अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ II
दूर गगन में उड़ती चिड़िया
लौट धरा पर मुझ तक आई
बोली तू भी पंख लगा ले
चल सपनों में गोते खा ले।
नभ है नीला, सूरज पीला
धरती का हर रंग सजीला
इंद्रधनुष के सातों रंग से
एक नया परिधान सिला ले।
देख खड़ा उत्तुंग हिमालय
पावन गंगा भव्य शिवालय
जितेंद्रिय बन, शीश उठा चल
जग शांति की अलख जगा ले।
माना बहुत कठिन डगर है
पग-पग पर गिरने का डर है
कल एक सूरज फिर निकलेगा
मन में ये विश्वास जगा ले।
तू भविष्य है कैसा संशय
उठ चला चल होकर निर्र्भय
बहने दे विपरीत हवाएं
आंधी में एक दीप जला ले।