आज सारे दिन बाहर घूमता रहाऔर कोई दुर्घटना नहीं हुई।आज सारे दिन लोगों से मिलता रहाऔर कहीं अपमानित...
काव्य कौमुदी
मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला
मैं लिखने बैठ गया हूँमैं लिखना चाहता हूँ ‘पेड़’यह जानते हुए किलिखना पेड़ हो जाना हैमैं...
ओस की बूंदों ने गवाही दी है
तू मेरे इश्क की इबारत हैतू इसे पढ़ न पाई है रात रो रो कर हमने काटी हैदुख में कोई अब न साथी है चांद...
दूर कहीं गूंज उठी शहनाई है
राकेश धर द्विवेदी II रात रो-रोकर कटी है कहीं पर,कहीं सुबह हो रही विदाई है। किसी के अरमानों का गला...
हकीकत आजकल अपनी छुपा कर लौट आते हैं
मनस्वी अपर्णा II सभी के सामने सर को झुका कर लौट आते हैंगलत बातों पे भी हम मुस्कुरा कर लौट आते...
आइए ले चलूं कंक्रीट के जंगल में
राकेश धर द्विवेदी II आइए ले चलूं आपकोकंक्रीट के उस जंगल मेंजहां आप महसूस करेंगेभौतिकता के ताप...
पलाश
डॉ. सांत्वना श्रीकांत II बीते हुए बसंत की याद में…निर्जन वन की तरह हीमेरी पीठ पर दहकते पलाश के...
प्रेम और नमक
डॉ. सांत्वना श्रीकांत II प्रेम और नमकरूपक हैंदोनों का उपयोग किया गयाज़रूरत के हिसाब...
आपकी ये खामोशियां
राकेश धर द्विवेदी II बहुत कुछ हमसे कह गईंआपकी ये खामोशियां…दिल में आकर उतर गईंआपकी ये...
सब कुछ
सदानंद शाही II सब कुछ खत्म होने के बाद भीसब कुछ बचा रह जाता हैसब कुछ के इन्तजार में हम सब कुछ खत्म...
तरु तुम केवल समझ सके हो मेरे मन की पीर
प्रीति कर्ण II सूखी नदियाँ सूखे सागरदुख भरता नित मन की गागरतरल विकल जीवन धारा मेंद्रावकता मन बांध न...
जो तुम आ जाते एक बार
अश्रुतपूर्वा II जो तुम आ जाते एक बारकितनी करुणा कितने संदेशपथ में बिछ जाते बन परागगाता प्राणों का...