लेखक परिचय/ कवि परिचय

हिन्दी साहित्य के अजातशत्रु- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

प्रो. विनीत मोहन औदिच्य II

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु जी का जन्मः 19 मार्च,1949 , को ग्राम हरिपुर, जिला- सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। आपने मेरठ विश्वविद्यालय से हिन्दी में परास्नातक व बी. एड की शिक्षा प्राप्त की। आप शिक्षा विभाग के अंतर्गत केन्द्रीय विद्यालय में प्राचार्य के पद पर कार्यरत रहते हुए सेवा निवृत्त हुए।

कांबोज जी का काव्य रचना संसार :

हिन्दी साहित्य के पुरोधा के रूप में कार्य करते हुए हिमांशु जी ने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में व्यापक रूप से इतना उल्लेखनीय कार्य किया है कि अगर उन्हें हिन्दी साहित्य का अजातशत्रु कहा जाना पूर्णतः उचित होगा। उनकी प्रकाशित रचनाओं में ‘माटी,पानी और हवा’, ‘अँजुरी भर आसीस’, ‘कुकडूँ कूँ’, ‘हुआ सवेरा’, ‘मैं घर लौटा’, ‘तुम सर्दी की धूप’, ‘बनजारा मन’ ( काव्य-संग्रह) के अतिरिक्त जापानी काव्य विधाओं,’मेरे सात जनम’, ‘माटी की नाव’, ‘बन्द कर लो द्वार'(हाइकु-संग्रह), ‘मिले किनारे’ (ताँका और चोका संग्रह संयुक्त रूप से डॉ हरदीप सन्धु के साथ), ‘झरे हरसिंगार'(ताँका-संग्रह), ‘तीसरा पहर’ ( ताँका, सेदोका, चोका) आदि प्रकाशित हुए हैं।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी काव्य विधाओं में विविध विषयों को समाहित किया है परन्तु हर काव्य विधा में प्रेम के विविध रूपों की प्रधानता पायी जाती है।
आज के दौर में जापानी काव्य विधाओं में हाइकु ( वार्णिक छंद 5+7+5=17 वर्ण ) ऐसा काव्य है जो पूर्व से उगकर पश्चिम तक अपना उजाला फैला रहा है जो जन जीवन और मूल्यों का संवाहक भी है।
हिमांशु जी के हाइकु प्रेम की विभिन्न भावनाओं को कुशलता से चित्रित करते हैं।

तन चंदन /मन हरसिंगार!/झरता प्यार।
आँसुओं – भरी /कोठरियाँ तड़पें /जाएँ भी कहाँ?
पाखी न पाती /मिलेंगे कैसे अब /याद रुलाती।
सपना टूटा /ज्यों छूने से पहले /कोई हो रूठा

इसी प्रकार निम्न हाइकु कवि के प्रेम का मार्मिक विस्तार दर्शाते हैं।

नयन जल /सुधियों भरा ताल /गया छलक।
लौटते नहीं /बीते हुए वे पल /खो गए कल।
झुके नयन /मधुर कथा कहें /स्मित अधर।
छोटी सी चूक /अधूरा – सा जीवन /बाकी थी हूक।

(यादों के पाखी)

जापानी लघु गीत विधा ताँका जिसमें 5-7-5-7-7 स्वर युक्त वर्णों के क्रम में पांच पंक्तियों की रचना में हिमांशु जी की रचनायें भारतीयता की सुगंध से सुवासित होकर औ अधिक खिल और महक उठीं हैं। उदाहरण के लिए माँ के संघर्ष को चित्रित करता यह ताँका सार्वभौमिक तत्व लिए हुए है।

लम्बा सफर /काँटों – भरी डगर /चलती गई /कभी नहीं झुकी माँ /झुकी आज कमर (झरा प्यार निर्झर)

यह ताँका कवि के एकाकीपन की व्यथा का वर्णन करता है।

साथी है कौन /अम्बर भी है मौन /एकाकी पथ /दूर तक सन्नाटा /किसने दुख बाँटा। (झरा प्यार निर्झर)

किसे था पता /ये दिन भी आयेंगे /अपने सभी /पाषाण हो जायेंगे /चोट पहुँचाएँगे। (झरा प्यार निर्झर)

