पुस्तक समीक्षा

अफसर पर मुखर शायर : इसलिए जिंदा है कलम

अश्रुत पूर्वा II

शायरी की नहीं जाती, हो जाती है। करने और होने में जमीन आसमान का फर्क है। फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली के इस कथन को कसौटी पर परखें तो आलोक यादव की शायरी सचमुच जमीन से जुड़ी है। इसमें आसमान छूने की कोशिश भी है। भारतीय ज्ञानपीठ से छप कर आया आलोक यादव का गजल संग्रह-‘कलम जिंदा रहेगा’ इन दिनों चर्चा में है। यह संग्रह का दूसरा संस्करण है।

स्कूल के दिनों में कविता लिखने का शौक आलोक यादव को एक नए मकाम पर पहुंचा देगा, किसने सोचा था। वे खुद कहते हैं, उनका साहित्यिक सफर 38 साल पुराना है। यूं ही नहीं बन जाता कोई शायर। नायिका को देख कर बहुत लोग शायर और कवि बनते हैं, मगर हकीकत ये है कि यह जिंदगी का फलसफा और कुछ हद तक तपा देने वाला संघर्ष एक रचनाकार को आकार देता है।

आलोक यादव जिंदगी के अलाव में तपे हैं और निखर कर आगे बढ़े। एक बड़े सरकारी ओहदे को हासिल करने के बाद भी कोमल हृदय रखते हैं। वे अपनी सरकारी जिम्मेदारियां निभाते हुए लिखते जाते हैं। वे लिख रहे हैं बरसों से। इस बार वे कहना चाहते हैं- भाई, कलम जिंदा रहेगा। फरहत एहसास कहते हैं कि इनकी सद्य प्रकाशित किताब शेरों से मालामाल है। सच ही तो कहा। कितनी सहजता से आलोक जी लिखते हैं-

न कुछ पाने की हसरत है न कुछ खोने का खतरा है
बहुत बेफिक्र होकर तुम्हारी सुहबत में रहता हूं।

बहुत कम रचनाकार होते हैं जो अपने बारे में बड़ी साफगोई से बताते हैं, आलोक यादव इनमें से एक हैं। वे लिखते हैं जिस तरह मेरा होना निश्चित था उसी तरह मेरा शायर होना निश्चित था। वे कहते हैं नियति ने हमारे रास्ते तय कर रखे हैं हमारे वश में केवल उन पर चलना या न चलना ही है। और कभी-कभी तो लगता है कि यह न चलना भी हमारे वश में नहीं है। उनका शेरी सफर नौ साल पुराना है। संग्रह ‘कलम जिंदा रहेगा’ से पहले इनका एक संग्रह 2012 में आया था।

इस शायर के लिए कलम ताकत है ईश्वरीय सत्ता से संवाद का। वे बताते हैं कि उनके लिए गजल ईश आराधना के समान है। क्योंकि वे उसकी बनाई दुनिया का बखान अपने अशआर में करते हैं। सचमुच वे सहजता से करते हैं। उनकी ये पंक्तियां बरबरस ध्यान खींच लेती हैं-

एक मुस्कान से वो रिश्ते बना लेता है
ये मेरा दिल भी कई किस्से बना लेता है
पास रह कर भी कोई अपना नहीं हो पाता
दूर रह कर भी कोई सबको बना लेता है
डाल कर आंखों में आंखें मेरा हमसाया भी
दिल की राहों के कई नक्शे बना लेता है
   

आलोक जी बड़ी कोमलता से दिल की बात कहते हैं। वे तार्किक हैं मगर उससे कहीं अधिक सहृदय। कोरोना काल में कई लोगों ने अपनों को खोया। आलोक जी भी उनमें से एक थे जिन्होंने अपनी पत्नी को खोया। ऐसे समय ने शायरी ही उनका सहारा बनीं। ‘इस घर की सारी खुशियां रख कर कहां गई तुम/ढूंढे हैं मिल के सारे, मिलती नहीं किसी को।’  एक रचनाकार को जीने का आत्मविश्वास अपनी रचनात्मकता से ही मिलता है। वह अपना गम किससे साझा करे, तो वह अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त करता है। ईश्वर से लौ लगाता है, उसे पुकारता है। वे लिखते हैं-

सुन रहा हूं कि वो आएंगे हंसाने मुझको
आंसुओं तुम जरा रंग जमाए रखना।  

जब इंसान जीवन में अकेला पड़ जाता है तो अंतिम सत्ता को ही वह पुकारता है। आलोक जी की ये पंक्तियां हर लिहाज से पठनीय हैं-
जब-जब भी हमको घेरे साए उदासियों के
हम बदहवास होकर आवाज दें तुझी को।  

आलोक यादव की शायरी में समकानीन राजनीति, जन-जीवन, उद्वेलित समाज के साथ निज मन भी प्रस्फुटित हुआ है। यह मन अकेला नहीं है, यह आपको भी साथ लेकर चलता है। यही उनकी शायरी की विशेषता भी है। कुछ पंक्तियां उल्लेखनीय है-
गर सरकार के हो मुलाजिम तुम
सर को अपने उतार कर रक्खो
तुम न झांको पड़ोसियों के घर
अपना आंगन बुहार के रक्खो

ज्ञानपीठ प्रकाशन से प्रकाशित गज़ल संग्रह ‘कलम जिंदा है’ के दूसरे संस्करण में आलोक जी की बेबाक पंक्तियां बरबस ध्यान खींचती हैं। आज के राजनीतिक माहौल पर उन्होंने कुछ इस तरह चोट किया है- लुटाया टैक्स का धन हाकिमों ने इश्तहारों पर/ मगर जिनके टूटे घरबार सारे चुप क्यों? बोलो… या फिर- ये किसका डर समाया है कलमकारों और अदीबों में/वो दोहे और वो अशआर सारे चुप हैं क्यों? बोलो।  आलोक यादव की शायरी में बेबाकी और गजब की प्रखरता है। भाषा बोधगम्य होने के कारण इस संग्रह को जब आप पढ़ना शुरू करते हैं, तो फिर आप बस पढ़ते ही चले जाते हैं। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। पाठक यहां अपनी पसंद की शायरी भी पढ़ सकते हैं।

रचनाकार- आलोक यादव
ग़ज़ल संग्रह- कलम जिंदा है (दूसरा संस्कण)
प्रकाशक- ज्ञानपीठ प्रकाशन
मूल्य दो सौ रुपए

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ashrutpurva

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