काव्य कौमुदी

कविता काव्य कौमुदी

मधुवन

शिलाएँ मौन रहती हैं किंतु हवाएँ सच बोलती हैंतुम्हारी अनुपस्थिति में भी मातृ प्रेम का रस घोलती...

कविता काव्य कौमुदी

स्त्री!

डॉ. मंजुला चौधरी II स्त्री!तुम अपने आस-पास पसरे वर्जनाओं के जाल में क्यों उलझती हो,जबकि हमेशा टूटती...

error: Content is protected !!