निस्वार्थ प्रेम में प्रियतमा की कुशल क्षेम की कामना
सहज ही मन को मोह लेती है-
हे प्रभु मेरे /कुछ ऐसा कर दे! /दुख मीत के /सब चुन कर तू /मेरी झोली भर दे। (झरा प्यार निर्झर)

सिन्धु तरंग /मोहे शशि अनंग /विचलित हो /फिर से लौट आती /सागर में समाती (झरा प्यार निर्झर)

जापानी काव्य विधा चोका (5+7+5+7 +5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+7 आदि विषम संख्या की एक रचना) में कवि की पर्यावरण संरक्षण के प्रति चिंता अभिव्यक्त होती है।

सूखी नदियाँ /नीर नहीं पाएँगे /नीर न मिला /गाछ कहाँ हो हरे /गाछ न हरे /नीड न बनाएँगे /नीड के बिना /बेचारे प्यारे पाखी /बोलो तो जरा /किस देश जाएँगे।
निर्झर सूखे /कल – कल उदास /पाखी न कोई /आता है अब पास /रोता वसंत /रो रहे हैं बुराँश /बचा खुचा जो /लील गई आग है /हरीतिमा का /उजड़ा सुहाग है /बहुत हुआ /अब तो जाग जाओ /छाँव तरु की /बूँद – बूँद नीर की /मिलकर बचाओ।
(गीले आखर)

सेदोका विधा (5-7-7,5-7-7) की एक रचना में प्रेम की पराकाष्ठा की बानगी देखिये

मैं मजबूर /कि सिर झुकता है /तेरे दर पे आके /तू ही बता दे /किस मुँह से भला /मंदिर अब जाऊँ।
(छंद विधान एवं सृजन)

पंजाब के प्रसिद्ध लोकगीत माहिया पर भी कांबोज जी की पकड़ देखते ही बनती है। निम्न रचना में प्रकृति का सुन्दर वर्णन मिलता है।

ये भोर सुहानी है
चिड़िया मन्त्र पढ़े
सूरज सैलानी है
(छंद विधान एवं सृजन)

वहीं इस माहिया में समाज और परिवार में दरकते रिश्तों का सत्य मुखरित होता है।

हमको हर बार मिली
घर के आँगन में
ऊँची दीवार मिली
(छंद विधान एवं सृजन)

समय के महत्वपूर्ण क्षण को आत्मसात करके संश्लिष्ट रूप में किए गए वर्णन को क्षणिकाओं के माध्यम से हिमांशु जी प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में सक्षम सिद्ध हुए हैं।

पतझर /ऊपर से आँधी /पकड़ो न पात /बचा ठूँठ बाँहों में भर लो, तो फूटेंगी कोंपल।

वनखण्डों के पार /पिंजरे में बंद प्रतीक्षारत / व्याकुल सुग्गा /कहीं वह तुम तो नहीं?

छंद विधान एवं सृजन में मात्रिक एवं वार्णिक छंदों में भी हिमांशु जी की निपुणता देखते ही बनती है।

‘आल्हा छंद’ में आपने आज के समय के कटु यथार्थ को बखूबी उजागर किया है

एक तरफ हैं वीर बाँकुरे, मस्तक अर्पण को तैयार ।
दूजी ओर डटे बातूनी, बातों की भाँजें तलवार।।
अगर देश की रक्षा करना, कर लो अब इनकी पहचान ।
खाते हैं ये अन्न वतन का, और जुबाँ पर पाकिस्तान।


कभी अपने भी छोड़ें साथ।
थामते कभी गैर भी हाथ।।
(शृंगार छंद)

कवि का जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण समाज को सार्थक संदेश देता है
तुम समझे जीवन को भार, मैंने तो समझा उपहार।
तुमने समझा केवल शूल, मैंने माना, खिलते फूल।।


बैठ गए क्यों हार कर, मंजिल पास तुम्हारे ।
आगे बढ़ना सीख लो, जब संकट हो प्यारे।।

(मुक्तामणि छंद)

कौन बड़ा कौन यहाँ छोटा, जान कौन पाया ।
छोटे से दीपक ने देखो, हर तमस हराया।।
इसलिए हमारा कहना है-हार नहीं मानो।
जीवन के सब अँधियारों को, कुचलेंगे ठानो ।

