि इस उम्र में अकसर होता है, हसरत साहब को एक लड़की से प्रेम हो गया। यह दूसरे समुदाय से थी। यों भी प्यार में कोई धर्म, जाति, उम्र और सरहद कौन देखता है?

गीतकार हसरत का पड़ोस की लड़की से यह खामोश प्यार था। रूमानी तबीयत के हसरत ने प्रेमगीत के रूप में खत लिखा। लेकिन इसे वे दे नहीं पाए। एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि इसका मलाल उन्हें ताउम्र रहा। बता दें कि जिस लड़की को हसरत ने बड़ी हसरत से पत्र लिखा था, उसका मुखड़ा था- ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर, के तुम नाराज न होना। सोचिए जरा, तब उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी लिखी ये पंक्तियां एक दिन इतनी मशहूर हो जाएंगी। यह वही गीत है जिसे प्रसिद्ध अभिनेता और फिल्म निर्माता राजकपूर ने फिल्म ‘संगम’ में इसे शामिल किया।

हसरत जयपुरी ने अपने जीवन में बेहद संघर्ष किया। जयपुर में 15 अप्रैल 1922 को जन्मे हसरत का असल नाम इकबाल हुसैन था। बतौर शायर वे हसरत जयपुरी के रूप में जाने गए। जयपुर से इतना प्यार कि उन्होंने अपने नाम के साथ सदा के लिए जयपुरी जोड़ लिया। सदाबहार गीत लिखने वाले हसरत साहब इसी नाम से मशहूर हो गए। उनकी स्कूली शिक्षा मुकम्मल तो नहीं हुई। अलबत्ता फारसी और उर्दू की अच्छी तालीम मिली। इसी दौरान शायरी करना भी सीख गए जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास हुआ। वे गीत भी लिखने लगे। संघर्ष का दौर भी रहा। वे 1940 में मुंबई गए और वहां बस कंडक्टरी करने लगे। मगर दिल तो शायरी में ही रमता था उनका, सो मुशायरे में वे अकसर जाते। कहते हैं कि उन्हीं दिनों पृथ्वीराज कपूर ने हसरत जयपुरी को एक मुशायरे में सुना। वे उनसे काफी प्रभावित हुए।

गीतकार हसरत का पड़ोस की लड़की से यह खामोश प्यार था। रूमानी तबीयत के हसरत ने प्रेमगीत के रूप में खत लिखा। लेकिन इसे वे दे नहीं पाए। एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि इसका मलाल उन्हें ताउम्र रहा। बता दें कि जिस लड़की को हसरत ने बड़ी हसरत से पत्र लिखा था, उसका मुखड़ा था- ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर, के तुम नाराज न होना। सोचिए जरा, तब उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि उनकी लिखी ये पंक्तियां एक दिन इतनी मशहूर हो जाएंगी। 

फोटो : साभार गूगल

हसरत साहब का हिंदी सिनेमा में आने के लिए अगर किसी को श्रेय दिया जाएगा तो वे हैं पृथ्वीराज कपूर। ये पृथ्वीराज ही थे जिन्होंने राज कपूर से जयपुरी के लिए सिफारिश की। यह 1949 की बात है जब राज साहब फिल्म ‘बरसात’ बनाने जा रहे थे। उन्होंने हसरत साहब को मौका दिया तो उन्होंने वो गीत लिखे जो आज भी गाए और गुनगुनाए जाते हैं। ये गीत थे- छोड़ गए बालम और जिया बेकरार है …। इन गीतों ने हसरत जयपुरी को न केवल लोकप्रिय बना दिया बल्कि उन्हें स्थापित करने में भी मदद की। इसके बाद तो उन्होंने लंबे समय तक के लिए राज कपूर की फिल्मों के लिए गीत लिखे।

हसरत जयपुरी के लिखे सुनहरे गीतों की एक संबी फेहस्ति हैं। इनमें कई गीत ऐसे हैं जिन्हें कई पीढ़ियों बाद भी गाया और गुनगुनाया जाता है। इनमें बदन पे सितारे लपेटे हुए, सायोनारा-सायोनारा, पंख होते तो उड़ जाती रे, अजीब दास्ता है ये कहां शुरू कहां खत्म… अकसर याद आते हैं। एक गीत जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना… आज भी गुनगुनाने को जी चाहता है।

हसरत साहब का निजी जीवन अच्छा रहा। शोहरत मिली तो पैसा भी खूब कमाया। पत्नी की सलाह पर अपनी कमाई अचल संपत्ति और किराए की संपत्ति में निवेश की। इन संपत्तियों से होने वाली आय से उनकी माली हालत अच्छी रही। यही वजह थी कि वे बेफिक्र होकर लेखन के प्रति समर्पित रहे। नतीजा ये कि आज की युवा पीढ़ी उनके लिखे गीतों को गुनगुनाती है। 


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