राकेश धर द्विवेदी II क्या सोच रही है नदीनदी कुछ सोच रही हैकुछ मौन की भाषा बोल रही है,देख रही है...
काव्य कौमुदी
“शारदा वंदना”
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ II कलुष हृदय में वास बना माँ,श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।शुभ्र...
ठुकरा दो या प्यार करो
सुभद्रा कुमारी चौहान II देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैंसेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की...
जीवन वही है जो दूसरे के काम आए
राकेश धर द्विवेदी II हर शख्स दौड़-भाग रहा हैबस एक ही चीज मांग रहा हैसरजी मुझे चाहिए श्रेष्ठइसलिए मैं...
यह जो आम आदमी है
राकेश धर द्विवेदी II राशन की दुकान परचार घंटे से खड़ा हैयह आम आदमी है। सब्जी वाले से जोबिना बात के...
नए मायने स्वामीभक्ति के
राकेश धर द्विवेदी II जाड़े की सुनसान सड़क परथिरक रहा पिज्जा हाटऔर खींच रहा मॉल का शोर,दौड़ रही...
मेरा अनंत होना
सांत्वना श्रीकांत II मेरा अनंत होनाउतना ही जरूरी थाजितना किसबसे पवित्र किए गएप्रेम को संजो...
मैंने खुद को कभी पढ़ा नहीं
संजय स्वतंत्र II कभी-कभी लगता है किसेल्फ में बरसों सेधूल खाई किताब जैसाहो गया हूं मैं।मैंने बरसों...
उसे घर जाना था
अमनदीप गुजराल ‘विम्मी’ II गुस्से से छोड़ आई थी घरचार बच्चों की मां, मारपीट, गाली-गलौज से तंग आकरआज...
पिता प्रतिस्थापन है
कुलदीप सिंह भाटी II कभी कमी नहीं लगीपिता पर लिखी कविताओं कीनहीं महसूस हुआ किपिता पर लिखा गया है कम।...
पिता का होना …
पिता का होनाबारिश में छाते का होना हैवृक्ष की जड़ का होना है घर छोड़ने की धमकी भीख़ामोशी सेसुनने...
मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है
मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँतुम्हारी प्रेरणाओं सेमेरी प्रेरणा इतनी भिन्न हैकि जो तुम्हारे लिए विष...