(विष्णु पद छंद )

यह पंक्तियाँ कितनी मनोहारी बन पड़ीं हैं जब कवि अपनी कोमल भावनाओं को अभिव्यक्ति देता है

चलते रहे हम नंगे पाँव। खोज सके नहीं अपना गाँव।
मिली तेरे चरणों की धूल, खिल गये दुर्गम पथ में फूल।।

(पध्दरि छंद)

निम्न पंक्तियों में कवि अपने अंतर की व्यथा को प्रभावी स्वर देता है जब वह यह कहता है कि

कभी कहीं, कभी कहीं मुसीबतें ।
सदा सही, जहाँ मिलीं, मुसीबतें।
यहाँ – वहाँ, जहाँ तलाशते तुम्हें,
हमें खड़ी मिली वहीं मुसीबतें
।। (विभावरी छंद)

हिमांशु जी बाल मनोविज्ञान के भी कुशल चितेरे हैं। अपनी बाल कविताओं से वह बच्चों का मन मोह लेते हैं।

लाल, गुलाबी, हरे, बैंगनी
चमक दिखाते गुब्बारे।
लौकी, ककड़ी, खीरे – जैसे
मन को भाते गुब्बारे।
(कुड़कूँ – कूँ )

इसी प्रकार एक अन्य कविता देखिये

जब तपता है सारा अम्बर
आग बरसती है धरती पर।
फैला कर पत्तों का छाता
सबको सदा बचाते पेड़।
(हुआ सवेरा )

गद्य विधा में हिमांशु जी
पद्म विधाओं के साथ ही कांबोज जी के गद्य विधा में धरती के आँसू (उपन्यास), दीपा, दूसरा सवेरा (लघु उपन्यास), असभ्य नगर (लघुकथा-संग्रह-दो संस्करण), खूँटी पर टँगी आत्मा (व्यंग्य-संग्रह-3 संस्करण), भाषा-चन्द्रिका (व्याकरण), आदि जहाँ उल्लेखनीय हैं वहीं समालोचना एवं रचनात्मक लेखन में भी वह अग्रणी रहे हैं यथा लघुकथा का वर्त्तमान परिदृश्य, (लघुकथा -समालोचना), सह-अनुभूति एवं काव्य-शिल्प ( काव्य-समालोचना), हाइकु आदि काव्य-धारा ( जापानी काव्यविधाओं की समालोचना), छन्द -विधान एवं सृजन (रचनात्मक लेखन), गद्य की विभिन्न विधाएँ (रचनात्मक लेखन), आदि सशक्त कृतियाँ हैं।
बाल साहित्य में फुलिया और मुनिया (बालकथा हिन्दी और अंग्रेज़ी, अंग्रेज़ी संस्करण दो बार इटली के विश्व पुस्तक मेले में प्रदर्शित हुई हैं।, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा हरियाली और पानी (बालकथा), में सार्थक योगदान के साथ ही आपने गीड्-गदेड् ओन्डो: दः अ ( हरियाली और पानी का हो बोली में ), हरियार और द: अ: ( हरियाली और पानी का ‘असुरी’ बोली में), उड़िया, पंजाबी और गुजराती भाषा में अनुवाद) प्रकाशित, झरना, सोनमछरिया, कुआँ(पोस्टर बाल कविताएँ), रोचक बाल कथाएँ भी हिमांशु जी की कुशल लेखनी से। लोकल कवि का चक्कर नाटक का 2005 में आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारण हो चुका है। ऊँचाई’ लघुकथा पर लघु फ़िल्म बन चुकी है। हिमांशु जी द्वारा नेपाली, पंजाबी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मराठी, गुजराती, संस्कृत, बांग्ला में कुछ रचनाएँ अनूदित की गई हैं साथ ही राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के लिए 2 पुस्तकें अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित की गयी है
गद्य की विभिन्न विधाएँ‘ पुस्तक में, आत्म कथा, जीवनी, रेखाचित्र, संस्मरण, डायरी, रिपोर्ताज, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा, परिचर्चा, साक्षात्कार आदि विधाओं के बारे में अत्यंत महत्वपूर्ण व उपयोगी जानकारी प्रदान की गई है।
कांबोज जी ने सुकेश साहनी, डॉ.भावना कुँअर, डॉ.हरदीप सन्धु, डॉ.कविता भट्ट, और डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा के साथ कुल 40 पुस्तकें सम्पादित की हैं। आप laghukatha.com (सुकेश साहनी के साथ लघुकथा की एकमात्र वेब साइट), www.hindihaiku.wordpress.com तथा http://www.trivenii.com/ के डॉ. हरदीप कौर सन्धु के साथ सहयोगी सम्पादक भी हैं।
आपके रेडियो सीलोन, आकाशवाणी गुवाहाटी, रामपुर, नज़ीबाबाद , अम्बिकापुर एवं जबलपुर, दूरदर्शन हिसार, टैग टी.वी.और सी. एन.(कैनेडा ) से कार्यक्रम प्रसारित हुए हैं ।

