बाल कविता बाल वाटिका

कल एक सूरज फिर निकलेगा मन में ये विश्वास जगा ले

अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ II

दूर गगन में उड़ती चिड़िया
लौट धरा पर मुझ तक आई
बोली तू भी पंख लगा ले
चल सपनों में गोते खा ले।

नभ है नीला, सूरज पीला
धरती का हर रंग सजीला
इंद्रधनुष के सातों रंग से
एक नया परिधान सिला ले।

देख खड़ा उत्तुंग हिमालय
पावन गंगा भव्य शिवालय
जितेंद्रिय बन, शीश उठा चल
जग शांति की अलख जगा ले।

माना बहुत कठिन डगर है
पग-पग पर गिरने का डर है
कल एक सूरज फिर निकलेगा
मन में ये विश्वास जगा ले।

तू भविष्य है कैसा संशय
उठ चला चल होकर निर्र्भय
बहने दे विपरीत हवाएं
आंधी में एक दीप जला ले।

About the author

Amandeep Gujral

अमनदीप गुजराल
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मी अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ की प्रारंभिक शिक्षा बालको (छत्तीसगढ़) के केंद्रीय विद्यालय में हुई। लिखने का क्रम आठवीं कक्षा से शुरू हुआ, जो प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं साझा काव्य संकलनों से गुजरता हुआ संग्रह (ठहरना जरूरी है प्रेम में) के रुप में सामने आया है। वे कहानियां भी लिखती हैं। एमकॉम तक शिक्षा प्राप्त अमनदीप नवी-मुंबई में निवास करती हैं। लेखन उनके लिए उम्मीद की किरण है। श्रद्धा है, एक सतत प्रयास है।

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