साहित्यिक योगदान
सम्प्रति हिमांशु जी लोकप्रिय पत्रिका हिन्दी चेतना के संपादन एवं स्वतन्त्र लेखन में संलग्न हैं।
समग्रता में निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी का रचना संसार का फलक अत्यंत व्यापक एवं विस्तृत है। उनके हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में दिए गए योगदान का आंकलन करना सूरज को दीपक दिखाने के समान है। दीर्घ वय में भी वह साहित्य के प्रति पूर्णतः समर्पित रहते हुए सक्रिय हैं और राजभाषा की सेवा में एक कर्मयोगी की भाँति निष्ठा व निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं फिर भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक काल के साहित्यकारों का जब भी उल्लेख किया जाएगा तो हिन्दी साहित्य एवं भाषा के क्षेत्र में अविस्मरणीय योगदान के लिए आदरणीय कांबोज जी का नाम सदैव आदर से लिया जाएगा।

संदर्भ सूची
1-हाइकु आदि काव्य धारा स्वरूप एवं सृजन रामेश्वर काम्बोज हिमांशु – अयन प्रकाशन, नई दिल्ली – 2020 पृ. सं. – 26
2-झरा प्यार निर्झर – अयन प्रकाशन नई दिल्ली – 2019,पृ.सं. -17,29,22,23,24
3-यादों के पाखी – अयन प्रकाशन -नई दिल्ली 2012 – पृ. सं. 36,37 व 39
4-गीले आखर – अयन प्रकाशन नई दिल्ली -पृ.सं. 20,
5-छंद विधान एवं सृजन – रामेश्वर काम्बोज हिमांशु – अयन प्रकाशन, नई दिल्ली – 2022, पृ. सं. – 17,18,19,47,48,61,65,71,89.
6-कुड़कूँ कूँ – रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, अयन प्रकाशन, नई दिल्ली – पृ. सं. 19
7-हुआ सवेरा – रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, अयन प्रकाशन, नई दिल्ली – पृ. सं. – 11
8-गद्य की विभिन्न विधाएँ – रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, अयन प्रकाशन, नई दिल्ली – 2022
9-htpp://www. kavya kosh.com
10-http://www.gadya kosh.com

About the author

विनीतमोहन औदिच्य

श्री विनीत मोहन औदिच्य - १० फरवरी, १९६१ को उत्तरप्रदेश के करहल में जन्मे आप , संप्रति उच्च शिक्षा विभाग मध्यप्रदेश शासन के अंतर्गत शासकीय महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। एक सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार और सिद्धहस्त हिन्दी कवि के रूप में उनकी प्रतिभवान लेखनी हिंदी की विभिन्न साहित्यिक विधाओं में मानव जीवन के हर एक पहलू को स्पर्श करती है। उनके प्रकाशित 5 एकल संग्रहों व 9 साझा संग्रहों में 'खुशबु ए सुख़न', 'काव्य प्रवाह', 'कारवां ए ग़ज़ल', 'भाव स्रोतस्विनी' एवं 'अंदाज़ ए सुख़न' सम्मलित हैं। अंग्रेजी के सोनेट कवियों को हिंदी में अनूदित करने की उनकी अभिरुचि को 'प्रतीची से प्राची पर्यंत' में एवं नोबेल सम्मान विजेता पाब्लो नेरुदा के हंड्रेड लव सोनेट्स का हिंदी अनुवाद 'ओ, प्रिया! में पूर्णता प्राप्त हुई है।

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